Friday, January 17, 2014

एक उड़ती हुई कविता

इस तस्वीर पर पहले भी लिख चुका हूं 
एक उड़ती हुई कविता
जब भी देखता हूं यह तस्वीर
होता मन कुछ और कहने को अधीर
मिल जुल्फों से काली पोशाक 
देती सावन की घटाटोप सविता का आभास
चेहरे पर संचित पीड़ा के भाव 
दर्शाते हैं सदियों पुराने घाव
बेताब हैं उंगलियां गिटार के तार पर 
करने को आघात सभ्यता के भार पर
रचने को एक नया संगीत 
बन जाये जो जंग-ए-आज़ादी का गीत
[ईमिः18.01.2014]

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