हमारी ज़ुबां मुला कि हिंदुस्तानी है
जो हिंदी-ओ-उर्दू की साझी कहानी है
करता हूं इस्तेमाल दोनों अलफ़ाज़ एक साथ
रखता ध्यान में महज भाषा के सौंदर्य की बात
शब्दों की कड़की से दुखते हैं शायराना ज़ज़्बात
आती है तब उस मरहूम शायर दोस्त की बहुत याद
भाषा की समृद्धि के बावजूद होता शब्दों का अभाव
खलता है तब ख़ुद के भाषाविद न होने का स्वभाव
[ईमि/18.01.2014
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