राहत की बात यह है कि मुज़फ्फरनगर-शामली जिलों में संघ-शोधित जाट-वर्चस्व के कुछ गांवों को छोड़कर सभी गांवों में सामासिक संरचना की अमन कमेटियां हैं.चीनी-पट्टी के साथ साथ अपराध-पट्टी के भी रूप में जाने जाने वाले इस इलाके में 3 दवंग जातियां हैं. जाट-मुस्लिम-त्यागी. जाट-मुस्लिम गठजोड़ चौधरी चरण सिंह का " वोट बैंक " रबा है. इसे तोड़े बिना मोदी मंत्र नहीं चल सकता था. दोनों पक्षों के कठमुल्लों को कवाल की घटना को सांप्रदायिक बनाने का मौका दे दिया, मुलायम के बेटे की सरकार की परोक्ष सहायता से. कुतबा में कोहराम के कुछ महीने पहले भाजपा के संभावित लोकसभा उम्मीदवार संजीव बालियान ने पंचायत का आयोजन किया था जिसमें राजनाथ सिंह आए थे. 30 अकटूबर को हसनपुर के 3 लड़के सटे गांव मुहम्मदपुर रायसिंह के जाटों द्वारा मार डाले गए लेकिन हसनपुर के बुजिर्गों ने अमन कायम रखा और अमन कमेटी ज्यादा सजग हो गयी. 60-40 मुस्लिम-हिंदू अनुपात की आबादी के इस गांव के बुजुर्गों ने गांव में किसी मुस्लिम फिरकापरस्त नेता को नहीं घुसने दिया.
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