Tuesday, January 14, 2014

आप 2

कमल भी  "आपमय" हो गये. जिन्हें जल्दी थी, वे चले गये. वैसे भी सीपीआई और अन्य संसदीय पार्टियों में कोई खास गुणात्मक फर्क है नहीं रह गया है. To wreck from within सत्ता में भागीदारी के लिए अवसरवादी वामपंथ का पुराना तर्क रहा है. अभी तक का इतिहास यही रहा है कि जो भी गये To wreck from within के इरादे से, got wrecked themselves. लेकिन जरूरी नहीं है इतिहास दुहराये ही. बल्कि, इतिहास कभी भी खुद को दोहराता नहीं, कभी कभी प्रतिध्वनित होता है. हो सकता है इस बार wreck from within वाले within को समझा सकें कि भ्रष्टाचार का मूल कारपोरेटी नवउदारवादी नीतियां हैं जिन्हें जनपक्षीय नीतियों से प्रतिस्थापित करके ही जनहित हो सकता है. हो सकता है जनकवि बल्ली सिंह चीमा, कमल मित्र चेनॉय और प्रशांत भूषण जैसे wreck from within वाले within के राजनैतिक धड़े(लोहियावादी -- आनंदकुमार, योगेंद्र, हरीश खन्ना, अजीत झा,..................) के साथ अस्थायी गठजोड़ के माध्यम से अराजनैतिक धड़े (एनजीओ कार्यकर्त्ता, कुमार विश्वास जैसे बेपेंदी के लोटे, निष्कच्छ संघी पत्रकार आशुतोष........) का राजनैतिककरण कर सकें और यह समझा सकें कि जनहित में ही स्वहित सर्वाधिक सुरक्षित है और इस संक्रमणकालीन मध्यवर्गीय पार्टी की विचारधारा के क्रमिक विकास को जनपक्षीय आयाम दे सकें और भविष्य के जनवादी क्रांति का सहभागी बना सकें. अभी के दो शुरुआती फैसले -- बिजली कंपनियों का आडिट और यफडीआई की निरस्ति तो स्वागत योग्य हैं. होने को तो क्या नहीं हो सकता. लेकिन क्या होगा यह तो भविष्य ही बताएगा कि ये इतिहास बनायेंगे या अतीत के स्वस्फूर्त आंदोलनों से निकले नेताओं की ही तरह इतिहास की रद्दी की टोकरी में समाहित हो जायंगे. "आप " का प्रयोग 1967 के संविद प्रयोग की याद दिलाता है, लेकिन जरूरी नहीं है कि इतिहास इस बार भी प्रतिध्वनित हो. मैं तो समाज और बदलाव के अपनी मार्क्सवादी समझ और मूल्यों पर अडिग रहते हुए, क्रांतिकारी जनचेतना के निर्माण और विकास में अपने यथासंभव योगदान की निरंतरता कायम रखते हुए, आज के हालात में, "आप " का शुभचिंतक हूं, क्योंकि इस समय आवाम पर सबसे बड़ा खतरा फासावादी मोदी-मार्च का है. "आप " के उभार ने फासीवादी मार्च के समक्ष विशाल गतिरोधक खड़ा कर दिया है और मोदीवादी खेमें में हड़कंप मच गया है. मोदियाया हुआ  "शिक्षित " मध्यवर्ग दिग्भ्रमित हो गया है क्योंकि वह जानता ही क्यों मोदियाया है बस है, अपवादस्वरूप कभी अगर दिमाग का इस्तेमाल करता है तो उसे नरसंहार की वेदी से उत्पन्न अपने इष्टदेव का कोई कथ्य या कृत्य याद नहीं आता जो उनकी भक्ति का औचित्य साबित करे. फिलहाल तो मैं  "आप " की सफलता की कामना करता हूं. 

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