Saturday, January 18, 2014

गुजरे जमाने की बात

है ये गुजरे जमाने की बात
हुई थी जब वो पहली मुलाकात
अरावली के दिलकश नजारों में
ज़ज्बातों के फस्ल-ए-बहारों में
करने लगी थी वो अकीदत और इबादत
रश्मों से बगावत की थी न तब तक आदत
ज़ुनून-ए-उल्स को उसने जुनून-ए-इश्क समझा
समझाने पर यह बात मुझे ही दुश्मन समझा
किया अर्ज़ जब करने को मर्दवाद से बगावत
संस्कारवश कर बैठी वो उल्टे मुझसे ही अदावत
संस्कारों का असर होता बेइम्तहां
टूटने पर मगर दिखता एक नया जहां
जुनून-ए-इश्क में मानने लगी वो मेरी बात
दिमाग से जोड़ने लगी दिल के ज़ज़्बात
मिला दिया ग़म-ए-जहां में गम-ए-दिल हमने
हुए शामिल जंग-ए-आज़ादी के कारवानेजुनून में
(क्या समर, सुबह हिंदी-उर्दू के चक्कर में खर्च करा दिया, शुक्रिया)
[ईमि/17.01.2014]

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