Tuesday, January 14, 2014

कश्मीर

किसी भी आवाम पर सेना के सहारे बहुत दिनों तक नहीं राज किया जा सकता. जितना पैसा (अरबों) हिंदुस्तान और पाकिस्तान घाटी में सेना के रख-रखाव पर करते हैं, उतने में अनैतिहासिक सीमा रेखा के दोनों तरफ के कश्मीरों में गरीबी और बेरोजगारी से निजाद मिल सकती है जो आतंकवाद की जड़ है और दोनों ही देशों के बच्चों की शिक्षा की व्यवस्था दुरुस्त की जा सकती है. लेकिन दोनों की ही सरकारें ऐसा नहीं चाहेंगी क्योंकि युद्धोन्मादी राष्ट्र-भक्ति का उनका शासनाधार खत्म हो जायेगा. सेनाओं की मौजूदगी का प्राकृतिक और सामाजिक दुष्प्रभाव अलग. "न मेरा घर है खतरे में, न तेरा घर है खतरे में, वतन को कुछ नहीं खतरा, निज़ाम-ए-ज़र है खतरे में" (हबीब जालिब)

No comments:

Post a Comment