Tuesday, January 21, 2014

हवाओं के हाथ पैगाम

जलाकर सांझ की चौखट पर दिये
हवाओं के हाथ भेजा होगा पैगाम तुमने
हवाओं के रुख में कुछ नमी थी
बुलावे में खलूस की कुछ कमी थी
निकलीं हवाएं जब पैगाम देने
दिये को बुझा दिया उनकी नमी ने
मिला हवाओं से जैसे ही तेरा पैगाम
आया मैं दौड़ते छोड़ और सब काम
गुम है सांझ की चौखट रात के अंधेरे में
जलाओ एक दिया फिर से अपने बसेरे में
या बीत जाने दो ये धुप् अंधेरी रात
भोर की किरणों में करते हैं मुलाकात
[ईमि/22.01.2014]
(कवि होता कितना बकलेल, करता रहता शब्दों का खेल)

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