Tuesday, January 14, 2014

आम आदमी

आम आदमी
बना जब आम आदमी रूसो की रचना का सूत्रधार
हो गया तबसे वह हर संविधान की जिल्द पर सवार
खोज लिया ऋषि-मुनियों ने शासन की तरकीबें अनोखी
कैद रहे जिससे आम आदमी संविधान के पन्नों में ही
पन्नों में कैद इस आम आदमी का कुछ खौफ तो है जरूर
कर देता है मालिकों को जन-सेवक कहलाने को मजबूर
ज़ालिम हो कितना भी बड़ा हवसी और क्रूर, फासीवादी
कसमें खाता आवाम की कहलाता राष्ट्रीय समाजवादी
करने को हवाले साहूकार को जल, जंगल और जमीन
मजदूरों और किसानों पर ढाये चाहे ज़ुल्म संगीन
माने-न-माने इसे दानिशी दुनियां की आबादी
कहते हैं ये अपने को कम्युनिस्ट समाजवादी
ठंढ से ठठुर रहा है वो बच्चा मुज़फ्फरनगर में
शरणार्थी बन गया है जो अपने ही शहर में
सूबे में चल रहा हो जब लाशों का कारोबार
मनाते हों तब सैफई महोत्सव वहां के सूबेदार
खाये चाहे जनता के नाम पर मेवा
और करे सामंत-थैलीशाहों की सेवा
डाले भले ही शोषण-दमन की नई परिपाटी
कहेगा लेकिन खुद को समाजवादी पार्टी
यही हाल है दुनिया भर के कारपोरेटी नुमाइंदों का
लूटते हैं धरती लेते नाम खुदा के सभी बंदों का
समाजवादी कहे खुद को ग़र दलाल थैलीशाह का
सैद्धातिक जीत है ये जनवाद के सिद्धांत का
निकल रहा है आम आदमी अब पन्ने से बाहर अब
आयेगा इंकिलाब होगा वर्गचेतना से लैस वह जब
रहेगी तब तक मनुष्य की मनुष्य पर वर्चस्व की वैधता
रहती है जब तक शब्दकोश में सम्राट शब्द की परिभाषा
पैलाना है हर वर्चस्व से मानव-मुक्ति का संदेश
खत्म करना होगा राजा और रंक का भदेस
होगी कायम जब लोकसत्ता रूसो के सपनों की
कोई नहीं पराया होगी दुनिया सिर्फ अपनों की
होगा जब किसान और मजदूर आज़ाद
तभी आयेगा आम आदमी का राज
न होगा कोई तख्त न ही कोई ताज़
धरती पर बसेगा एक वर्गहीन समाज
धरती के उपहार मिल-बाँट खायेंगे
मिल-जुल सब एक नया इतिहास बनाएंगे
शासक और शासित का भेद मिट जायेगा
आम आदमी एक नया समाज बनायेगा
[ईमि/14.01.2014]



2 comments:

  1. बनेगा ही खुद का खास अंततः आम आदमी
    रचेगा ही नया इतिहास अंततः आम आदमी
    मुक्त हुआ जब गुलामी के दौर से आम आदमी
    फंस गया सामंती खोह में आम आदमी
    सामंती शिकंजों को तोड़ने वाला था आम आदमी
    हुआ इंकिलाबी आसियाने बेदखल आम आदमी
    आया पूंजी का निज़ाम मजदूर बना आम आदमी
    लायेगा अगला इंकिललाब जब आम आदमी
    फंसेगा न किसी जाल में तब आम आदमी
    करेगा ही मानवता को मुक्त अंततः आम आदमी
    [ईमि/14.01.2014]

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  2. यह संक्रमणकाल है. भ्रष्टाचार नव-उदारवादी पूंजावाद का कोई नीतिगत दोष नहीं है बल्कि इसकी अंतर्निहित प्रवृत्ति है. इसलिए नव-उदारवादी नीतियों को बिना चुनौती दिये भ्रष्टाचार उन्मूलन अभियान अपनी तार्किक परिणति तक नहीं पहुंच सकता और आम आदमी का आम आदमी पार्टी से मोहभंग लाजिमी है. आम आदमी के अभियान का अगला चरण शायद ज्यादा जनोन्मुखी हो. हो सकता है हताश और बिखरी क्रांतिकागरी ताकतों में सद्बुद्धि आये और वे एकताबद्ध हो आम आदमी की जनवादी लामबंदी कर सके.

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