Wednesday, January 29, 2014

क्षणिकाएं 14 (351-60)

351
ताप से तमाम चिरागों के टूट तो गया ख़ाब
जगने पर महसूसा आग की दरिया का ताप 
रोशनी के लिए जलाए थे तुमने जो चिराग 
लग गई उससे परंपरा के पुराने घरों में आग
बचा है जो इनके खंडहरों का ठिकाना 
आओ बनायें उस पर एक नया आशियाना 
हो जिसमें रोशनी भरमार जनचेतना की
रहे न कोई मिसाल निज चिराग की वेदना की
(ईमिः21.01.2014)
352
जलाकर सांझ की चौखट पर दिये, हवाओं के हाथ भेजा होगा पैगाम तुमने
हवाओं के रुख में कुछ नमी थी, बुलावे में खलूस की कुछ कमी थी
निकलीं हवाएं जब पैगाम देने, दिये को बुझा दिया उनकी नमी ने
मिला हवाओं से जैसे ही तेरा पैगामआया मैं दौड़ते छोड़ और सब काम
गुम है सांझ की चौखट रात के अंधेरे में, जलाओ एक दिया फिर से अपने बसेरे में
या बीत जाने दो ये धुप् अंधेरी रातभोर की किरणों में करते हैं मुलाकात
[
ईमि/22.01.2014]
353
आज मन न जाने क्यों कुछ उदास है
कविता कुछ दिन से बहुत नाराज हे
सुनाई दे रहा है चारों तरफ से शोर
ईशमिश्र हो गया है काफी कामचोर
लिखूंगा लेकिन फिर जरूर कविता
क्योंकि न लिखकर भी क्या कर लूंगा हा हा
[ईमि/25.01.2014]
354
न लिखने से तो कुछ नहीं होगा
लिखने से है बहुत कुछ हो सकता 
कलम औजार तो है ही इंकिलाब के हरकारे का 
हथियार भी है जंग-ए-आज़ादी के मतवाले का
कलम की धार से डरता है हर तानाशाह 
बौखला जाता है नफरत का हर बादशाह
लिखना ही है कविता करना है ग़र इंकिलाब
लगाने हैं जो नारे मजदूर-किसान ज़िंददाबाद
मानता नहीं कलम नियम छंदों और पदों का 
लिखता है संचित पीड़ा महकूमों-मज़लूमों का 
नहीं है मकसद इसका करना महज हंगामा 
लिखना है इसको तो मानव-मुक्ति का नगमा
लिखना है खाकनशीनों के हक़ के गीत 
मिटाने को शोषण-दमन के सारे रीत 
लिखूंगा ही लगातार कविता 
क्योंकि लिखना ही है
उसी तरह 
जैसे शोषितों के लिए लड़ता है क्रांतिकारी
क्योंकि उसे लड़ना ही है. 
(ईमिः 25.01.2014)
355
तुमने कहा तुम हिंदुस्तान हो, विश्व बैंक की शान हो 
चढ़कर शाही बग्घीपर, आम आदमी की हड़्डी पर
करते हो तोप-टैंकों का प्रदर्शन, जन पर तंत्र का  प्रहसन
जाग रहा है अब जनगण, छेड़ेगा अब भीषण रण
करेगा जनशक्ति का प्रदर्शन, तोप-टैंकों के तंत्र का मर्दन
डरेगा न अब बम-गोलों के शोर से, दबा देगा उन्हें इंकिलाबी नारों के जोर से
 तोड़ेगा शाही बग्घी की शान, लायेगा धरती पर एक नया बिहान
होंगे खत्म भेदभाव के सभी निशान, बनेगा तब जनगण असली हिंदुस्तान
[ईमि/26.01.2014]
356
तोड़ता रहूंगा ऐसे सारे कानून 
रोकते हैं जो अज़्म-ए-जुनून
[ईमि/26.01.2014]
357
बवफा-बेवफा से परे, ज़िंदगी एक बेशकीमती कुदरती इनायत है
वफाई-बेवफाई का बात, आत्मरत इंसानों की बनावटी रवायत है
वफादारी है कुत्तों की प्रवृत्ति, विवेकविहीन, भावुक अंतर्ज्ञान की
जीना है ग़र सार्थक ज़िंदगी, लिखना पड़ेगा अफ्साना हक़ीकत के संज्ञान की
होती नहीं बेवफा ज़िंदगी, है ये फसाना किसी नादान इंसान की
358
जंगल-जंगल घूमती य़े नन्हीं लड़कियां, लौट रही हैं घर लादे सर पर लकड़ियां
आज जलेगा चूल्हा और बनेगा भात, खायेंगी भरपेट आज बहुत दिनों के बाद
जायेंगी स्कूल फिर चलता जो नीम तले, दिलों में इनके भी ज्ञान का अरमान पले
मास्टर इन्हें मार-पीट भगाता है, नंगे-भूखों को कहीं कोई पढ़ाता है?
पढ़-लिख लेगी ग़र ये आदिवासी लड़की, पड़ जायेगी महलों में नौकरानी का कड़की
है सबको शिक्षा के अधिकार का कानून, ये मास्टर है मगर यहां अफलातून
इन लड़कियों में भी है लेकिन ग़जब का जुनूनतोड़ देती हैं ये सारे अफलातूनी कानून
ये पढ़ने की अपनी जिद पर अड़ी रहीं, स्कूल के दरवाजे पर डटकर खड़ी रहीं
देख इन्हें आ गयीं और भी लड़कियां अनेक, घेरकर स्कूल लिया मास्टर को छेंक
छीन लिया बेंत और दूर दिया फेंक, देख यह हुज़ूम दिया मास्टर ने घुटने टेक
बदल दिया इस बात ने उसकी समग्र सोच. करने लगा वह अपने किये पर अफ्शोस
पढ़ेंगी ये न करने को महज पास इम्तिहान, खोजेंगी ज्ञान के नित नये-नये बिहान 
पढ़-लिख कर ये लड़कियां रखेंगी अपनी बात, पढ़ेंगी-लड़ेंगी-बढ़ेंगी और बदलेंगी हालात
[ईमि/29.01.2014]
359
29.01.2014 को आसाम में सीपीआई(मालेःलिबरेशन) के 10 कार्यकर्ताओं की हत्या परः

ऐ लाल फरारे तेरी कसम, ये शहादतें नहां जायेंगी बेकार
करते रहेंगे हम, हर जोर-ज़ुल्म का प्रतिकार लगातार
जागेगा जब मेहनतकश,  सहम जायेंगे सारे अत्याचार
इंकिलाब के नारों से मच जायेगा ज़ुल्म के खेमों में हाहाकार
नहीं सहेगा मजदूर-किसान जोर-ज़ुल्म की और मार
निकलेगा ही करने अब समाजवाद का सपना साकार
याद रखेगा इतिहास तुम्हारी शहादतें कामरेड
लाल सलाम तुम्हारी शहादत को, लाल लाल सलाम
[ईमि/30.01.2014]
360
करना ही है शहीदों को तो लाल सलाम
कसना पड़ेगा लेकिन,
 नेतृत्व के अधिनायकत्व पर लगाम
है जो जनतांत्रिक-केंद्रीयता के सिद्धांत का 
एक बेहूदा मजाक.
[ईमि/30.01.2014]





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