Sunday, January 5, 2014

क्षणिकाएं 10 (311-20)

311
वाइजों का अंदाज़ होता है हिटलरी
दानिशों की ज़हालत के चलते
[ईमि/09.12.2013]
312
वाइज़ की देख हिमाकत
शशांक को हो गई दहशत
देख नहीं सका वो टूटा हुआ आइना
हो गया उसे चेहरे के टूटने का शक
[ईमि/09.12.2013]
313
अरे मैं तो दिशा मैदान गया था
लौटा तो देखा यहां तूफान मचा था
[ईमि/09.12.2013]
314
अरे मैं तो दिशा मैदान गया था
लौटा तो देखा यहां तूफान मचा था
[ईमि/09.12.2013]
315
मैं तो बोले जा रहा हूं
श्रोताओं का अकाल पा रहा हूं
[ईमि/09.12.2013]
316
गाफिल यहां गफलत की मत करो गड़बड़
बुढ़ापा होगा आपका करो मत युवा ईश पर बड़बड़
दिशा मैदान तो हर उम्र की फितरत है
जवान क्या बच्चों की भी जरूरत है
[ईमि/09.12.2013]
317
मैं नहीं हूं उद्वेलि आपकी बात पर गाफिल
बुढ़ापे की बात से बिगाड़ें न आप महफिल
318
जीना है मुझको तो 135 साल
बुढ़पा लाए 57 की उम्र
इसकी क्या मजाल
[ईमि/09.12.2013]
319
मैं खैयामों में उन्ही सा हूं
हाज़ियों में क़ाफिर
सुकरात हूं एथेंस में
आर्याव्रत में चार्वाक
[ईमि/12.12.2013]
320
मत कहो नालायक इस मासूम बालक को
संभालेगा यही मुल्क के सियासती फलक को

[ईमि/09.12.2013]

2 comments:

  1. कहाँ हो रहा है अकाल
    मैं तो रोज आ रहा हूँ :)

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