न लिखने से तोकुछ नहीं होगा
लिखने से है बहुत कुछ हो सकता
कलम औजार तो है ही इंकिलाब के हरकारे का
हथियार भी है जंग-ए-आज़ादी के मतवाले का
कलम की धार से डरता है हर तानाशाह
बौखला जाता है नफरत का हर बादशाह
लिखना ही है कविता करना है ग़र इंकिलाब
लगाने हैं जो नारे मजदूर-किसान ज़िंददाबाद
मानता नहीं कलम नियम छंदों और पदों का
लिखता है संचित पीड़ा महकूमों-मज़लूमों का
नहीं है मकसद इसका करना महज हंगामा
लिखना है इसको तो मानव-मुक्ति का नगमा
लिखना है खाकनशीनों के हक़ के गीत
मिटाने को शोषण-दमन के सारे रीत
लिखूंगा ही लगातार कविता
क्योंकि लिखना ही है
उसी तरह
जैसे शोषितों के लिए लड़ता है क्रांतिकारी
क्योंकि उसे लड़ना ही है.
(ईमिः 25.01.2014)
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