Saturday, January 11, 2014

आप और वाम

खबर है कि लोकप्रिय क्रांतिकारी  गीत,"ले मशालें निकल पड़े हैं लोग मेरा गांव के........" के रचइता बल्ली आप में शामिल ङो गए हैं. सुखद-दुखद तो मैं नहीं जानता लेकिन इस समय जनवादी ताकतों के समक्ष सबसे बड़ी जिम्मेदारी जनचेतना के विकास के साथ कारपोरेट प्रायोजित, धर्मोंमादी, फासीवादी अभियान पर लगाम लगाना है. फिलहाल तो आप फैक्टर ही तुरंता विकल्प दिख रहा है. अंततः तो फीकी सुबह में लाल रंग भरने, ले मशालें निकलेंगे ही लोग मेरे गांव के.

सभी भाति के वामपंथियों को गंभीर आत्मावलोकन, आत्मालोचना, पूंजीवाद के मौजूदा स्वरूप एवं वर्गीय समीकरणो एवं एवं सहयोगों के मूल्यांकन और पुनर्गठन की सख्त आवश्यकता है, तभी जनवादी प्रक्रिया की प्रगति संभव है.

आप से क्रांति नहीं, सुधार की ही उम्मीद की जा सकती है. नख-सिख भ्रष्ट व्यवस्था में यह भी कम नहीं. सबसे बड़ी बात यह कि फिलहाल इसने फासीवादी मार्च के रास्ते में विशाल गतिरोधक खड़ा करके मोदीवादियों की नीद हराम कर दी है. मध्य वर्ग का मोदियाया हुआ धड़ा दिग्भ्रमित हो गया है क्योंकि वह अपने मोदियाने का कारण ही नहीं जानता और अपवादस्वरूप कभी दिमाग लगाता है तो उसे दंभी मसखरेपन के अलावा मोदी का कोई भी कथ्य या कृत्य याद नहीं आता जिससे वह मोदीमय हो गया था.

4 comments:

  1. परेशान मत होईये !
    यहाँ कोई कहीं नहीं जाता है !
    बस आभास होता है चला गया करके :)

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  2. 'आप' फुकोयमा के विचार की आधुनिक परिष्कृत शैली है ..यह शैली नौजवानों और छात्रों को कोर्स करीकुलम और अन्य माध्यमों से यह जमाल घोटा पिलाती है की विकास और जनकल्याण की बात राजनीति के बगैर की जा सकती है ..अन्ना के आंदोलन के वक्त केजरीवाल का कहना था की हम देश सुधारेंगे पर राजनीति मे नहीं आयेंगे .और आज वो आ गये हैं ... मेरा मनना है 'आप' राजनीति को सत्ता मे आना या फिर राजनीतिक पार्टी बनाने की परिधि में ही देखती है .उस से aage नहीं .उन्हें राजनीति को उसके ऐतिहासिक परपेक्ष्य में देखना नहीं आता है ..बल्कि मुझे तो राजनीति पर उनकी समझ पर ही शक है .और दुनिया भर में कॉर्पोरेट लोगों को Diploticized करना chahta hai....और आप जैसे प्रयोग उस ही Diploticization का एक मामला प्रतीत होता है .हो सकता है में गलत भी हो सकता हूँ ..पर वर्तमान मे आप पर ये मेरे विचार हैं

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  3. सभी भाति के वामपंथियों को गंभीर आत्मावलोकन, आत्मालोचना, पूंजीवाद के मौजूदा स्वरूप एवं वर्गीय समीकरणो एवं एवं सहयोगों के मूल्यांकन और पुनर्गठन की सख्त आवश्यकता है, तभी जनवादी प्रक्रिया की प्रगति संभव है.

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  4. आप से क्रांति नहीं, सुधार की ही उम्मीद की जा सकती है. नख-सिख भ्रष्ट व्यवस्था में यह भी कम नहीं. सबसे बड़ी बात यह कि फिलहाल इसने फासीवादी मार्च के रास्ते में विशाल गतिरोधक खड़ा करके मोदीवादियों की नीद हराम कर दी है. मध्य वर्ग का मोदियाया हुआ धड़ा दिग्भ्रमित हो गया है क्योंकि वह अपने मोदियाने का कारण ही नहीं जानता और अपवादस्वरूप कभी दिमाग लगाता है तो उसे दंभी मसखरेपन के अलावा मोदी का कोई भी कथ्य या कृत्य याद नहीं आता जिससे वह मोदीमय हो गया था.

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