Wednesday, January 15, 2014

अकेला एकांत

अकेला एकांत 
जंगल तो हमें वैसे भी जाना है, वह हमें चुने 
इससे अच्छा, उसका हमसे चुना जाना है
खोज लेते हैं प्रतिकूल में, अभिशाप के भेष में बरदान
चुनते हैं राह संघर्षों की, देते दुश्मन को अभयदान
दें ग़र वो हर इंसान को बस इंसानी सम्मान
आते हैं राह-ए-जंग में, कई उतार-चढ़ाव
ये तो हैं रास्ते के छोटे-मोटे पड़ाव
मिलती है संघर्षों से गजब की ताकत
खत्म कर देती है बिघ्न-बाधा की विसात
कर देती है मुश्किलों को आसान 
और प्रतिकूल को अनुकूल के समान
हम होते नहीं अकेले, चुनते हैं एकांत 
मनते-रचते हैं भावी संघर्षों का वृत्तांत 
ऐसा नहीं है, नहीं है संघषर्षों का आदि-अंत
चलेगा लेकिन तब तक
होता नहीं शोषण-दमन का अंत जब तक 
[ईमि/16.01.2014]

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