331
साहब के कुत्ते
साहब से ज्यादा
खतऱनाक हैं साहब के कुत्ते
हैं हर आने जाने
वाले पर जो बेबात भौंकते
घोंपते हैं छुरा
अपनी ही जमात की पीठ में
होते हैं
उल्लसित हैवानियत की जीत में
ऐंठ जाते हैं
पाते ही आश्रय कुर्सी का
दुम हिलाते हैं
दिखते ही टुकड़ा हड्डी का
रथ के नीचे चलते
हुए सोचते यही सारथी हैं
अनुशासन के
ज़ीरो पावर बल्ब के महारथी हैं
झुंड में होते
हैं तो हैं शेर हो जाते
पत्थर उठाते ही
भागने में देर नहीं करते
14 इंजक्शनों का डर होता है प्यार-पुचकार में इनके
साहब से ज्यादा
खतरनाक हैं साहब के कुत्ते
[ईमि/03.01.2014]
332
वो इश्क ही क्या
जो हो न बेपनाह
तभी तो लुत्फ है
कहने में वाह और आह
[ईमि/05.01.2013]
333
करते करते
तुमसे चैटालाप लिखने लगा मैं प्रेमालाप
हो ग़र उम्र 60 के करीब लगती ये बात
अज़ीब
[06.01.2013]
334
डर गए थे वे जब हमने डरना छोड़ दिया
डर गए थे वे जब हमने डरना छोड़ दिया
विक्षिप्त हो गए
जो हमने लड़ना सीख लिया
देख हमारी
निर्भीक जुर्रत हुआ उन्हें संताप
बदले में करते
हैं डराने का आत्मघाती प्रलाप
बन गया है कलम
हमारा अब परमाणु बम
मंज़िलें जुल्मी वर्चस्व
की ढहेंगी धमाधम
खंडहर को इस
दुर्मिग के करेंगे हम समतल
बनाएंगे
इंसानियत का इक सुंदर महल
न होगा कोई आम
वहां न ही कोई खास
वर्चस्व की होगी
नहीं कोई भी बकवास
होंगे रिश्ते
पारदर्शी जनतांत्रिक पारस्परिता के
अवश्यंभावी मानव
-मुक्ति की दूरदर्शिता के
[ईमि/06.01.2014]
335
पहुच रहे हैं
तेजी से 60 के करीब
बाकी है लिखना
अभी उम्र की नसीब
[ईमि/07.01.2014]
336
तुम पर कुछ
पंक्तियां क्या,
लिख चुका हूं नग़में
तमाम
लिखूं शायद और
भी गज़लें
कि बन जाये पूरा
दीवान
[ईमि/07.01.214]
337
मिलता नहीं कुछ
खैरात में
लड़ना पड़ता है
हक़ के एक एक इंच के लिए
बिना लड़े कुछ
नहीं मिलता
पूछा सवाल पाश
ने हम लड़े क्यों नहीं
और किया था ऐलान, हम लड़ेंगे साथी
क्योंकि बीच का
कोई रास्ता नहीं होता
[ईमि/08.01.2014]
338
सत्ता के सारे
पुर्जे करा जाते हैं बीमा
कई-कई पीढ़ियों
का
अनजान इस सच्चाई
से कि
बदल जायेगी
टेक्नालजी अगली पीढ़ी तक
हो जायेंगे ये
बीमे दिवालिये निगमों के सामान
नहीं मिलती
इन्हें जगह किसी संग्रहालय में
मंज़िल बनती है
इनकी इतिहास का कूड़ादान
[ईमि/07.01.2014]
339
तलवार की नहीं
कलम की होगी यह जंग
भरेगा जो शब्दों
में इंसाफी विचारों का रंग
होगा जब व्यापक
इंक़िलाबी जनमत
खत्म हो जाएगी
तलवार की जहमत
तोप चलाने को
मालिक की नहीं मिलेगा मजदूर
बनने को इंसान
होगा वह भी मजबूर
[ईमि/10.01.2013]
340
खोती रही गज़ल
ग़र गेसुओं के जाल में
दफ्न हो जाएगी
जल्दी काल के गाल में
ले चलो इसे
महकूमों-मज़लूमों के पास
न खोयेंगे आप और
न होगी ग़ज़ल उदास
बना दो ग़जडल को
मेहनतकश का नारा
हो गुंजित जिससे
इंसानी गगन सारा
[ईमि/11.01.2014]
वाह !
ReplyDeleteशुक्रिया
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