Saturday, January 11, 2014

क्षणिकाएं 12 (331-40)

331
साहब के कुत्ते
साहब से ज्यादा खतऱनाक हैं साहब के कुत्ते
हैं हर आने जाने वाले पर जो बेबात भौंकते
घोंपते हैं छुरा अपनी ही जमात की पीठ में
होते हैं उल्लसित हैवानियत की जीत में
ऐंठ जाते हैं पाते ही आश्रय कुर्सी का
दुम हिलाते हैं दिखते ही टुकड़ा हड्डी का
रथ के नीचे चलते हुए सोचते यही सारथी हैं
अनुशासन के ज़ीरो पावर बल्ब के महारथी हैं
झुंड में होते हैं तो  हैं शेर हो जाते
पत्थर उठाते ही भागने में देर नहीं करते
14 इंजक्शनों का डर होता है प्यार-पुचकार में इनके
साहब से ज्यादा खतरनाक हैं साहब के कुत्ते
[ईमि/03.01.2014]
332
वो इश्क ही क्या जो हो न बेपनाह
तभी तो लुत्फ है कहने में वाह और आह
[ईमि/05.01.2013]
333
करते करते तुमसे चैटालाप लिखने लगा मैं प्रेमालाप
हो ग़र उम्र 60 के करीब लगती ये बात अज़ीब
[06.01.2013]
334
डर गए थे वे जब हमने डरना छोड़ दिया
विक्षिप्त हो गए जो हमने लड़ना सीख लिया
देख हमारी निर्भीक जुर्रत हुआ उन्हें संताप
बदले में करते हैं डराने का आत्मघाती प्रलाप
बन गया है कलम हमारा अब परमाणु बम
 मंज़िलें जुल्मी वर्चस्व की ढहेंगी धमाधम
खंडहर को इस दुर्मिग के करेंगे हम समतल
बनाएंगे इंसानियत का इक सुंदर महल
न होगा कोई आम वहां न ही कोई खास
वर्चस्व की होगी नहीं कोई भी बकवास
होंगे रिश्ते पारदर्शी जनतांत्रिक पारस्परिता के
अवश्यंभावी मानव -मुक्ति की दूरदर्शिता के
[ईमि/06.01.2014]
335
पहुच रहे हैं तेजी से 60 के करीब
बाकी है लिखना अभी उम्र की नसीब 
[ईमि/07.01.2014]
336
तुम पर कुछ पंक्तियां क्या,
 लिख चुका हूं नग़में तमाम
लिखूं शायद और भी गज़लें 
कि बन जाये पूरा दीवान
[ईमि/07.01.214]
337
मिलता नहीं कुछ खैरात में
लड़ना पड़ता है हक़ के एक एक इंच के लिए
बिना लड़े कुछ नहीं मिलता
पूछा सवाल पाश ने हम लड़े क्यों नहीं
और किया था ऐलान, हम लड़ेंगे साथी
क्योंकि बीच का कोई रास्ता नहीं होता
[ईमि/08.01.2014]
338
सत्ता के सारे  पुर्जे करा जाते हैं बीमा 
कई-कई पीढ़ियों का 
अनजान इस सच्चाई  से कि
बदल जायेगी टेक्नालजी अगली पीढ़ी तक
हो जायेंगे ये बीमे दिवालिये निगमों के सामान
नहीं मिलती इन्हें जगह किसी संग्रहालय में
मंज़िल बनती है इनकी इतिहास का कूड़ादान
[ईमि/07.01.2014]
339
तलवार की नहीं कलम की  होगी यह जंग
भरेगा जो शब्दों में इंसाफी विचारों का रंग
होगा जब व्यापक इंक़िलाबी जनमत
खत्म हो जाएगी तलवार की जहमत
तोप चलाने को मालिक की नहीं मिलेगा मजदूर
बनने को इंसान होगा वह भी मजबूर
[ईमि/10.01.2013]
340
खोती रही गज़ल ग़र गेसुओं के जाल में
दफ्न हो जाएगी जल्दी काल के गाल में 
ले चलो इसे महकूमों-मज़लूमों के पास 
न खोयेंगे आप और न होगी ग़ज़ल उदास
बना दो ग़जडल को मेहनतकश का नारा
हो गुंजित जिससे इंसानी गगन सारा 
[ईमि/11.01.2014]
















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