वह शाम थी हमारी आखिरी मुलाकात की शाम
उसके बाद मिले तो देने को आखिरी लाल सलाम
खो गया किन बादलों में जगमगाता खुर्शीद
छोड़ गया पीछे अनगिनत बिलखते मुरीद
क़ातिल की बेचैनी का सबब है अब नाम उसका
फिरकापरस्ती से फैसलाकुन जंग का पैगाम उसका
जाने को तो जायेंगे हम सभी एक-न-एक दिन
कलम रहेगा सदा ही आबाद उसका लेकिन
काश! वह कुछ दिन और न छोड़ता यह दुनिया
और भी समृद्ध होती इंकिलाबी इल्म की दुनिया
अमन-ओ-चैन का था वह एक ज़ुनूनी रहबर
यादों के अनंत कारवां में खो गये जनाब गब्बर
[ईमि/01.02.2014]
बहुत सुंदर !
ReplyDeleteशुक्रिया
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