Tuesday, January 28, 2014

य़े नन्हीं लड़कियां

जंगल-जंगल घूमती य़े नन्हीं लड़कियां
लौट रही हैं घर लादे सर पर लकड़ियां
आज जलेगा चूल्हा और बनेगा भात 
खायेंगी भरपेट आज बहुत दिनों के बाद
जायेंगी स्कूल फिर चलता जो नीम तले 
दिलों में इनके भी ज्ञान का अरमान पले 
मास्टर इन्हें मार-पीट भगाता है
नंगे-भूखों को कहीं कोई पढ़ाता है?
पढ़-लिख लेगी ग़र ये आदिवासी लड़की
पड़ जायेगी महलों में नौकरानी का कड़की
है सबको शिक्षा के अधिकार का कानून
ये मास्टर है मगर यहां अफलातून 
इन लड़कियों में भी है लेकिन ग़जब का जुनून 
तोड़ देती हैं सारे अफलातूनी कानून
ये पढ़ने की अपनी जिद पर अड़ी रहीं
स्कूल के दरवाजे पर डटकर खड़ी रहीं
देख इन्हें आ गयीं और भी लड़कियां अनेक
घेरकर स्कूल लिया मास्टर को छेंक 
छीन लिया बेंत और दूर दिया फेंक
देख ये अज़म-ए-ज़ुनूं दिया मास्टर ने घुटने टेक
बदल दिया इस बात ने मास्टर की सोच
करने लगा वह अपने किये पर अफ्शोस
पढ़-लिख कर ये लड़कियां रखेंगी अपनी बात
पढ़ेंगी-लड़ेंगी-बढ़ेंगी और बदलेंगी हालात
[ईमि/29.01.2014]

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