केजरीवाल के एनजीओ की फारेन फंडिंग की चर्चा पर ओम थानवी की बात पर एक फेसबुक मित्र की पोस्ट पर एक मोदीवादी सज्जन ने लिखा कि उनके राजस्थान में ऐसे देशद्रोही कैसे पैदा हो गए. उस पर मेरा कमेंटः
केजरीवाल या ओम थानवी देशद्रोही हैं कि नहीं समय बताएगा, लेकिन राजस्थान में काफी देशद्रोही पैदा किये हैं. ज्यातर रजवाड़े अंग्रेजों के पिट्ठू थे. दूसरे प्रदेशों से भी देशद्रोहियों के वंशजों शादी के माध्यम से आयातित करके प्रदेश का सिरमौर बनाया है. सिंधिया और अंग्रेजों के अन्य वफादार रजवाड़ों ने 1857 के किसान संग्राम के विरुद्ध सेना भेजकर देश के आवाम के साथ गद्दारी न की होती तो भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सफल हो जाता और मुल्क 90 साल पहले औपनिवेशिक गुलामी से मुक्त हो गया होता. गौरतलब है कि स्वतंत्रता के बाद इनमें से ज्यादातर गद्दार रजवाड़ों के वंशज जनसंघ/भाजपा की शोभा बढ़ाते रहे हैं. "आप" के उभार से सबसे ज्यादा बौखलाहट इतिहासबोध से मुक्त, जनता की संपदा देशी-विदेशी पूंजीपतियों को लुटाने वाले और मुल्क में सांप्रदायिक नफरत की खेती करने वाले नरेंद्र मोदी जी के विद्वान भक्तों में दिख रही है. वैचारिक दिवालिएपन के शिकार मोदीवादी विद्वान, मोदी जी का एक कथ्य या कृत्य नहीं उद्धृत करते जिससे वे राष्ट्र के सर्वोच्च नेतृत्व के दावेदार साबित हों.
किसी और ने प्रदेश की बात उठा दिया था. आपसे बिल्कुल सहमत हूं. जिस तरह साधु की जात नहीं होती उसी तरह देशभक्तों और गद्दारों का कोई गांव-प्रदेश नहीं होता. खास प्रदेश का जिक्र प्रसंगवश, संयोगात हो गया. उत्तर प्रदेश में शिविरों में ठंड से मरते बच्चों की चिंत्ता छोड़, आधुनिक नीरो करोड़ों खर्च कर सैफई महोत्सव मनाते हैं.
शत-प्रतिशत सहमत. किसी का भी मूल्यांकन उसी के कृत्यों के आधार पर होनी चाहिए. पूर्वजों के नहीं. लेकिन अंग्रेजी पिटेठू, सामंती नवाबों के वंशज इसी विरासत और जनतांत्रिक जनचेतना का अभाव के चलते जनतांत्रिक नवाब बन सके न कि किसी राजनैतिक सद्गुण या बौद्धिक मेधा के चलते. बात देभक्ति और गद्दारी की हो रही थी, मेरा सिर्फ यह कहना है कि जैसे साधु की कोई जाति नहीं वैसे ही देशभक्तों या गद्दारों का कोई गांव-देश नहीं होता.
Vivek Kant MishraWhat do you mean by so-called radicalism? “To be radical is to grasp things by the root.” (Karl Marx, A Contribution to the Hegel's Philosophy of Rights) And for a man, he himself is the root. Therefore, to be radical one has to begin with questioning one's own mindset of acquired moralities in course of of socialization and change, unlearn them and replace them with acquired moralities. Some people try to defy the laws of change and stagnate. My opposition to Modi is not to individual but to the regressive, communal politics of hatred, which he represents.
केजरीवाल या ओम थानवी देशद्रोही हैं कि नहीं समय बताएगा, लेकिन राजस्थान में काफी देशद्रोही पैदा किये हैं. ज्यातर रजवाड़े अंग्रेजों के पिट्ठू थे. दूसरे प्रदेशों से भी देशद्रोहियों के वंशजों शादी के माध्यम से आयातित करके प्रदेश का सिरमौर बनाया है. सिंधिया और अंग्रेजों के अन्य वफादार रजवाड़ों ने 1857 के किसान संग्राम के विरुद्ध सेना भेजकर देश के आवाम के साथ गद्दारी न की होती तो भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सफल हो जाता और मुल्क 90 साल पहले औपनिवेशिक गुलामी से मुक्त हो गया होता. गौरतलब है कि स्वतंत्रता के बाद इनमें से ज्यादातर गद्दार रजवाड़ों के वंशज जनसंघ/भाजपा की शोभा बढ़ाते रहे हैं. "आप" के उभार से सबसे ज्यादा बौखलाहट इतिहासबोध से मुक्त, जनता की संपदा देशी-विदेशी पूंजीपतियों को लुटाने वाले और मुल्क में सांप्रदायिक नफरत की खेती करने वाले नरेंद्र मोदी जी के विद्वान भक्तों में दिख रही है. वैचारिक दिवालिएपन के शिकार मोदीवादी विद्वान, मोदी जी का एक कथ्य या कृत्य नहीं उद्धृत करते जिससे वे राष्ट्र के सर्वोच्च नेतृत्व के दावेदार साबित हों.
किसी और ने प्रदेश की बात उठा दिया था. आपसे बिल्कुल सहमत हूं. जिस तरह साधु की जात नहीं होती उसी तरह देशभक्तों और गद्दारों का कोई गांव-प्रदेश नहीं होता. खास प्रदेश का जिक्र प्रसंगवश, संयोगात हो गया. उत्तर प्रदेश में शिविरों में ठंड से मरते बच्चों की चिंत्ता छोड़, आधुनिक नीरो करोड़ों खर्च कर सैफई महोत्सव मनाते हैं.
शत-प्रतिशत सहमत. किसी का भी मूल्यांकन उसी के कृत्यों के आधार पर होनी चाहिए. पूर्वजों के नहीं. लेकिन अंग्रेजी पिटेठू, सामंती नवाबों के वंशज इसी विरासत और जनतांत्रिक जनचेतना का अभाव के चलते जनतांत्रिक नवाब बन सके न कि किसी राजनैतिक सद्गुण या बौद्धिक मेधा के चलते. बात देभक्ति और गद्दारी की हो रही थी, मेरा सिर्फ यह कहना है कि जैसे साधु की कोई जाति नहीं वैसे ही देशभक्तों या गद्दारों का कोई गांव-देश नहीं होता.
Vivek Kant MishraWhat do you mean by so-called radicalism? “To be radical is to grasp things by the root.” (Karl Marx, A Contribution to the Hegel's Philosophy of Rights) And for a man, he himself is the root. Therefore, to be radical one has to begin with questioning one's own mindset of acquired moralities in course of of socialization and change, unlearn them and replace them with acquired moralities. Some people try to defy the laws of change and stagnate. My opposition to Modi is not to individual but to the regressive, communal politics of hatred, which he represents.
लोकतंत्र कहीं खो गया है
ReplyDeleteहर जगह कोई ना कोई
एक दादा हो गया है :)
लोकतंत्र से लोक गायब हो गया है
ReplyDeleteकातिल ही सूबे का नायक हो गया है