Wednesday, April 30, 2014

गुफ्तगू की ये शर्त

गुफ्तगू की ये शर्त तो फिर भी ठीक है
चिंता की बात सिमटना गणित का ज्ञान
बताता दुनियां की जनसंख्या जो सिर्फ एक
अर्जुन के लक्ष्य के व्यर्थ भागों की तरह
 दृष्टि सीमा लांघ जाते हैं शेष
(ईमिः29.04.2014)

लोहा ज़ुल्म से


आओ लेते हैं लोहा  ज़ुल्म से मिलकर सभी
भूलकर भेदभाव, मनमुटाव  आपसी अभी
लिए हाथों में हाथ जब चलेंगे साथ साथ
होगा मजबूत बहुत सामूहिकता हाथ
मिलजुल इंसाफ के लिए साथ लड़ने से
होती है आसानी मतभेद दूर करने में
देखकर हमारी जुझारू एकता अखंड
ज़ुल्म के खेमें में मच जाएगा हड़कंप
सुनकर हमारी सामूहिक ललकार
दुश्मन के खेमें में मचेगा हाहाकार
बौखलाहट में करेगा आत्मघाती वार
जाएगा आधी लड़ाई तभी वो हार
होगा दुर्ग-ए-ज़ुल्म पर जब लामबंद वार
ध्वस्त हो जाएगी तब इसकी दीवार
होगें खत्म धरती से सारे अत्याचार
जीतेगा इंसाफ होगी नाइंसाफी की हार
सलाम
(ईमिः30.04.2014)

I was not even 18

Some nostalgia some Vodka  and intense love making
I felt having gone back into 30 years old past
I felt him the same as I felt then in fantasies   
I was not even eighteen 
when I saw him first flirting with girls in a subtle way
then I realized the girls were flirting not he
I felt the penetrating glaze of the looks of his eyes
then I realized he was not even looking at me
yet I felt a unique sensation between my thighs
and heavenly when he held me by he shoulder
I feared he may put his hands in my skirts
but that was my imagination
but would come every night in my fantasies
and would make intense love
I knew I was in love
It was 30 years ago when I was not even eighteen.

तेग-ए-तेवर

बदल दे जिसे वक़्त वो तेग-ए-तेवर ही क्या
हैं गर इरादे बुलंद रोक नहीं सकता उसे तूफाँ
(ईमिः30.04.2014)

The Neo-liberal Princes of Machiavelli 1

The Neo-liberal Princes of Machiavelli 1

वियोपरांत राज्य स्थापित करने वाले शासक को मैक्यावेली सलाह देता है कि उसे सबसे अधिक सजगअपने पुराने सहयोगियों से रहना चाहिए, खासकर खुद को किंगमेकर समझने वालों से. जो सहयोगी से दरबारी बनकर फर्शी बजा रहे हैं उनके दिमाग में भी फर्शी नगाने की बजाय सिंहासन पर बैठने का ख्याल आएगा ही. सबसे पहले इन्हें किनारे करने की कोशिस करनी चाहिए, चाहे जितने भी छलकपट, धोखाधड़ी और फरेब करना पड़े क्योंकि साध्य की सुचिता होती है साधन की नहीं. मोदी ने पार्टी के अंदरूनी दावेदाररों को विजय के पहले ही किनारे लगा दिया. अकेले मोदी जी ही राष्ट्रीय नेता हैं, बाकी सब -- पूर्व अध्यक्ष और राजग शासनकाल मेँ किसी ज्योतिषी खे कहने पर प्रधानमंत्री बनने के लिए इलाहाबाद के बाल्टी बाबा को टेंडर देने वाले, प्रोफसर मुरली मनोहर जोशी, 1984 में सिखविरोधी नरसंहार द्वारा निर्मित उंमाद के ध्रुवीकरण से राजीव गांधी की अभूतपूर्व सफलता से प्रेरित, शिलापूजनों और रथयात्रा से मुल्क के माहौल को सांप्रदायिकता से विषाक्त कर शासक बनने का सपना दिखने वाले और 2002 में अपने चहेते मोदी की कवच बन बाजपेयी के राजधर्म को फिसड्डी की तरह मसल देने वाले, पूर्व अध्यक्ष आडवानी, अपने को बाबरी विध्वंस की नायिका मानने वाली उमा भारती, अपने को बीजेपी का विचारक मानने वाला जेटली, उप्र में प्रदेश से देश के नेता की कतार में लगे कलराज मिश्र, केशरीनाथ त्रिपाठी .... समेत सभी नेताओं को अपने चुनाव क्षेत्रों में सीमित कर दिया. देश का दौरा सिर्फ एक नेता कर रहा है. अंदरखाने की खबर है कि अमित शाह इनमें से जोशी और केसरीनाथ समेत कइयों को हराने की जुगाड़ में है. इसमें राजनाथ सिंह की मिलीभगत का शक है जिससे भाजपा का ब्राह्मण कैडर बदले गाज़ियाबाद से भागकर लालजी चंडन को विस्थापित कर लखनऊ से लड़ने वाले राजनाथ को हराने की जुगाड़ में है. जोशी द्वारा मोदी लहर केखंडन का अपमान वह भूल नहीं पाया है और न ही जोशी भूल पोए हैं विस्थापन का अपमान. मोदी ने मैक्यावली पढ़ा नहीं अपने किसी अधकचरी जानकारी वाले सलाहकार की सलाह पर चल रहा है इस लिए जिस काम की सलाह मैक्यावली विजय के बाद करने की देता है, मोदी जी ने पहले ही शुरू करके राह दुरूह कऱ लिया. बाबरी विध्वंस के नायक आडवाणी का अभियान जनता ने रोक दिया और गठबंधन की मजबूरी में बाजपेयी के सिर पर ताज़ चला गया.(यह कमेंट तो बढ़ता जा रहा है)

मोदी ने मैक्यावली की रचनाएं तो पढ़ा नहीं होगा लेकिन आधुनिक राजनीतिक सिद्धांत की बुनियाद रखने वाले मौक्यावली  नवजागरण काल क्लासिक, "Prince" आज लिख रहे होते तो मोदी उनके ज्वलंत, जीवंत, जीवित माॉडल होते. मैक्यावली का समकालीन जीवित मॉडल था कार्डिनल सीजर बोर्जियाज जो बाद में पोप अलेक्ज़ेंडर षष्टम बना और जिससे घणतांत्रिक फ्लोरेंस की चांसरी के सेक्रेटरी के रूप में अपने रोम प्रवास के दौरान कई बार मिल चुके थे और चर्च की राजनैतिक सत्ता के विस्तार के लिए उसकी क्रूरताओं के प्रत्यक्षदर्शी थे. सीजर की अपनी जेल थी, जल्लाद और पेशेवर हत्यारे थे तथा ज़हरनवीश थे. बाद की कोटि के कारिंदों की व्यस्तता इनमें सर्वाधिक थी. मैक्यावली लिखते हैं कि सीजर ने लोगों के साथ धोखाधड़ी के अलावा कुछ नहीं किया और इसके लिए उसे समुचित अवसर भी मिलते रहे, जिसे वह निहायत खूबसूरती से (मैग्नीफिसेंटली) अंज़ाम देता था. मैक्यावली सीजर बोर्जियाज का प्रशंसक था तो उसके बेटे का महिमा-मंडन करता था जो क्रूरता और धूर्तता में अपने बाप का भी बाप था. बाप के उत्तराधिकारी बनने के अभियान में उसने अपने भाई और बहनोेई को टपकवा दिया क्योंकि पोप एक-दो बार जब रोम से बाहर गया तो अपनी बेटी को चार्ज देकर गया था. मैक्यावली को उसके आपराधिक कृत्यों से कोई परेशानी नहीं थी बस एक ही शिकायत थी कि फरेब में अतिआत्मविश्वास जनित शिथिलता के कारण बाप की मौत के बाद पोप नहीं बन पाया.
......जारी

Tuesday, April 29, 2014

जनवाद 1

 लालू आदि को इतिहास बदलने का मौका मिला था लेकिन वे गांधी मैदान बेचने वाले जगन्नाथ की प्रतिस्पर्धा में उनके साथ मिलकर चारा खाने और उन्हीं की तरह वंशवाद फैलाने में मौका गंवा दिया. मैंने 1991 में एक लेख लिखा था जिसमें कहा गया था कि मंडल कमीशन ने और कुछ किया हो या नहीं, 2 काम जरूर किया जातिवाद से ऊपर उठने का दावा करने वाले जातिवादी सवर्णों का पर्दाफास किया और फ्रष्टाचार का जनतांत्रीकरण कर दिया. अब सिर्फ जगन्नाथ और राजीव गांधी ही नहीं देश लूटने में लालू और माया भी सक्षम हैं. भ्रष्टाचार की सबसे बुरी मार सबसे नीचे के आदमी पर ही पड़ती है. इसे मैंने सकारात्मक परिघटना बताया था क्योंकि घोटालेबाजों में जाति के दायरे से उठकर गिरोहबंदी होगी और जनता की जातीय, काल्पनिक भाईचारे की जगह लेगी जलता की जनवादी लामबंदी. मित्र जन्म की जीववोज्ञानिक दुर्घटना से उभर कर मेरा-चोर, तेरा चोर की संकीर्णता से उभर कर विवेकसम्मत जनवादी लामबंदी में भागीदार बनें.

नहीं पढ़ा था. निंदनीय है. वैसे मैं राम की तुलना में रावण को उससे बड़ा खलनायक नहीं मानता. इस पर फिर कभी. जाति के मुद्दे पर बड़ा नेख लिखने की योजना है. जातीय फायदे के लिए वर्णाश्रमी संघी मोदी अपने को पिछड़ा प्रचारित कर रहा है और घोषणापत्र में आरक्षण का विरोध दर्ज करता है. इस मुल्कत में बौदधिक जड़ता का जिम्मेदार ब्राह्मणवादी संकीर्णतावाद ही रहा है जिसे तोड़ने के लिए हमें विवेकसम्मत चेतना के साथ आमजन यानि मेहनतकश की वैचारिक लामबंदी की आवश्कता है. 

हक़ रकीब चुनने का

उसको हक़ है तेरा रकीब चुनने का
तुम्हें हक़ नहीं उसे भला-बुरा कहने का
(ईमिः29.04.2014)

ये तो हद है

आप तो रोशनी दिखाने आए थे
आप दिया बुझाने लगे ये तो हद है
आए थे जो बेनकाब करने लुटेरों
लूट में हिस्सेदार हो गए ये तो हद है
रोटी के लिए बेचता है इंसान अपनी चमड़ी
चंद सिक्कों के लिए बेचे ज़मीर ये तो हद है
दानिशमंदी करते हैं जो दावा
फैलाने लगे जहालत ये तो हद है
(जारी)
(ईमिः30.04.2014)

साम्यवाद और जनतंत्र

Some people suffering from Modiyapa raised the issue of dichotomy b/w democracy and communism, my reply to them:

हम वामपंथी इस लोकतंत्र को वुर्ज़ुआ (पूंजीवादी लोकतंत्र) कहते हैं जिसमें से लोक उसी तरह गायब है जैसे प्लेटो की रिपब्लिक से पब्लिक. लेकिन जब भी इस पूंजीवादी लोकतंत्र पर पूंजीवादी फासीवाद का खतरा होता है, तो पूंजीवादी संविधान की रक्षा में कम्युनिस्ट अगली कतार में होते हैं. क्रिस्टोफर कॉडवेल (स्टडीज ऐंड फर्दर स्टडीज इन अ डाइंग कल्चर के लेखक)एक कम्युनिस्ट थे और अपने देश इंगलैंड में साम्राज्यवाद से लोकतंत्र को खतरे के खिलाफ लिखते रहे ऐर जब लोकतंत्र पर एक दूसरे देश स्पेन में फासीवाद का खतरा मंडरा रहा था तो कलम छोड़े बिना बंदूक उठा लिया और लोकतंत्र की रक्षा में लड़ते हुए शहीद हो गये युवा कॉमरेड कॉडवेल. जब तथाकथित अंग्रेजी लेोक तंत्र हिंदुस्तानियों के लोकतांत्रिक राष्ट्रीय आंदोलन का, भाड़े के हिंदुस्तानी सिपाहियों के बदौलत बर्बर दमन कर रहे थे, लीगी-संघी-जमाती-हिंदू महासभाई आंदोलन का विरोध करके प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से अंग्रेजों की दलाली कर रहे थे तब कम्यिस्ट पार्टी ऑफ ग्रेट ब्रिटेन के 2 कॉमरेड मेरठ कॉंसपिरेसी केस में हिंदुस्तान में जेल में बंद थे जिन्होने वापस जाने के सारे प्रलोभन टुकरा कर जेल की यातना भोगना पसंद किया. 1942 के भारत ठोड़ो आंदोलन के दौरान जब भाजपेयी और अन्य संघी क्रांतिकारियों की मुखबिरी कर रहे थे और सावरकर सभाएं करके अंग्रेजी फौज में हिंदुस्तानियों की भर्ती करवा रहा था उस समय इंगलैंड के कॉमरेड भारत छोड़ो आंदोलम के पक्ष में इंगलैंड के शहरों कस्बों में घूम घूम कर नुक्कड़ नाटक और सभाएं कर रहे थे. एक नाटक मेरठ षड्यंत्र मुकदमें पर था. जी हां हम कम्युनिस्ट इस जनतंत्र को नकली जनतंत्र मानते हैं जो जनता के नाम पर अडानियों-अंबानियों-टाटाओं-वालमार्टों-एनरॉनों-...के हितों का पोषण करता है. पूंजावाद और पूंजीवादी जनतंत्र एक दोगली(वॉस्टर्ड) व्यवस्था है जो जो कहता है कभी नहीं करती और जो करती है कभी नहीं कहती, जिसके ज्वलंत उदाहरण चुनावी पार्टियां हैं. इनके खथनी करनी के अंतर्विरोध के स्पेस का इस्तेमाल हम क्रांतिकारी जनचेतना के निर्माण में करते हैं जो काम बुतपरस्तों-मुर्दा परस्तों के मुल्क में कठिन है, लेकिन आसान काम तो हर कोई कर सकता है. आनंद की इस पोस्ट को 200 लोगों ने लाइक किया है. हम काशीवासियों के फासीवादी ताकतों के विरुद्ध संघर्ष को नैतिक समर्थन देने और राजनैतिक निर्वाण में मोदी की मदद करने बम बनारस जा रहे हैं. मोदी को मैंने सलाह दी थी कि बढ़ौदा में अपनी नाक बचाए नहीं तो दोनों जगह से हारेगा लेकिन इतिहासभोध से शून्य अहंकारी तानाशाह को सद्बुद्दइ नहीं आई और वब हर हर मोदी करवा कर नमो नमो स्वाहा करवाने पहुंच ही गया बनारस. यदि इतनी ही बिकी मीडिया की मोदी लहर है तो वह हर पार्टी के भ्रष्ट और न टिकट पाने वाले अपराधियों को क्यों उम्मीदवार बना रहा है. क्यों उदितराजों और रामविलोसों को भरती कतर रहा है. 16 मई को हार की खबर से हिटलर का यह मानसपुत्र हिटलर के अंत की भी नकल करेगा कि नहीं, कह नहीं सकता, बीबी छोड़कर सरकारी तंत्र के इस्तेमाल से सीटियाबाजी करने वाले लंपट का कदई ईमान-धरम नहीं होता. जिस भी मोदियाये ज़ाहिल से इसका एक गुण पूछिए जिसने हत्या-बलात्कार के आयोजक इस नरपिशाच को उनका आराध्य बना दिया है तो एक जवाब 16 मई. हम 16 मई भी देख लेंगे. हमारा काम है जनहित में लड़ना और जनवादी चेतना का विकास वह हम सारे जोर-जुल्म सहते हुए अंतिम सांस तक जारी रखेंगे. अंत में नमो नमो स्वाहा.

Corruption and capitalism

Corruption and the reserve army of work force (unemployment) are not the policy errors but immanently innate attributes of capitalism that transforms everything including education into salable commodity. All the political parties, as agents of the system have concurrence of interests. The ruling classes overplay their internal and mostly superfluous contradictions to blunt the edge of major contradictions.The task before us is to radicalize the social consciousness against the epochal consciousness as the ruling class ideas are ruling ideas also disseminated through various ideological apparatuses, media and education being the main. Today most of the schools, private universities/colleges are owned by land mafia and real estate mafia. 

मोदी विमर्श 27

Sumant Bhattacharya  मित्र आपके सरोकारों से सहमत हूं और आप तो इतिहासविद हैं, ऐसे ही संकट के समय फासीवाद का उदय होता है जब फ्रैंको, मुसोलिनी या हिटलर जैसा नरपिशाच महामानव बनकर उद्धारक की भूमिका में उदित होता है और मानवता पर इतने और ऐसे गहरे घाव देता है जो मानव इतिहास का नासूर बन रिसता रहता हैं. मुसोलिनी और हिटलर ने भी मोदी की तरह सबसे पहले अपनी ही पार्टी के दिग्गजों को किनारे किया था. इमर्जेंसी के पहले इंदिरा गांधी-संजय गांधी सिंड्रोम और मोदी सिंड्रोम की तुलना करो तो समझ आ जाएगा जिसने कामराज-मोरारजी-चंद्रभानि गुप्ता जैसे धुरंधरों को धूल चटाकर फासीवादी अभियान की शुरुआत किया जिसकी परिणति आपातकाल में हुई. इंदिरा गांधी प्रिविपर्स के खात्मे और बैंकों के राष्ट्रीयकरण जैसे प्रगतिशाल कार्यों से महामानव बनने और देवकांत बरुआ जैसे भांटों के जरिए भारत का पर्याय होने का प्रचार किया तो मोदी ने जनसंहार और सामूहिक बलात्कार के आयोजन से सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करके. इमर्जेंसी में धीरू भाई अंबानी कबाड़ी से अरबपति बना तो मोदी राज में उसके बेटे का साम्राज्य ज्यामितीय श्रृंखला के बढ़ा और मोदी का दोस्त अडानी की संपत्ति 300 करोड़ से बढ़कर 84,000 करोड़ हो गयी. लैंड डील का खुलासा तो आप कर ही चुके हैं. मुज़फ्फरपुर में मोदी-मुलायम की मिलीभगत के बारे में हम लिख चुके हैं. हमें फौरी और दीर्घकालीन दोनों सरोकारों से मुखातिब होना होगा. फौरी खतरा हिंदुत्व मार्का फासीवाद का है. जमानत पर छूया अपराधी अमित शाह बदले की बात करता है तो अपराधी सांसद और भाजपा उम्मीदवार राजकिशोर विरोधियों को पाकिस्तान भेजने की धमकी देता है तो कत्ल और बाहुबल की बदौलत राजनीतिज्ञ बना, सपा-बसपा में शंटिंग करने के बाद आज़मगढ़ का भाजपा सांसद रमाकांत यादव भाजपा के हिंदूसभाई, लंपट सांसद, आदित्यनाथ के साथ मिलकर आज़मगढ़ को आतंकगढ़ घोषित करके मुसलमानों और उनके समर्थकों को कब्रिस्तान या पाकिस्तान भेजने के नारों से माहौल विषाक्त कर रहा है. फौरी खतरा फासीवाद का है दीर्घकालीन सरोकार है यह लूट-खसोट की व्यवस्था बदलना. अभी संविधान की रक्षा प्राथमिकता है जनवादी जनमत तैयार करने के प्रयासों से. Yogesh Pratap Singh  असंयमित भाषा का प्रयोग नहीं करता, आक्रामक शब्दों का प्रयोग जानबूझ कर करता हूं. मानवता के बलात्कारी को नरपिशाच कहना मानवता के हत्यारे, जाहिलों के लिए समुचित शब्दों के अभाव की मजबूरी है. पढ़े-लिखे मोदियाये ज़ाहिलों से मैं लगातार को लगातार चुनौती दे रहा हूं कि सांप्रदायिक विष वमन के अलावा अपने इस महानायक का एक कथ्य या कृत्य उद्धृत करें जिससे यह नरपिशाच उनका आराध्य बन गया. 16 मई की धमकी के अलावा कोई कोई और जवाब नहीं देता. आपके पास हो तो दीजिए. विवेक ही मनुष्य को पशुकुल से अलग करता है, विवेक गिरवी रख चुके लोगों को पशु की बजाय ज़ाहिल कहना भाषा के संयम का नतीजा है. दुर्भाग्य से पढ़े-लिखे ज़ाहिलों का अनुपात अपढ़ों से ज्यादा है.

Dinesh Mishra इतिहास तो संघी अफवाहोें और कुकृत्यों तथा अंबानी-अडानी की दलाली एवं सांप्रदायिक जहालत से बदलेगा? इतिहास बीबही को दर-दर ठोकर खाने को छोड़कर एक शरीफ औरत की पुलिस लगाकर सीटियाबाजी करने वाले ज़ाहिल हत्या- बलात्कार के अधम कृत्य के संचालक को देश का नेता बनाने से बदलेगा. फढ़े-लिखे जाहिलों सा व्यवहार करने पाले संघी बंधु! अगर जरा भी दिमाग है तो उसका इस्तेमाल करके पोस्ट में कही गयी बातों का जवाब देते लेकिन संघी प्रशिक्षण तोते और भेड़ बनाता हैस विवेकशील इंसान नहीं और विवेक ही इंसान को पशुकुल से अलग करता है. 

Monday, April 28, 2014

वफा और फितरत-ए-आज़ादी

हौसला रखो, मिलेगा सिला कभी-न-कभी
वफा वैसे दखल् है फितरत-ए-आज़ादी में
तलाश-ए-वफा मेंमशगूल हो इस कदर
 कि भर चुके ज़ख़्म कब के महसूसा ही नहीं
(ईमिः28.04.2014)

Sunday, April 27, 2014

मोदी विमर्श 26

मेरी एक कविता पर पुष्पा जी  के कमेन्ट पर कमेन्ट--

पुष्पा जी मुझे पूरी दुनिया बहुत अच्छी लगती है कार्पोरेटी दलालों, संघी-जमाती-तालिबानी नर पिशाचों, मोदियाए जाहिलों और जनता के अन्य दूषणों के अलावा इंसानियत के सारी कायनात अच्छी लगती है. देश देश की जनता चलायेगी न कि गुजरात को अम्बानी-अडानी-टाटा को सुपुर्द करने वाला और किसानों आदिवासियों की जमीने छीन कर अपने कार्पोरेटी आकाओं को देकर उन्हें आत्म हत्या को मजबूर करने वाला इतिहासबोध से शून्य फासीवादी नर्पिशाच जिसने टुच्चे स्वार्थ के लिए क़त्ल-ए-आम और सामूहिक बलात्कार आयोजित किये. इस नरपिशाच की खासम-ख़ास माया कोदनानी को कल ही २८ साल की सVinod Shankar Singh  सादर प्रणाम सर, झूठ क्या है. मोदी के राज में जनसंहार और बलात्कार किसने किया? भगवान ने? हजारों सशस्त्र बजरंगियों की ट्रेन में आग किसने लगाई? अगर मोदी ने नहीं करवाया जो कि आप भी जानते हैं कि इस नरपिशाच की असलियत क्या है? तो इस नरसंहार के बाद शौर्य दिवस किसने मनवाया? हजारों लंपटों द्वारा सामूहिक बलात्कार, हत्या लूट शौर्य का काम है? अगर नहीं कराया तो रोक सका क्या? जब एक सूबे में इतने अमानवीय ?अपराध नहीं रोक सको तो देश में क्या करेगा? सर आप इस नरपिशाच की एक बात बता दीजिए जिससे आपको लगता है कि यह ज़ाहिल जिसे यह नहीं मालुम कि तक्षिला कहां है, विश्वद्रष्टा है जो 10, 000 रूपए निजी प्रचार में खर्च कर रहा है वब अपने आकाओं का ऋण लौटाने के लिए देश कितना बेचेगा? आप इसका एक वाक्य या कार्य उधृत कर दें जिससे आपका पूज्य हो गया तो मैं आपका अनुयायी बन जाऊंगा.Mayank Awasthi   मुजफ्फरनगर और शामली में संघियों ने मां के सामने बेटियों और बच्चों के सामने मां का बलात्कार मेरी बातेमं पढ़कर किया क्या? संघी तो पढ़ते ही नहीं. दिमाग और अंतरात्मा  में सामंजस्य बैठाकर सोचिए, मनुष्य का यही गुण उसे फशुकुल से फर्क करता है, इस फर्क को खत्म न करें. मोदियाये लोग सिर्फ अफवाहें फैलाते हैं और कुतर्क करते हैं. मोदी के गुरात का विकास अंबानी-अडाना-टाटा का विकास और लोगों का विनाश है. दुआ करता हूं कि आपलोगों को मोदियापे का भयंकर रोग से छुटकारा मिले. मोदियाये लंपट काशी में मोदी जी के राजनैतिक निर्वाण के आभास से बौखलाकर हुड़दंग कर रहे हैं कल की पुलिसिया पिटाई से इन संघी गुंडों का कोहराम शायद कम हो.जा हुई है और कातिलों बलात्कारियों का सरगना देश भर में वही करना चाहता है. ज़रा सोचिये अगर आप उस औरत की जगह होतीं तो कैसा लगता जिसे एजी के हवाले करने के पहले मोदी के शूर-वीरों ने गर्भ फाडकर आग के हवाले कर दिया? ज़रा सोचिए अगर आप उन सैकड़ों औरतों में एक होती जिन्हें मोदी के वीरों ने मामूहिक बलात्कार के बाद मार डाला? सोचिये अगर आप बिलकिस बानो होती तो कैसा लगता जिसके बच्चे को उसके सामने मार डाला गया. और जो दर्जनों बजरंगियों की टांगों के नीचे से गुजरने के बाद मरे होने का नाटक करने के बाद बच गयी जिसे मैं २०००२ में गोधरा के एक शिविर में मिला था. क्लीन चित की सफाई धूर्तता है. कोए महिला अगर बीबी छोडकर सेतियाबाजी करने वाले मर्दवादी तानाशाह का समर्थन करे तो उसके विवेक पर संदेह होता हा. क्षमा कीजियेगा..

Vinod Shankar Singh  सादर प्रणाम सर, झूठ क्या है. मोदी के राज में जनसंहार और बलात्कार किसने किया? भगवान ने? हजारों सशस्त्र बजरंगियों की ट्रेन में आग किसने लगाई? अगर मोदी ने नहीं करवाया जो कि आप भी जानते हैं कि इस नरपिशाच की असलियत क्या है? तो इस नरसंहार के बाद शौर्य दिवस किसने मनवाया? हजारों लंपटों द्वारा सामूहिक बलात्कार, हत्या लूट शौर्य का काम है? अगर नहीं कराया तो रोक सका क्या? जब एक सूबे में इतने अमानवीय ?अपराध नहीं रोक सको तो देश में क्या करेगा? सर आप इस नरपिशाच की एक बात बता दीजिए जिससे आपको लगता है कि यह ज़ाहिल जिसे यह नहीं मालुम कि तक्षिला कहां है, विश्वद्रष्टा है जो 10, 000 रूपए निजी प्रचार में खर्च कर रहा है वब अपने आकाओं का ऋण लौटाने के लिए देश कितना बेचेगा? आप इसका एक वाक्य या कार्य उधृत कर दें जिससे आपका पूज्य हो गया तो मैं आपका अनुयायी बन जाऊंगा.Mayank Awasthi   मुजफ्फरनगर और शामली में संघियों ने मां के सामने बेटियों और बच्चों के सामने मां का बलात्कार मेरी बातेमं पढ़कर किया क्या? संघी तो पढ़ते ही नहीं. दिमाग और अंतरात्मा  में सामंजस्य बैठाकर सोचिए, मनुष्य का यही गुण उसे फशुकुल से फर्क करता है, इस फर्क को खत्म न करें. मोदियाये लोग सिर्फ अफवाहें फैलाते हैं और कुतर्क करते हैं. मोदी के गुरात का विकास अंबानी-अडाना-टाटा का विकास और लोगों का विनाश है. दुआ करता हूं कि आपलोगों को मोदियापे का भयंकर रोग से छुटकारा मिले. मोदियाये लंपट काशी में मोदी जी के राजनैतिक निर्वाण के आभास से बौखलाकर हुड़दंग कर रहे हैं कल की पुलिसिया पिटाई से इन संघी गुंडों का कोहराम शायद कम हो.

Pushpa Tiwari पुष्पा जी मैंने तो मुहम्मद गजनी को भी सोमनाथ का मंदिर तोड़कर टनों  सोना-चांदी भी लूटते नहीं देखा. लेकिन इतने सोना चादी की जरूरत भगवान को कत्यों होती थी या है? और भगवान के शूर-वीर भक्त क्या कर रहे थे जब वह कुछ हजार घुड़सवारों के साथ शूरवीरों की धरती चीरते हुए सोमनाथ के खजाने तक पहुंचा? हां मैं मार्च 2002 में 15 दिन गुजरात के विभिन्न प्रभावित क्षेत्रों में एक फैक्टफाइंडिंग टीम के सदस्य के रूप में, बिलकिस बानो समेत तमाम पीड़ितो, प्रताड़कों और राहत कर्मियों से मिला था और कुछ अनाथ हो चुके बच्चों के साथ दिल्ली में हम लोगों ने एक प्रेस कांफ्रेंस भी किया था. अहमदाबाद से दिल्ली की यात्रा में कुछ नरपिशाचों से मिला था जो नरसंहार और बलात्कार का महिमा मंडन कर रहे थे. कुछ बातें सोचकर तो आज भी दिल दहल जाता है. एकत शाफ्टवेयर युवा इंजीनियर, जिसने गर्व से बताया कि एहसान जाफरी पर हमला करने वाली भीड़ में वह भी था. जब मैंने पूछा 13-14 साल की बच्चियों के बलात्कार में कौन सी बहादुरी है तो उसने जो कहा "सर उन्हे ऊपर भेजना ही था तो संतुष्ट करके भेजें". पुष्पा जी आपने मोदी का विकास देखा है? मैंने देखा है गुजरात के कुपोषित बच्चों को और मिला हूं आत्महत्या करने वाले किसानों के परिजनों से जिनकी हजारों एकड़ जमीनें मोदी ने अपने बाप की जागीर समझकर अपने थैलीशाह बापों -- अडानी-अंबानी टाटा को मिट्टी के भाव बेच दिया. मैंने सीएजी की रिपोर्ट पढ़ा है जिसमें बताया गया है कि मोदी ने 17600 करोड़ टाटा को 0.1फीसदी व्याजदर पर टाटा को दे दिया जो कि गुजरात के सालाना बजट का 25 फीसदी है. मैंने मोदी के ऊल-जलूल वक्तव्य पढ़े हैं जिस व्यक्ति को भारत का इतिहास का कुज्ञान हो वह देश कहां ले जाएगा?

पुष्पा जी मैंने मुजफ्फर नगर और शामली में संमघी वीरों द्वारा बाप को बांकी से काटकर मां के सामने बेटियों और बच्चों के सामने माँ का बलात्कार करते अपनी आंखों से नहीं देखा. देखता तो जान  दे देता इसे रोकने में. बलत्कृत औरतों से जरूर मिला हूं और संघी आतताइयों से मिला हूं जो बहू-बेटियों की इज्जत के नाम पर दूसरी बहू बेटियों की इज्जत लूटने को जायज ठहराया, हमारे पास उनरके रिकॉर्डेड बयान हैं जिसका ज़िक्र हमने अपनू रिपोर्ट में किया है. इस गांव के मुसलमानों का कुसूर यह था कि कुछ जाट लड़कियां अपने मुसलमान प्रेमियों के साथ भाग गयीं थी. मुरली मनोहर जोशी की वेटी शाहनवाज खान नाम के मुसलमान से शादी करो तो वह राष्ट्र धर्म है और साधारण जाट लड़की अपने मुस्लिम प्रेमी के साथ चली जाय तो लव जेहाद हो जाता है.

Mayank Awasthi  ईश्वर की धारणा पर अलग बहस हो सकती है मौं किसी खुदा-ना-खुदा को नहीं मानता. वैचारिक विकृति मूढ़ता की तार्किक परिणति है. मैं आरयसयस में रह चुका हूं और 186-87 में सांप्रदायिकता और औरत के सवाल पर एक शोध किया था. जिसमें सारा उपलब्ध संघी और जमाती साहित्य पढ़ डाला. वह लेख कंप्यटर-युग के पहले का है कभी स्कैन करके डालूंगा. मयंक जी मैं पूर्ईवाग्रहों के आधार पर नहीं, तथ्यों और सत्यापित विचारों के आधार पर ही लिखता हूं. ये बातें आप गुजरात सरकार की आॉफिसियल वेबसाइट पर और सीएजी रिपोर्ट से सत्यापित कर सकते हैं. गूगलल पर गुरात की सीएजी रिपोर्ट में खोज सकते हैं. संघियों की तरह अफवाहग जनित ज्ञान में नहीं यकीन करता.

मित्र मैं किसी से घृणा नहीं करता. गांधी की एक बात मुझे बहुत अच्छी लगती है, पाप से घृणा करो, पापी से नहीं. मैं आप सबसे बेइम्तहां मुहब्बत करता हूं इसीलिए अप्रिय सत्य बोलता रहता हूं सस्ती लोकप्रियता की परवाह किए बिना. मेरी इस आदत के शिकार विद्यार्थी मेरा एहसान मानते हैं. मैं कभी किसी परक व्यक्तिगत आक्षेप नहीं करता.

वही तो मैं भी कह रहा हूं. शामली के विस्थापित और बलत्कृत महिलाओं से मिलकर मुझे भारतवासी होने में शर्म महसूस हो रहा था. आज भी आप बुढ़ाना के शिविरों में इन पीड़ितों से मिल सकते हैं. मेरे पास मुहम्मदपुर में 9 अक्टूवर में खाप पंचायत के भाषणों की रिकॉर्डिंग है जिसमें खाप के नेताओं ने डाटों द्वारा लब जेहाद का बदला लेने के लिए बलात्कारियों के पुरुषार्थ का महिमामंडन है और इनका नेता बाबा हरकिशन अमित शाह का खास आदमी है. दंगे भड़काने में अहम भूमिका निभाने वाले भाजपा विधायक का आगरा में मोदी द्वारा सम्मानित करने का वीडियो चतो आपने देखा ही होगा. मुरली मनोहर की बेटी मुसलमान से प्यार करके शादी करले तो देशभक्ति है साधारण लड़की को मुसलमान तड़के से प्यार हो तो लबजिहाद.

Renu Ramesh  दूसरों तक विचार ही पहुंचाता हूं कुछ लोग इतने आतंकित हो जाते हैं कि ग्रुप से निकाल देते हैं बिना किसी जनमतसंग्रह के. इलाहाबाद के 3 ग्रुप्स से निकाला जा चपका हूं जिसे मैं तमगा मानता हूं.  Alumni of AU में मोदी पर मेरी एक कविता पर 85 लाइक थे 3-4 संघी बवाल करने लगे और वही लगता है ऐडमिन हैं सो जनता बनकर बिना बताए मुझे निकाल दिया क्योंकि कई युवक-युवतियां मेरी बातों से प्रभावित होने लगे थे. सत्ता का भय होता है ईमानदारी का आतंक. मेरे पिता दी उनके विचारों को न मानने के लिए धमकी देते रहते थे सो 18 साल की उम्र में घर से निकल गया यानि पैसा लेना बंद कर दिया और वह भेष बदलकर प्रतिकूलता में बरदान साबित हुआ. आत्मनिर्भरता के संघर्ष की शक्ति भविष्य की थाती बन गयी. 21 साल की उम्र में खाली हाथ दिल्ली भूमिगत रहने आया और बड़े रोब से कहता हूं बिना किसी का चवन्नी की चाय(1976 में चाय चवन्नी में मिलती थी) का एहसान लिए, देहाती अकड़ के साथ रहते हुए अपनी पढ़ाई-लिखाई किया और भाई बहनों की पढ़ाई-लिखाई का आर्थिक भार उठाया. भार इसलिए कह रहा हूं कि उन्होने भी पढ़ाई को पैसा कमाने की काबिलियत अर्जित करना ही समझा क्योकि मेरा काम विचार थोपना नहीं विचारों से परिचित कराना है. कुछ लोग इतने कमजोर और कायर होते हैं कि विचारों के परिचय से ही घबरा जाते हैं और रोकने का कोशिस करते हैं, मैं उन्हें कहता हूंः क्या सोचकर तुम मेरा कलम तोड़ रहे हो, इस तरह तो कुछ और निखर जोयेगी औवाज़

Pushpa Tiwari  मैं तो सभी को एक तराजू पर नहीं तौलता. खुटबा में मुसलमानों पर हमले का नेतृत्व करने वाले मुजफ्फर नगर के भाजपा प्रत्याशी संजीव बालियान को मोदी जितना बड़ा नरपिशाच नहीं मानता न सीटियाबाजी में मोदी के दल्ले के रूप में  पुलिस को लड़की की जासूसी के लिए पुलिस को  निर्देश देने वाले जमानत पर छूटे अपराधी अमित शाह जितना. अगर मोदी जीत गया तो इतिहास काफी पीछे खिसक जायेगा. .

Saturday, April 26, 2014

जिंदगी का मकसद

नहीं होता ज़िंदगी का जीवनेतर मकसद
 ज़िंदगी उसूलों खुद ही एक मकसद है
बाकी साथ चलते हैं अनचाहे परिणामों की तरह
(ईमिः27.04.2014)

नहीं जी जीती डर डर कर ज़िंदगी

नहीं जी जाती डर डर कर ज़िंदगी
डर डर कर मरते हैं पल पल लोग
(ईमिः27.04.2014)

उसूलों की ज़िंदगी

उसूलों की ज़िंदगी का है अलग आनंद
सत्ता का भय होता है ईमानदारी का आतंक
(ईमिः26.04.2014)

मोदी विमर्श 25

देश न झुकने देगे के मोदी के शगूफे पर मेरी कवगूो पर कुछ संघियों के कमेंच पर मेरे कुछ कमेंटः

Ish Misra आपका अंदाज मेरे अंदाज से अलग हो सकता है अंदाज़ तो फिर अंदाज ही है. साहित्य में कई विधाएं होती हैं -- अविधा, व्यंजना, अतिरंजना. जैसे आप 30-40 लोगों से मिलकर 78 फीसदी मत मोदी को दिला रहे हैं जब कि किसी से भी मिलने वाले लोग लगभग समान सोच के होते हैं. इसे अतिरंजना कहते हैं.

Arvind Pal  मित्र पहले ही आग्रह कर चुका हूं कि दिमाग के अंदर भरे फिरकापरस्ती के जहर को निकालकर उसे विवेक सम्मत बनाएं. दिमाग के इस्तेमाल में किफायत बौद्धिक-विकास में बाधक है क्योंकि दिमाग को भविष्य में इस्तेमाल के लिए रेफ्रीजरेटर में तो रख नहीं सकते. ओवैसी मोदी की ही तरह एक सांप्रदायिक नर-पिशाच है, कोई मैला खाए तो उसके दवाब में आप भी मऐला खायेंगे? संघी आदत के अनुसार , दिमाग को ताक पर विषयांतर से विमर्श को विकृत करने की साजिश से बाज नहीं आते. जरूरी नहीं है हर कोई हर बात पर बोले. विषय पर कुछ कहने को न हो तो चुप रहने में कोई बुराई नहीं है. एक साधारण शिक्षक को आपकी तरह बंद दिमाग के विद्यार्थी का दिमाग खोलने के लिए जितने समय और धैय4य की जरूरत है वह मेरे पास है नहीं. इस लिए विदा लीजिए, नहीं तो मैं ही विदा कर दूंगा.

@#Shbir Mansur   संघियों की ही तरह आप भी प्रायः संघियों की तरह दिमाग के इस्तेमाल में कोताही करके विषयांतर से विमर्श को विकृत करते हैं. आप भी विदा लें. मैं 32 साल से कांग्रेस के खिलाफ लिखता रहा हूं. अभी मुल्क को खतरा फासीवादी अभियान से है. आप से संवाद मुझे समय की बर्बादी लगती है, अतः मुक्ति दें.

Saras Tripathi Verey good reasoning ha ha. Where did you learn it from? Bush? Those who are not with America are terrorists. Those who are not with Modi, an Ambani-Adani agent and a communal fascist, are ISI agent. Are you a CIA agent?  32 people have liked this post and and 7 people have shared it that means, we all 40 people are CIA agents? BJP gets less than 20% vots at the national level, are remaining over 80% ISI agents? Like a typical Sanghi तोता  on anything get haunted by specter of ISI and Naxalism and like typical Sanghi bigot try to divert the issue to sabotage the discourse without application of mind.  Sanghis use fake identities to spread rumors. RSS=Rumor Spreading Syndicate.

I have no time to waste, that too on a Sanghi duffer who has not gone into unlearning process, ti  shun  the acquired inhuman  Brahmanism and its obscurantist values to replace them by rational values through application of mind and whose mind is filled with venomous communal trash. You  are like typical Sanghi who would not address the issues but start parroting unrelated nonsense to divert and subvert any healthy discourse. I am not interested in meeting you unless you are interested to learn. and unlearn. Next time you comment on my post only if you address the issues raised and not to pour the trash of your mind. bye.

य़ह लहर और सुनामी कारपोरेटी पैसे से मीडिया का शगूफा है. लहर है तो 10, 000 करोड़ रूपया छवि निर्माण पर क्यों. भाड़े के इतने बजरंगी क्यों.य मध्यवर्ग इसुक्षित जाहिलों का की जमात है. रोटी-शिक्षा मोदी देता नहीं छीनता है. किसानों की जमानें छीन कर अपने अदानी-अंबानी-टाटा आकाओं को देता है और किसान आत्महत्यया करते हैं. गुजरात का हर तीसरा बच्चा कुपोषित है. मोदी राज में 300 से अधिक सरकाकी स्कूल बंद कर दिए गए. अडानी की संपत्ति जरूर 400फीसदी से अधिक बढ़ गयी. पढ़िए-लिखिए दिमाग लगाने में किफायत मत कीजिए. वॉय..

Arvind Pal आप की बुद्धि पर जहालत का पर्दा पड़ा है और दिल में फिरकापरस्ती के जहर का कूड़ा. अफवाहों से इतिहास पढ़ने वाले आप जैसे 2 कौड़ी  के संघी जिंदगी भर जहालत की दयनीय ज़िंदगी जीने को अभिशप्मत हैं.. जब भी मेरी पोस्ट पर या कहीं   आपका कमेंट कभी विषय पर नहीं होता. दिमाग मिला है उसका इस्तेमाल कभी कभी कर लिया कीजिए नहीं तो आप में और पशु में कोई फर्क नहीं है. अरे मूर्खाधिराज, जब मुसलमान लूटने आए थे तोे आपके शूर-बीर क्या कर रहे थे? इस शू र-वीरों के देश में कैसे कोई नादिरशाह जैसा टुच्चा चरवाहा सिंध से बंगाल तक रौंद डालता है. जिस समाज में शस्त्र और शास्त्र का अधिकार मुट्ठी फर लोगों के लिए आरक्षित हों शेष कीड़े-मकोड़े  फसे काई भी रौंद सकता है. कितने अंग्रेज आए थे जो 200 साल तक लूटते रहे और ऐज भी मोदी-मनमोहन जैसे साम्राज्यवादी दलालों के जरिए लूट रहे हैं. आप ही जैसे दास मानसिकता के हिंदुस्तानियों की बदौलत. स्वतंत्रता संग्राम के दौरान संघी-जमाती दोनों अंग्रेजों की दलाली कर रहे थे. एक संघी नेता का नाम बताओ जो स्वतंत्रता आंदोलन में शरीक था. संघी-जमाती देशद्रोहियों की वैचारिक संताने अब फिरकापरस्ती का जहर फैलाकर, देश तोड़कर, अगली गुलामी का पथ प्रशस्त कर रहे हैं.  थोड़ा इतिहोस पढ़ लें संघी मूर्खाधिराज, अफवाहों से इतिहास नबीं बनता. आपको पहले ही बता चुका हूं कि आप जैसे बंद-दिमाग, मंदबुद्धि जाहिल को सिखाने का धैर्य मेरे जैसे साधारण शिक्षक के पास नहीं है. पहले ही आपको विदा कर दिया था लेकिन बेशर्मी से आप लगे हुए हैं. अगली बार मेरी पोस्च पर विमर्श विकृत करने आए तो कई संघी जाहिलों को ब्लॉक कर चुका हूं. अलविदा.

Saras TripathiTell me one abusive word? You begin by calling the writer of poem a ISI agent without addressing the issues raised. This is typical Sanghi tactic to sabotage discussion by diverting the issue.  Where does the Pakistani agent/traitor NaxaLITE COME FROM? i BLOCK HARDENED Sanghis who refuse to apply the mind and make judgmental statements WITHOUT ANY BASE OR SUBSTANTIATION. i DO NOT ABUS . i DO NOT USE  ABUSIVE LANGUAGE BUT REFUSE TO ENTERTAIN SANGHI DUFFERS WITH CLOSED MIND. by SUPPORTING MODI, THE CAAMPION OF HATE CAMPAIGN, ORGANISER OF POGROM AND RAPE, YPOU ARE A TRUE SUPPORTER OF "VASUHAIV KUTMBAkam.". if you are serious in discussion you could have commented on the content instead of following George Bush. Your comment on my age is a reflection of your mental bankruptcy. Anyone who is born is destined to be old and die. Let us stop it here. I am not interested in debate for debate sake. I am a teacher and try to teach. If you can give one quality of Ambani's paid agent, cashing on communal FRENZY THAT HE IS VISIONARY, i WILL become your follower. This challenge is to all the victims of Modiyapa. I am in Delhi University, a professor of Political Science live in the campus, if you really want to discuss for the sake of learning and unlearning you are most welcome.

Friday, April 25, 2014

देश न झुकने देंगे

देश न झुकने देंगे, दे देंगे अंबानी और अदानी को
बेचेंगे फिर इसकी अस्मत वालमार्ट किरानी को
देश न झुकने देंगे मार देंगे सब मुसलमान
रोकेगा जो अश्वमेध जायेगा वो पाकिस्तान
कह रहा था यह बात एक मोदियाया नौजवान
था जो ज़मीनी हक़ीकत से बिल्कुल अंजान
तब का जर्मनी नहीं है अब का हिंदुस्तान
सबको मालुम है गोएबल्स की दास्तान
रोकेगी अहंकारी अश्वमेध बुद्ध-ओ-कबीर की काशी
डुबाएगी नफररत का रथ वरुणा-ओ-अस्सी
नहीं रहेगी वरुणा अब प्रसाद की शांत कछार
करेगी कठमुल्लेपन पर कबीराना प्रहार
छेड़ेगी काशी कर्मकांड के विरुद्ध अभियान
लाएगी धरती पर बुद्ध का प्रबुद्ध बिहान
सोचो तब क्या करेगा यह नरपिषाच
होंगे जब साथ सांसद एक सौ सात
होंगे उसमें बिके हुए आधे कांग्रेसी
वे तो हैं सदाबहार पक्षी प्रवासी
क्या करेंगे तब ये मोदियाये नौजवान
खोलो बंद दिमाग और बन जाओ इंसान.
(ईमेः26,04.2014)

Thursday, April 24, 2014

लल्ला पुराण 149

Many Sanghis are here with fake woman's ID. Anita Sharma IS ONE OF THEM. i GAVE HIM MY NO. AND DARED HIM TO CALL ME. ANY ONE IS WELCOME TO CHECK HER ON PHONE.

Anita Sharma or @Hari Prakash Pandey who ever yo  u are prove your self. I do not undestand why you need to hide in a woman's skin.?  Find a batchmate pof yours or any one who knows you as Anita Sharma or Hari Prakash Pandey.

anita Sharma and hari prakash Pandey are the same person. Hari Prakash Pandey teaches in Ishwar Sharan Coleege is a Sangh both of them talk congruent things. She said she/he would come to Delhi and would meet me I gave her/him my no. She is saying I gave her my daughter's no. even if my daughter would pick the phone she would tell. But there is no unattended call. I have made my no. and university's no. public. He/she is telling lie. Such scoundrels need to be weeded out as they give bad name to the university where I spent my most important years.

bUT THIS FAKE aNITA WHO HAS DISAPPEARED IMMEDIATELY AFTER YOUR ARRIVAL SAYS THE SAME THINGS THAT YOU GENERALLY SAY. sHE SAID SHE WOULD LIKE TO MEET ME IN DELHI, i GAVE HER MY NO.

Hari Prakash Pandey mY YOUNG FRIEND i JUST EXPRESSED MU SUSPICION AS SHE/HED SAYS THE SAME THINGS ON MY POSTS/COMMENTS aAS YOU AND BOTH OF YOU ARE NEVER SIMULTANEOUSLY PRESENT. apco IMAGE BUILDER OF mODI HAS HIRED SO MANY PEOPLE TO SOCIAL NETWORKING FOR mODI. iF ITS NOT YOIU, AS i THOUGHT, IT WOULD BE SOME OTHER SANGHI. SHE IS ALSO FROM ZOOLOGY BUT DOES NOT KNOW ANY OF HER BATCH MATES OR ANYTHING ABOUT ALLD.

If any scoundrel does not dislike my talk i take it as insult. Next day I had study class with over 3 dozen students in guest house for 3-4 hours. your abuses does noit say anything on my part Ms Sharma/Mr.Pandey that reflects your socialization in family and Shakha. Is your father also a Sanghi? It pleasure seeing Sanghis loosing their sense and using the only language they know -- of hatred and abuses.

i KNOW HIM, HE HAS LISTENED TO ME IN A SEMINAR IN AU.. THERE IS A SUSPECTED FAKE ID ANITA SHARMA WHOSE VIEWS ARE SAME AS THAT OF MR PANDEY AND FEW COMMENTS ARE VERBATIM. BOTH OF THEM ARE NEVER PRESENT SIMULTANEOUSLY SO I SUSPECTED .....

Sanghis are anti-nationalist as they were agents of British during colonial rule and of US imperialism now. Modi, who presided over pogrom and mass rape is a monster and an active agent of Adani and Ambani whom he has gifted the state resources for personal gains. RSS= Rumor Spreading Syndicate.

He is a person with most unscietific temperament. he was my teacher and in practicals he would send his chelas in nicker. he is as arrogant as Modi and would take his revenge. Joshi as hrd min was trying to push astrology as science and had contracted balti baba to find a 6-leg goat to sacrifice as some astrologer had told him that would make him PM. he too falls in the category of educated duffers who cant transcend the identity of biological accident and despite teaching science all his life remains an unscientific character with all the superstitions and blind faiths. We had saved him in Bara in 1974 against Bahuguna Goons. I last met him in 1985-86 when he was politically unemployed having lost elections in 1984. I went to pay him regards as a teacher but he engaged in political debate and PATE MEN KAUN THAKURAI? And we departed on a hot note. That was our last meeting. I know him and other Sanghis well as I was an important office bearer of ABVP before I started to freely apply mind and was able to comprehend Sanghi design of fascism.

Hari Prakash Pandey Its not your mistake this is your Sanghi sanskar to have a perverted sense of language, that does not say anything on my part. I enjoy seeing sanghis loosing balance and in desperation using the abusive language learnt in their Sanghi socialization. my talk had aroused maximum applaud to the discomfort of Sanghis.

If any scoundrel does not dislike my talk i take it as insult. Next day I had study class with over 3 dozen students in guest house for 3-4 hours. your abuses does noit say anything on my part Ms Sharma/Mr.Pandey that reelects your socialization in family and Shakha. Is your father also a Sanghi? It pleasure seeing Sanghis loosing their sense and using the only language they know -- of hatred and abuses.

aapko padhne nashin ata kyonki ki aap sanghi ho aur isliye mardvadi. jara padhiye. aap to shayad apne baap se bhi isee bhasha men bat karte honge, apne bujurgon ko mbhi apmanit karne ka sanghi rivaz chal pada hai ya yah badtamizi ki bhasha baap se hi sikha hai?

Anupam Khare  I don't need to prove you my credentials I studieed BSc(PMC) physics department was full of scoundrels there was one SN(Suar Nath) Srivastava and another highly educated duffer called Prof Krishnaji who was leader of Kayasth gang as opposed to Brahman gang led by MM Joshi and GR Sharma from history. There were few good teachers MC Sharma was a friend. There was another very good one Prof Kar and one Prof Sharma whose first name I am forgetting. Chemistry like Physics was also full of Sanghis RP Agrawal/K Bahadur.. all of them were in Naini with us IN EMERGHENCY and during the same period RP Agrawal's daughter married one Sunil ji a Mukhyashikshak against the wishes of father. I did Master's in Maths and have been fortunate to have teachers like Prof T pati and BL sharma also Snehlata Jain. There was a scoundrel in Chemistry Ashok Mahan./ RD Tiwari was imitable character in Chemistry. The Brahmin lobby and Kayastrha lobby had their patronized goon students. It was a cultural shock to see profs getting into so mean activities like casteism and communalism. RD Pathak was another good teacher. In mathematics there were few scoundrels like KaNHAIYA sHANKAR uPADHYAY AND THAT gUPTA WHO WAS THE CHEAP PROCTOR.tHIS IS ALMOST 4 DECADES AGO, i LEFT aLLD IN 1976. Ramadhin Singh in this group is my senior and Nripendra Singh is a batch mate. This introduction is enough sir?

I have no problem if any one supports BJP or any other party, my problem is with their duffer-dom to skittle any healthy debate by their abusive language and nonsensical unsubstantiated personal aspersions. Just look at the language of this lumpen Sanghi, Hari Prakash Pandey, whom I just blocked. .

I just doubted for substantial reasons. And still suspect Anita Sharma and Pandey are the same person. You said she was in Botany, she says she was in zoology and except 2 of you no one knows her in this group. I doubt everything until proved.

Wednesday, April 23, 2014

शाहिल तक पहुंचने का जज़्बात

है अगर शाहिल तक पहुंचने का जज़्बात
दरिया की लहरें सदा देंगी साथ
दम टूटना किनारे पहुच कर महज संयोग है
हार-जीत तो परिस्थितियों का याग है
अहम है मगर संघर्षों की गुणवत्ता 
और उद्देश्य की जनपक्षीय महत्ता
है वज़ूद जिसका होगा ही अंत उसका 
होगा नहीं मगर अंत इतिहास का
सांसें तो होंगी ही बंद एक-न-एक दिन
कीमती है ज़िंदगी का एक-एक दिन
(ईमिः24.04.2014)

लल्ला पुराण 148 (जनहित)

Anupam Khare " It's all to attract the illiterates and specially sub-literates to meet some vicious interest..............."

What vicious interest you found in this poetry on dictatorship. I would have appreciated if you had criticized the points raised in this poem. I do not  anyone as illiterate and sub-illiterate but as educated and uneducated duffers whose world view is fettered by false consciousness.

शासक वर्गीय युग चेतना के विरुद्ध, जनपक्षीय,  जनवादी जनचेतना  का निर्माण और प्रसार विशुद्ध जनहित का काम है, निहित स्वार्थ का नहीं. मैं न तो फीस मांग रहा हूं न वोट. मेरी बातें पढ़ने का आग्रह भी नहीं करता. बान्हे बनिया बजार ना लागत. मैं शिक्षक हूं और मेरी क्लास क्लासरूम तक नहीं सीमित है. मेरा काम वैचारिक रूप से भटके बच्चों को गलती का एहसास कराना और और रास्तों से परिचित कराना है, किसी पर कुछ थोपना नहीं. सब प्रतिभाशाली बच्चे हैं कूप-मंडूक किस्म के समाजीकरण के चलते अफवापजन्य ज्ञान और अनसोची आस्था की आदत से दिमाग संकुचित हो जाता है. मेरा काम उन्हें एहसास कराना है कि उनमें स्वतंत्र चिंतन की क्षमता है, बस दिमाग को सक्रिय करने की आवश्यकता है. यह प्रयास काफी हद तक सफल जा रहा है और अपवाद नियम का सत्यापन करते हैं.

याद

कई बार हम यादों में ऐसे खो जाते हैं कि वर्तमान में अतीत खोजने लगते हैं, विवेक और संवेग की समानुपातिक द्वंदात्मक एकता स्थापित करने की बजाय हम संवेग को विवेक पर हावी होने देते हैं जो भविष्य को बाधित करता है.  मुझे ऐसा ही लगता है लेकिन कई बार संवेग में बहना हमारे बस में नहीं होता  उसी तरह जैसे कई बार क्रोध बस में नहीं रहता. ऐसे में अंतरात्मा से मुखातिब होना चाहिए.

कई बार हम यादों में ऐसे खो जाते हैं कि वर्तमान में अतीत खोजने लगते हैं, विवेक और संवेग की समानुपातिक द्वंदात्मक एकता स्थापित करने की बजाय हम संवेग को विवेक पर हावी होने देते हैं जो भविष्य को बाधित करता है.  मुझे ऐसा ही लगता है लेकिन कई बार संवेग में बहना हमारे बस में नहीं होता  उसी तरह जैसे कई बार क्रोध बस में नहीं रहता. ऐसे में अंतरात्मा से मुखातिब होना चाहिए.

varanasi

That is just a political ploy. Jats have always been a dominant community. Aniket Prantadarshi That is is the whole problem. Most of these lumpens are "educated", I call them educated duffers whose "education" instead of enabling them to transcend the primordial values; acquired prejudices, dogmas and identity of biological accident, they perpetuate them.  They acquire degrees by mugging up coaching notes but never apply their mind to understand and comprehend the history and remain sheep and parrots. I call them educated duffers.But we have to carry on. Because of its underhand dealing with the Congress and rumor that Congress candidate is giving the fight and that Kejariwal is no where in the fray, Modi might win in a tough fight but I do not think BJP will cross 20 in UP. The task before us is to radicalize social consciousness using all means including demoralization of obscurantist forces. The struggle has to go on till we breath last. 

लल्लापुराण 147

जोे नवजवान आपकी तरह कु-समाजीकरण के चलते दिमाग गिरवी रख पशुकुल में वापस जा तोते-भेंढ़ बन जाते हैं उन्हें मेरी बात नहीं समझ आयेगी, क्योंकि दिमाग का इस्तेमाल ही मनुष्य को पशुकुल से अलग करता है. तमाम खुले दिमाग से सीखने को आतुर नवजवानों को मेरी बातें समझ में आती हैं. आप तो इसी भाषा के तमीज में अपने पिता से भी भात करते होंगे या उन्ही से सीखा है? सकंघी जहालत का आलम यह है कि जो लिखा वह नहीं पढ़ेंगे औरक न लिखा पढ़ लेंगे. कांग्रेस और भाजपा दोनों ही कारपोरेटी दलाल पार्टियां हैं अंबानी सिर्फ फेंकू नबीं पालता पप्पू भी पालता है. जैसे ही केजरीवाल ने अंबानी पर मुकदमा किया दोनों ने मिलकर सरकार गिरा दी. गाली-गलौच छोड़ कुछ पढ़ो लिखो काम आएगा.

सचिन सिंह जी, आपको घटिया बुजुर्गों की सोहबत मिली जहालत की समझ के लिए, आप जैसे पुरामपंथी बुड़ढों से भी गये-बीते बुड़ढे हैं. जवान बिचारों से होता है उम्र से नहीं. चिंता की बात है कि आज के नवजवान बिना पढ़े-लिखे पता नहीं कहां से आधारहीन जहरीले विचार बना लेते हैं. मेरे हजारों नवजवान मित्र हैं और जब भी इलाहाबाद दाता हूं तो 35-40 छत्रों के साथ 4-5 घंटे के स्टडी क्लास करता हूं. मैं तो अति आशावादी हूं और परिवर्तन के  प्रगतिशील गतिविज्ञान का हिमायती.  पूरी उम्मीद है कि एक जनतांत्रिक विमर्श के जरिए आपको भी दिमाग के इस्तेमाल से तथ्यों तर्कों के आधार पर, मिथकों और कही-सुना के आधार पर नहीं, दुनिया समझने और इस तरह स्वरूप ही नहीं सार में भी पशुकुल से अलग होने क कर  है कि आपको भी प्रेरित कर पाऊंगा. स्नेह.

संघी कुतर्क

विमर्श को विकृत करने का है ये एक कुतर्क संघी
कुछ भी हो मसला नमो नमो चिल्लाता तोता बजरंगी
कहता लाएगा दिन अच्छे अब नरेंद्र भाई मोदी
बोला जो कि पूर्वज था उसका सिकंदर लोदी
पता चला जैसे ही वह तो था मुसलमान
पलटा तुरंत बात से बोला फिसली जुबान
दर-असल वो पूर्वज था सिकंदर महान
खड़ा किया जिसने सल्तनत-ए-हिंदुस्तान
नहीं जपेगा जो बन तोता नमो नमो का मंत्र
गद्दार घोषित कर देगा उसको मोदी तंत्र
नहीं रहेगा उसका यहां कोई निशान
भेद देंगे मोदी उसको पाकिस्तान
जागो संघी बंधुओं खोलो जरा दिमाग
मत भड़काओ मुल्क में नफरत की और आग
मचाओगे ग़र मुल्क में गृहयुद्ध से तबाही
बचा नहीं पायेगी इसे कोई भी तानाशाही
मिलेगी ग़र बजरंगियों को मार-काट की छूट
बढ़ जायेगी मुल्क में अंबानियों की लूट
बनेंगे तोता-भेंड़ ग़र मुल्क के इंसान
रच नहीं सकते वे किसी मुक्ति के विधान
हो जायेंगे ग़र बौने् मुल्क के इंसान
नमो नमो से नहीं बनेगा कोई मुल्क महान
इसलिए संघी बंधुओं खोलो दिमाग
बुझाओ आओ मिलकर मुल्क में लगी आग
रोको यह तानाशाह मीनवता का अनचाहा
कर दो चुनावी यज्ञ में नमो नमो स्वाहा
(ईमिः 23.04.2014)

Tuesday, April 22, 2014

निकलता है कारवां जब थहाने उदधि

निकलता है कारवां जब थहाने उदधि
डरा सकती नहीं उसे लहरों की परिधि
है ग़र पकड़ मजबूत पतवार पर
रोक लो कस्ती चाहे जिस घाट पर
नहीं आखिरी पड़ाव कोई भी साहिल
एक पड़ाव के बाद अगले का करता दिल
एक नहीं अनेक हैं नई नई मंज़िलें
अथक कारवां ग़र चलता चले
(ईमिः23.04.2014)

Mission 80/300

Breaking the news: The Modiyapa balloon punctured in UP. A BJP candidate from one of the seats election for which were held on 17th April, an old friend from Allahabad, confided  that not only he is loosing but all the candidates in 7 constituencies.  Next phase is biggest covering many eastern UP there is strong anti-Modiyapa wave and BJP may loose  all but few seats. Its Hindu Sabha lumpen MP from Gorakhpur looks sure to loose. In Allahabad, SP-reject BJP candidate shall be vying for 3rd position and if anti-communal votes are united Modi would be fighting for saving his his deposit. The hard core Pandas and Pandits and other orthodox sections of the society considered to be "vote bank" of BJP , angered by demeaning of Bholeshankar by Har Har Modi slogan and humiliation meted out to Joshi ji, revered by them is going to give Modi a shocking surprise and teach him a lesson. Joshi ji is not as much but also an arrogant person. He must have tolerated humiliation with a sense of helplessness. Panicked by seeming defeat of the communal fascist, THE BAJRANGI LUMPENS are insidiously indulging into all kinds of hooliganism to disrupt AAP programs.Most of the 25 defectors mostly with criminal /corruption reputation are being opposed by the BJP workers themselves. The Modi man on bail, Amit Shah had sent a secret report (no more secret) to BJP top leadership about 35 weak candidates and had sought replacement of 20, includinmg, my friend that could not be accomplished probably due to lack of time. And also people know that you are fooling them. Muslim can never vote for a leader who woes his existence to his communal Muslim bashing.

 If good senses prevail, which wont, Modi ji should desist from filing the nomination from Varanasi and focus on his Vadodara seat, where too a large section of Dalita have moved away from BJP due to still prevailing untouchable, manual scavenging, discriminatory policy-practice in developing civic facilities in their colonies, etc and also a large section of agricultural communities have silently become anti Modi for his consistent pro-corporate anti-farmer development policies and the incidents of committing suicides by farmers. again a section of Adivasis whose lds have been forcibly grabbed for gifting away to his corporate bosses who are funding his 10, 000 crore image building campaign  who would expect more leading to inflammation and price ris, as a capitalist never deal into loss. That is why it funds all the main political parties.

In UP BJP would be getting 20+/- seats. From my home constituency Azamgarh from where Mulayam Singh is contesting, BJP candidate is a criminal turned contractor- politician, the sitting MP, Ramakant Yadav who found a revered position in BJP after frequently shunting between SP and BSP. He is said to  allegedly shot into to lime light by shooting his a "Don" relative on a cross road in broad daylight and burrying couple of or more A Rajput brothers and subsequently killing a junior for not signing on dotted lines of a tender. At the time he was a BSP MLA and after the murder joined SP, Mulayam Singh was then the CM. In 2004 he won as a BSP  candidate but was denied ticket by BSP Supremo in 2009, as his jailed brother also a former MP/MLA Umakant Yadav was involved in manhandling Mayavati after the break of SP-BSP alliance and got a welcome nomination in the BJP, for which despite all the nationalist-cultural pretensions, what matters is number, which, unfortunately, our so-called emocracy is reduced to. Other parties are no different. Last time he won because, it seems, BJP managed to field an independent, reputed Muslim doctor whose votes facilitated his victory by a thin margin. He cant win there against his former patron. Jaunpur, Mirzapur, Pratapgarh, Ambedkarnagar........In Faizabad in the euphoria of Rammandir its Bajarangi chief the communal bigot Vinay Katiyar was badly defeated and I am sure that this city of a comp[osit culture will retain its anti-communal credentials.

which are the seats of mission 80+ or 300+. It seems entire media has been sold out and shall be further discredited after 16 Masy. .  

Monday, April 21, 2014

मुझे तो किसी फिल्म का जोकर दिखाई देता है

मुझे तो किसी फिल्म का जोकर दिखाई देता है
लोगों को इस फेकू में क्या क्या दिखाई देता है
किसी को विष्णु का अवतार दिखाई देता है
तो किसा को रामदेव का चमत्कार दिखाई देता है
किसी को मैक्यावली का जिंदा प्रिंस दिखाई देता है
तो किसी को साश्वत हिटलर दिखाई देता है
किसी को महादेव का कारपोरेटी सार दिखाई देता है
तो कुछ को गोलवल्कर का अवतार दिखाई देता है
जिसको उत्तरी ध्रुव पर बिहार दिखाई देता है
तो इसे बिहार में तक्षिला दिखाई देता है
कभी लाहौर को अंडमान बता देता है
सिकंदर को चंद्रगुप्त से गंगा तट पर लड़ाता है
तो वीवेकानंद को श्यामा प्रसाद से मिलवाता है
वो खुद को मुल्क का चौकीदार बताता फिरता है
अंबानी को मुल्क का कारोबार सौंपता है
लोगों को इसमें अलादीन का चिराग दिखाई देता है
मुझे तो किसी फिल्म का जोकर दिखाई देता है
कहते हैं कि मर चुका हिटलर मगर अकसर दिखाई देता है
दोज़ख़ का डर कैसा ये नज़ारा यहां हर रोज दिखाई देता है
लोगों को इस फेंकू में क्या क्या दिखाई देता है
मुझे तो किसी फिल्म का जोकर दिखाई देता है
(ईमिः21.04.2014)

मोदी विमर्श 24 -- Educated Duffers 5

Ajay Singh Modi is a dangerous fascist, a paid agent of corporate  who has mortgaged Gujarat to imperialist global capital, is an inmhuman murderer rapist and enemy of the people. I have been challemnging the educated duffers suffering from the doisease of Modiyapa, to apply to apply their mind and tell one sentence or act of  this Bajrangi lumpen that proves him to be their God. Suppose one of the victims of the Modi mission of killing and rape was your relative how you you feel? Suppose Bilkis Bano is your sister who along with others were gang raped publicly who survive while others died? What iod=f the woman whose stomach was torn open and fetus thrown into fire  was your mother, how would you feel? What if Ishrat Bano was your daughter or Tu;lsi Prajapati was your uncle who were killed by Modi in cold blood to create hatred and communal polarization.? Apply your conscience and mind before supporting a communal killer, a shred MCP who deserted his wife to stalk a women he is obsessed with with the use of state machinery. I wonder how can anyone with any human sensibility can support  a monster like Modi??

Ajay Singh संघी जब जहालत में अपने दलाली के संस्कारों के अनुरूप मेरी बातों से बौखलाकर जहालत पूर्ण फतवेबाजी और गाली-गलौच करते हैं, बहुत अच्छे लगता हैं. आपसे एक सवाल पूछा था कि इस जाहिल का एक शब्दयकृत्य उधृत करें जिससे यह अडानी-अंबानी के जरखरीद आपका भगवान बन गया जिन्हे इसने गुजरात सौंप दिया और जिनकती बदौलत 500 करोड़ छविनिर्माण कर रबा है, आपने बताया नहीं. आप जैसे बंद दिमाग संघी को इससे ज्यादा वक्त नहीं दे सकता अलविदा. नमो नमो स्वाहा

Neeraj Mishra  फेक आईडी जाहिल फेकू के थेथर  अंधभक्तों की होती है, संघी जाहिल से तुम जैसी ही जहालत की उम्मीद है. इस ईश को काल्पनिक भगवानों के किसी जाहिल चेले की सनद नहीं चाहिए. पढ़ो-लिखो थोड़ा और संघी जहालत से बाहर निकलो, सोचो जब बाल स्वयंसेवक थे तो प्रचारकोंयमुख्य शिक्षकों ने क्या-क्या तुम्हारे अंदर भरा. थोड़ा पढ़ो-लिखो दिमाग का इस्तेमाल करो और संघी जहालत से निकलो. इस ईश के बारे में जानना है तो इलाहाबाद के अहने संघी आकाओरामकिशोर शर्मा, रामाधीन आदि से पता कर लो तो तुम्हें अपनी औकात पता चल जायेगी, मोदियाये नीरज मिश्रा. दिमाग इस्तेमाल के लिए होता है ध्वजप्रणाम के ही निए नहीं, मोदियापे के खतरनाक रोग का इलाज कराओ. यह मिश्रा मोदी जैसे नरपिशाच को इसलिए गाली देता है कि जन्म की जीववऐज्ञानिक दुर्घटना से ऊपर उठकर ब्राह्मण से इन्सान बन चुका है, शुभकामना करता हूं तुम भी ब्राह्मण से इनसान बन जाओ और संघी जहालत से निकल कर विवेकशील बनो. नहीं तो अंबानी के इस जरखरीद फेंकू का एक गुण बताओ जिससे वह तुम्हारा भगवान बन गया है.

नीरज बताओ एक गुण इस हत्या-बलात्कार के आयोजक को जिससे तक्षशिला को बिहार में बताने वाला यह जाहिल फेंकू तुम्हारा भगवान बन गया है या पापा ने दिमाग इस्तेमाल करने से मना किया है या मुख्यशिक्षक ने, जिंदगी भर जाहिल न रहना चाहो तो दिमाग कका इसेतेमाल करो नहीं तो खाली पड़े हुए सड़ जायेगा.

संघ में बातचीत की यही तमीज सिखाई जाती है जैसा मोदी अपनो आकाओं के साथ करता है. तमीज दहेज में नहीं मिलती दलाली में भी नहीं सीखी जाती है, नहीं तो मोदी की तरह जिंगी भर बदतमीज और जाहिल बने रहोगे.

Sunday, April 20, 2014

Educated duffers 4

Uttam Narayan  मुझे नहीं पता आपने कौन सी इतिहास की किताबें पढ़ा है. जिसका हीरो हिटलर और अमेरिका हो और दिमाग बंद उसे पढ़ाने का वक्त फिलहाल मेरे पास नहीं . माना साइंस के ज्यादर विद्यार्थी कोर्स के फार्मूलों के अलावा पढ़ने लिखने में यक़ीन नहीं करते, अखबार तो पढ़ लिया कीजिए. बिन लादेन की लाश समुद्र में अवमानना के साथ फेंकी गयी थी. फिलहाल आप से विदा लेता हूं. पहले ही आप पर काफी समय खर्च कर चुका हूं. फिर बात करनी हो तो थोड़ा पढ़-लिख लीजिए और मानवीय संवेदना से दिमाग इस्तेमाल की आदत डालिए. तब तक नमस्कार.

Alok Singh  अजय राय गुंडा है मोदी हत्या बलात्कार करवाने वाला अंबानी का एजेंट है, केजरीवाल नौटंकीबाज है, आप की ही बात मान लें तो गुंडे और नौटंकीबाज की तुलना में आप हत्या-बलात्कार के आयोजक एक ऐसे व्यक्ति को चुनेंगे जो गुजरात की तरह भारत को  अंबानी-अदानी-टाटा के हाथों गिरवी रख दे. आप की हिटलर भक्ति समझी जा सकती हा. आप भी शायद साइंस के विद्यार्थी हैं और बंद दिमाग से अफवाहों से इतिहास पढ़ते हैं. फिलहाल आप भी विदा लीजिए. नमस्कार. केजरीवाल ने जैसे ही अंबानी पर मुकदमा किया उसके दोनें एजेंट -- कांग्रेस-भाजपा ने हाथ मिला लिय और उसकी सरकार गिरा दी क्योंकि दोनों ही नहीं चाहते भ्रष्टाचार खत्म हो.

एक मोदियाया हुए हिंदू राष्ट्रभक्त ने मेरी एक पोस्ट पर आजादी की लड़ाई का श्रेय अपने इतिहास नायक हिटलर को दे दिया जिसने विश्व युद्ध के जरिए अंग्रेजों को हिंदुस्तान से भगाया. इनके गुरू गोल्वल्कर ने तो गांधी और भगत सिंह दोनों के नेतृत्व के आंदोलनों को अज्ञान के अंधकार की उपज बताकर अंग्रेजों की आजादी की लड़ाई में हिस्स्सेदारी की थी. ये नवजवान विना जानकारी के, बिना पढ़े-लिखे मनों में जहरभरी राय बना लेते हैं. हम क्या पढ़ा रहे हैं इन बच्चोें को. यह बहुत चिंता की बात है.

जोे नवजवान आपकी तरह कु-समाजीकरण के चलते दिमाग गिरवी रख पशुकुल में वापस जा तोते-भेंढ़ बन जाते हैं उन्हें मेरी बात नहीं समझ आयेगी, क्योंकि दिमाग का इस्तेमाल ही मनुष्य को पशुकुल से अलग करता है. तमाम खुले दिमाग से सीखने को आतुर नवजवानों को मेरी बातें समझ में आती हैं. आप तो इसी भाषा के तमीज में अपने पिता से भी भात करते होंगे या उन्ही से सीखा है? सकंघी जहालत का आलम यह है कि जो लिखा वह नहीं पढ़ेंगे औरक न लिखा पढ़ लेंगे. कांग्रेस और भाजपा दोनों ही कारपोरेटी दलाल पार्टियां हैं अंबानी सिर्फ फेंकू नबीं पालता पप्पू भी पालता है. जैसे ही केजरीवाल ने अंबानी पर मुकदमा किया दोनों ने मिलकर सरकार गिरा दी. गाली-गलौच छोड़ कुछ पढ़ो लिखो काम आएगा.

आपको क्या परेशानी हो रही है प्रचार का हक़ सिर्फ अंबानी के एजेंट्स को है. यहां प्रचार अपना नहीं विचारों का करता हूं. इसीलिए तो आपके भी पीछे पड़ा हूं कि दिमाग इस्तेमाल करने के लिए प्रेरितकर आपको स्वरूप में ही नहीं सार में भी पशुकुल से अलग होने के लिए प्रोत्साहित कर सकूं. वैसे शाखा की लाठीबाजी और अफवाहजन्य बौद्धिकों के प्रशिक्षण से कुंद-मष्तिष्क बच्चों को सिखाना मुश्किल होता है. लेकिन आसान काम तो सब कर लेते हैं.

Saturday, April 19, 2014

तानाशाह की खोज -- तब और अब

आज श्वेता मिश्रा द्वारा फेसबुक पर पोस्ट की गयी 1970 के दशक में पढ़ी उदय प्रकाश की कविता-- तानाशाह की खोज -- पढ़ कर यह ख्याल आयाः

तभी तो लगा कि पढ़ी हुई कविता है. उदयप्रकाश जी हमारे वरिष्ठ सहपाठी थे जेयनयू में. कह नहीं सकता कि आज यह कविता उतनी ही या ज्यादा प्रसंगिक है. आज 1975 के पहले की इंदिरा गांधी और उनकी कांग्रेस स्थान के हिसाब से भेष और उनके नटों-भटों की याद आती है. संघियों में में सदा ही मौलिकता का अभाव रहा है और नकलची परंपरा का चलन. इन्होने विचारधारा और गणवेश मुसोलिनी और हिलर से टीप लिया, नायक मिथकों तथा इतिहास-भूगोल अंदाजे  और अज्ञान से. क्षमा कीजिए फुटनोट लंबा हो गया. वाजपेयी जी नेहरू की नकल कर रहे थे तो फेंकू अधिनायकवाद में इंदिरा गांधी की नकल कर रहा है और नकल तो फिर भी नकल होती है. गरीबी हटाओ के नारे को बेचने के लिए बैंकों के राष्ट्रीयकरण और प्रिवीपर्श की समाप्ति जैसे कई प्रगतिशील कदम उठाए और हर तानाशाह की तरह देश को अपनी जागीर समझ लिया और 1977 में जनता ने उन्हें 1 सफदरजंग रोड से विस्थापित कर दिया. जुस तरह से मोदियाये भांड और नट-भट मोदजी को भाजपा और भारत का पर्याय बता रहे हैं उसी तरह के 1 भांट थे कांग्रेस अध्यक्ष जेवकांत बरुआ जिन्होने इंदिरा इज इंडिया एंड इंडिया इज िंदिरा का नारा दिया.इंदिरा में कुछ राजनैतिक समझ विरासत में मिली थी लेकिन फेंकू की विरासत तो शाखा की लाठीबाजी और खो है यह गुजरात मॉडल बेचने के नाम पर कितने नरसंहार, आगजनी , लूट, बलात्कार, विस्थापन करवायेगा और जनता की कितनी जमीन-जल-जंगल अपने कारपोरेटी आकाओं को समर्पित करिगा अंदाज लगाया जा सकता है. 5000 करोड़ उसकी छवि निर्माण करने वाले थैलीशाहों को सूद समेत लौटाना भी तो होगा. लेकिन जनता जागेगी ही और जब नहीं टिके हिटलर हलाकू तो फेंकू किस खेत की मूली है. संघियों की केजरीवाल पर बौखलाहट में हमलों से पता चलता है कि वे मोदी की अवश्बयंभावी हार के पूर्वाभास से पगला गये हैं, परिणाम आने के बाद इनके कोहराम को रोकना होगा. मुझे कबीर और बुद्ध के बनारस के विवेक पर काफी भरोसा है. 

Educated Duffer 3

Vibhas Awasthi  दुर्भाग्य से बहुत से लुच्चे-लफंगे, ठेकेदारी प्रवृत्ति के लोग सभी परीक्षाओं से निरस्त हो किसी फादर-गॉडफादर की कृपा से शिक्षक हो जाते हैं और अभारगे शिक्षक होने के महत्व और आनंद से वंचित नौकरी करते हैं और अपने से ही पढ़े-लिखे जाहिल पैदा करते हैं. यदि 30-40फीसदी शिक्षक शिक्षक होने के महत्व को समझते तो क्रांति आ जाती. 1985 के आस-पास एक मित्र के साथ एक पुस्तक की योजना बनी जो शीर्षक से आगे न बढ़ सकी. गॉडफादर्स एंड बास्टर्ड सन्स. 2 साल पहले संयोग से इवि के एक लॉ के प्रोफेसर से मुलाकात हो गयी थी, इस साल गयो तो पता चला सजातीय वीसी ने उन्हें रजिस्ट्रार बना दिया है. चायचर्चा में उन्होने बताया कि वे तो इज्जत बचाने के लिए स्टूडेंट्स से दूर दूर ही रहते हैं. मैंने कहा प्रोफेसर साहब बचाई तो वह चीज जाती है जो पास हो. इज़्जत तो न दहेज में मिलती है न दलाली में, पारस्पारिकता से कमाई जाती है, विद्यार्थियों से दूर दूर रह कर आपने उसे कमाया ही नहीं तो बचायेंगे क्या. उन्होने मुस्कराकर बर्दास्त कर लिया. 

Friday, April 18, 2014

Educated Duffer 2

Uttam Narayan  Do not hold back just because you respect me,. I will feel additionally respected if you speak out your mind. I never claimed to be a knowledgeable person. I am ordinary person in the continuous quest of knowledge through unceasing process of learning and unlearning  by application of mind. Most of people only learn and do not unlearn their acquired obscurantist morality and are unable to replace them with rational ones, remain educated duffers.  "To err is human but not learning from errors and go on repeating them is stupidity and moral-intellectual crime. No one is expecting Modi to be superman or perfect as he and his paid/unpaid agents are projecting him to be. This is typically Sanghi tactic to divert and subvert a discourse. Is there a word on Naxals  in this post? discus that on separate thread. Again a Sanghi saboteur , scoundrels' tactic is to get haunted by the specter of Naxalism/Marxism without knowing ABC of it. This act lacking application of mind is an act of  that defines the actor as duffer.  Where did you learn from that Muslims have built opposit every Hindu temple? How many such mosques have you visited. Vitiating the atmosphere with rumor based  nonsense is an act of ignorance and inadvertent attack on humanity. What are the Hindu sentiments that get hurt on everything? And how a handful of lumpens can become spokesperson of those sentiments? All the religions are regressive and their political use to ruin a society is equally dangerous, be it RSS or Jamat-e-Islami; Communal criminal Amit Shah or Azam Khan; Maududio or Golwalkar. All of them are equally imperialist agents and their folowers without knowing the reason of their following are duffers because they do that without application of mind. Yes riots do take place at many places on many grounds, In Bihar the criminal Ranvir Sena of Bhumihars massacres dalits. These things can be separately discussed but you time and again use tested Sanghi tactic of sabotaging a healthy discourse by diverting the issue. The apprpriate ethos of a discourse is focus ion the issue raised and bring in other issues linked with that. Again I will repeat anyone despite highest education is unable to transcend the identity and mindset   emanating from the biological accident and feel proud of it as if they have contributed in it, come under my definition of educated duffers. You are a bright boy, start application of mind from now and get into the process of unlearning, though , we discourage application  of mind through socialization through family to university to young people away from knowledge by just equipping them with information and skill to maintain the status-quo and produce educated duffers exceeding their uneducated counterparts. All those voting on the basis of caste/community and not ideology are political duffers. Do not take it personally and start acting/talking rationally instead of instinctively, like other animals as rationality distinguishes humans from other instinctive creatures. Best of luck. 

Educated Duffer 1

This is reply to a young fb friend's querry on my concept of educated duffers who act without application of mind:

Alok Singh My young friend, do not take it personally. Key to any knowledge is questioning anything and everything,, i.e. application of mind that is the only attribute that separates humans from other animals, before making an opinion based on hearsay or rumors.  Those who do not apply mind or even common sense do away with the distinction and remain sheep and parrots. We do not say anything that cant be proved. 17 allegations of corruption and facilitation to big corporate to plunder the people is based on data available on Gujrat government website. A s far as the clean chit by SIT is concerned, the SIT consisted of many Gujarat Police officers who were responsible for helping the Modi's Bajarangi lumpens top carry on the mass murders, plunder and mass rapes. As far as bureaucracy and Police of Gujarat is concerned, they act like Modi's private force as is clear from the number of IAS/IPS officers spending time in jail, thanks to SC. Let us agree with the fascist campaign of one man having miraculous stick to correct the ills of the society and did his best to stop the inhuman crimes like tearing apart stomach of a pregnant woman burning a residential society killing its inmates including a former MP, mass rape and murder of hundreds of woman permanent internal displacement of thousands, but could not stop it and celebrates it as Shauryadivas with the hate speeches like HAM 5 MAHARE 25. If a leader cant stop inhuman crimes in a state half of the size of UP how can he control such  a vast country? He sold away precious resources of the people to Adani-Ambani-Tata, what is ground to believe he would not do it to the country? I just make one appeal to my young friends that you are intelligent peoples with a thinking min. Do not do anything until you know why? Apply your mind not to delete distinction of humankind from animal kingdom. Learning must be accompanied by unlearning and the first step  would be to transcend the attributes of the identity emanating from the biological accident of birth. I will appreciate if you apply your mind and find one reason to support this agent of imperialist corporate. Just think how much he would pay back to his sponsors with 5000 crore on his publicity as businessman never deals in loss. Once again, request to apply your mind before acting, your action becomes praxis when it is a well thought. I have great hopes from the young people. 

लल्ला पुराण 146 (भाषा की मर्यादा)

इस ग्रुप में भाषा के तल्ख तेवर की स्वागतयोग्य आलोचना पर पेश अपनी सफाई यहां पेश कर रहा हूं. कोई भी बात या आलोचना से परे नहीं है. हर बात पर प्रश्न-प्रतिप्रश्न ही ज्ञान की कुंजी है. लेकिन इसकी निरंतरता में नास्तिकता का रिस्क है, इसी ने मुझ जैसे कर्मकांडी संस्कारों के सीधे-सादे ब्राह्मण बालक को नास्तिक और ब्राह्मणवाद(वर्णाश्रमवाद) विरोधी (ब्राह्मण विरोधी नहीं) दिया. इस ग्रुप में सामाजिक सरोकार युक्त सार्थक विमर्श में योगदान कर पाना मेरा अहोभाग्य होगा. कुछ मित्रों का आरोप है कि मैं असहमति के प्रति असहिष्णु हूं. निराधार निजी आक्षेप या गाली गलौच कम बर्दास्त है तो उन्हें यह कहकर संवाद बंद कर देता हूं कि भाषा की तमीज समादीकरण का परिणाम होता है और सीखने की कोई उम्र नहीं होती. शिक्षक पढ़ाता ही नहीं लगातार सीखता भी है. ज्ञान एक निरंतर प्रक्रिया है.

Krishna Mohan Singh  ठीक कह रहे हैं, कई बार फौरी, स्वस्फूर्त प्रतिक्रिया में अनजाने में भाषा आक्रामक (तीखी) हो जाती है और उसे मैं वैसे ही रहने देता हूं, अपने को आश्वस्त करने के लिए कि क्रोध और आवेश जैसी मानवीय प्रवृत्तियों से युक्त साधारण इंसान हूं. यदि कोई बात खुद को बहुत अनुचित लगती है तो अफ्शोस जाहिर कर मॉफी मांग लेता हूं क्योंकि हम सब साधारण इंसान हैं और गलती कर सकते हैं, उसे न मानना आपराधिक है. लेकिन जब कोई बातों को काटने की बजाय निराधार निजी आक्षेप पर उतर आता है तो क्रोध स्वाभाविक होता है जिसपर अंकुश लगाना चाहिए क्योंकि क्रोध  प्रायः आत्मघाती होता है. हमेशा क्रोध से बचने की कोशिस करता हूं फिर भी आ ही जाता है. लेकिन कई बार जान-बूझ कर आक्रामक भाषा का इस्तेमाल करता हूं, कल्चरल शॉक के लिए, जैसे पितृसत्ता या पुरुषवाद की जगह जानबूझकर मर्दवाद लिखता हू. मोदीभक्ति को मोदियापा लिखता हूं. कई बार लगता है कआश मैं भाषाविद होता या भाषा ही समृद्ध होती, ज्यादा आक्रामक शब्दों के लिए. मेरा मकसद ये सब करने के पीछे अंधविश्वासी, सांप्रदायिक, पूंजीवादी, जातिवादी, मर्दवादी.. युगचेतना के विरुद् एक वैज्ञानिक जनचेना का अभियान है. हर मनुष्य चिंतनशील प्राणी है इसीलिए मैं दिमाग के इस्तेमाल के लिए लोगों को कुरेदता रहता हूं जिसे समाज पालन-पोषण और शिक्षा के दौरान पुरातन के मोह और नये के भय के भावों के दोहन से संस्थागत रूप से हतोत्साहित और कुंद करता है, क्योंकि जिस दिन लोग दिमाग का स्वतंत्र इस्तेमाल करके दुनिया की तथ्य-तर्क आधारित समझ विकसित करलेंगे शासक युग चेतना का वैचारिक वर्चस्व तोड़ते हुए जनवादी जनचेतना बन जायेगी और बनेगी ही उस दिन धूर्तता पर आधारित भेदभाव की व्यवस्था दरकना शुरू हो जायेगी और आशावादी हूं कि आने वाली पीढ़ियां हमारे अभियान  को त्वरण प्रदान करेंगी और एक-न-एक दिन मानव-मुक्ति के सपनों को साकार करेंगी. हमारा दायित्व है कि विवेक सम्मत समझ विकसित करने के अनवरत प्रयास के साथ मानव-मुक्ति के अभियान में सामर्थ्य भर योगदान करते रहें. (मास्टरों को मौका मिले तो रुकते ही नहीं, 2 वाक्य लिखने की सोचा और....हा हा). एक बात और हम अक्सर पैसिव वॉयस में बात करते हैं. यह हो गया. अरे भाई अपने आप कुछ नहीं होता. मैं ऐकटिव वॉयस में बात रखने का हिमायती हूं.

Pramod Shukla  भाषाी की मर्यादा का मानदंड क्या होगा? मैंने कभी नहीं कहा मैं कोई वादी हूं लेकिन जैसे ही कोई तर्कसंगत बात करता हूं कुछ खास तरह के लोग बौखलाकर  मर्क्सवाद  का मर्सिया पढ़ने लगते हैं मौं इसे कांप्लिमेंट के तौर पर लेता हूं अंध, अतार्किक  दृढ़ आस्था और खूंटा यहीं गड़ेगा की प्रवृत्ति के बारे में आश्वस्त हो उनसे विदा ले लेता हूं. इसे संघी प्रवृत्ति कहा जाता है. जो व्यक्ति भाषा-इतिहास-विनम्रता की सारी मर्यादायें तोड़कर हुंकार और ललकार के शगूफे छोड़े उसे फेंकू से बेहतर किस सर्वनाम से पुकारा जाय? जो व्यक्ति हजारों निर्दोषों को मौत के घाट उतारने, सार्वजनिक सामूहिक बलात्कार, बेघर करने के नाडक की पटकथा लिखने के बाद शौर्य दिवस मनाये उसे नर पिशाच से बिहतर उमसा क्या दिया जाय. इनका ईजाद मैंने नहीं किया मैं सिर्फ प्रयाग करता हूं. मैंने कभी किसी को निजी रूप से कभी कुछ नहीं कहा. तानाशाह सफाई घर से शुरू करता है, इतिहास गवाह है.

Shweta Mishra  विमर्श की धार भाषा के तल्ख तेवर से नहीं, विषयांतर, कुतर्क, फतवेबाजी और निराधार निजी आक्षेपों कुंद होती है और भच जाती है, और अंध आस्था का कुतर्क कुछ हद तक सफल हो जाता है. जैसे बात कोई भी हो लेकिन संघी धमकी भरे शब्द में एक ही बात कहेगा. 16 मई को देख लेंगे. तब तक आंख बंद रखेंगे.  मेरे इनवॉक्स में मां-बहन कती गालियां देते हैं और मैं उन्हें ब्लाॉक कर देता हूं.

Wednesday, April 16, 2014

लल्ला पुराण १४५

आपके प्रश्न का संक्षिप्त उत्तर संभव नहीं है. संसदीय(तथाकथित) जनतंत्र से जन उसी तरह गायब है जैसे प्लेटो के रिपब्लिक से पब्लिक.  चुनाव बहिष्कार की अपील करने वाले  माओवादियों के अलावा नक्लसलबाड़ी की विरासत के कई और दावेदार हैं और उनमें से कई चुनावी पार्टियां बन गयी हैं. चुनाव बहिष्कार के लिए बलप्रयोग निंदनीय है. इस पर आज एक लेख लिखना है अगर लिखा गया तो पोस्ट करूंगा. युग चेतना को जनचेतना से लैस करने के दीर्घकालिक और फासीवाद से संविधान की रक्षा के तत्कालिक उद्देश्यों में तालमेल और समन्वय की आवश्कता है. नागनाथ-सांपनाथ में चुनाव करना हो तो चुनाव में भाग लेना न लेना कोई मतलब नहीं रखता नेकिन अगर अन्य सांपों और मानवता को निगल जाने की आहट देने वाले अजगर में हो तो पहले अजगर को मारना चाहिए इसीलिए मैंने दिल्ली की विधान सभा और लोक सभा के लिए, तमाम असहमतियों के बावजूद आआपा को वोट दिया. बनारस के मित्रों से आग्रह करता हूं कि खुद को भोले-शंकर से बड़ा भगवान मानने वाले अंबानी और अदानी के जरखरीद, इतिहासबोध-शून्य एक नरपिशाच को चुनकर काशी को कलंकित न करें.

दुनियां और प्रकृति द्व्ंद्वात्मक है. कोई अंतिम सत्य नहीं होता इसलिए कोई उसका वाहक नहीं हो सकता. असहमतियों के टकराव से ही मुद्दों पर एक सार्थक सोच विकसित हो सकती है. अपने आप से भी असहमति तब होती है जब हम अपने संस्कारों को खंगालते और चुनौती देते हैं और यही अंतर्द्वंद्व और आंतरिक संघर्ष व्यक्तित्व के विकास का ईंधन है. इसे मैं Dialectical Unity of Learning and unlearning कहता हूं. जो अनलर्निंग की प्रक्रिया से नहीं गुजरते वे कुछ लर्न भी नहीं करते, बस पढ़-लिख कर रोजगार का हुनर सीख लेते हैं. इसालिए निजी गालियां देने वाले से भी तब तक संवाद नहीं बंद करता हूं जब तक उसकी कलुषित नीयत या खूंटा यहीं गड़ेगा की प्रवृत्ति का यकीन नहीं हो जाता. असहमतियों के सम्मान से ही स्वस्थ विमर्श संभव है.

मतदान


लूट के औचित्य का उपादान है मतदान
निज अधिकारों के गिरवीकरण का विधान है मतदान
5 सालों के लिए उत्पीड़क चुनने-बदलने का नाम है मतदान
नागनाथ-सांपनाथ के विकल्प का समाधान है मतदान
चोर-उचक्कों का अभयदान है मतदान 
थैलीशाहों का ज़रखरीद गुलाम है मतदान
(ईमि/१७.०४.२०४)

मोदी विमर्श 23



मोदियापा एक खतरकनाक रोग है जो भगवान मोदी भक्तों को मनुष्यत्व की उस अनूठी प्रवृत्ति से मुक्त कर देता है जो मनुष्यों को पशुकुल से अलग करती है -- दिमाग के इस्तेमाल की प्रवृत्ति. इन भोले भक्तों को नहीं मालुम कि अदानियों-अंबानियों-टाटाओं को जन-संपत्ति दान करने और उनकी ज़रखरीद गुलामी से हजारों करोड़ रूपये छविनिर्माण और निजी फ्मेंरचार में बर्बाद करने, तक्शिला को विहार पहुंचाने और चंद्कारगुप्पत मौर्य को गुप्त वंश में पहुंचाकर गंगा तट पर सिकंदर से लड़ाने का इतिहास ज्ञान दिने और फिरकापरस्ती का ज़हर फैलाने कि लिए जनसंहार और बलात्कार आयोजित करने, असुरक्षा में अपने ही दल के वरिष्ठों का पर कतरने के अलावा इस नरपिशाची भगवान का वह कौन सा गुण है जो  एक चिंतनशील अस्मिता बनाने में असमर्थ, जीववैज्ञानिक दुर्घना की जन्म की अस्मिता से चिपके इन विद्वानों को उसका परम भक्त बना दी है.

यह इलाहाबाद विवि के एक मोदीमय पोस्ट पर कमेंट था जिस मोदी भक्त का यह पोस्ट थी उसने लिखा यह तो ठीक है लेकिन नीतियों की आलोचना कीजिए, उस पर मैंने कहाः

सांप्रदायिक जहर फैलाकर संस्कृति को कलंकित करना एक सोची-समझी नीति है, वु्यकति को पार्यी और देश से बड़ साबित करने के लिए मुल्क की संपत्ति हानी की तरह प्रचार में बहाना एक फासीवादी नाति है जैसा कि हिचलर ने भी किया था. सरकारी मशीनरी को निजी चाकर बनाना एक नीति है जैसा कि हिटलर, मुसोलिनी और आपातकाल में इंदिरा गांधी ने किया था. जैसे मोदी के थैलीशाहों से याराना है वैसा ही याराना हिचलर के यहूदी थैलीशाहों समेत जर्मनी के थैलीशाहों से था, यह भी नीति का ही हिस्सा है. किसान-आदिवासियों की जमीनें छीनकर औले-पौने दामों में अपने कारपोरेट आकाओं को दान करना और किसानों के विरोध को बर्बरतापूर्वक कुचल देना कारपोरेटी दलाल-फासीवादी नीति है. किन नीतियों की बात कर रहे हैं -- मोदी ने जीवन में धनोपार्जन का क्या काम किया है कि उनकी घोषित संपत्ति करोड़ों में है. मित्र दिमाग इस्तेमाल कीजिए और इस नरपिशाच का एक गुण बता दीजिए जिससे आप उसके कट्टरभक्त हैं, मैं नास्तिकता त्याग आप का अनुयायी बन जाऊंगा.

Gujrat has been n industrially developed state since pre-colonial times and a trade centrer because of its commercially strategic location and was ahead of other states in pre-BJP days. Since BJP government many industries, particularly textiles industries have been closed rendering lakhs of workers unemployed. Ambanis and Adanis have developed. Adani has The protest of peasants were crushed.

मैं आकलन नहीं करता. यदि मोदी आ गया, जो जनचेतना-युगचेतना को देखते हुए असंभव नहीं है, तो उसकी जिम्मेदार जनता है वह खुद से कहे-सुने-झेले, मैं भी जनता का हिस्सा हूं और मुझे भी झेलना पड़ेगा. हिटलर का दयनीय अंत हुआ लेकिन इतिहास को सदियों के लिए कलंकित कर गया जिसका दुषपरिणाम फिलिस्तीनी झेल रहे हैं

मैंने आप को तो कुछ नहीं कहा, भाषा की तमीज सामाजीकरण से आता है, संघी प्रशिक्षण भी तर्क की बजाय गाली-गलौच ही सिखाता है, ऊपर किसी णोदी भक्त ने जो मुद्दे उठाए गये हैं उनपर एक शब्द भी किसी ने नहीं कहा, सिर्फ निजी आक्षेप और कुतर्क. आपकी कई बातें घोरमर्दवादी लगती हैं और बहुत से मोदियाये लोग फेक आईढी बनाकर बकवास करते हैं इसलिए मुझे संदेह हुआ कि आप फेक आईडी हो सकती हैं क्योंकि मेरे जैसे साधारण इंसान को समझ नहीं आता कि कोई महिला सामूहिक बलात्कार के किसी ऐयोजक की भक्त कैसे हो सकती हैं, हां अगर आप इसका एक गुण बता दें जिससे वब आपको युगपुरुष लगता है तो आपका मुरीद हो जाऊंगा. हां मुझे अपनी नारीवादिता की सनद किसी नारी विरोधी संगठन के भोपुओं से नहीं चाहिए. ये संघी हर बात पर बौखला क्यों जाते हैं. मुझे तो जंम के जो संस्कार मिले थे उन्हें किशोरावस्था तक स्वाहा कर दिया था, जो हैं अर्जित हैं.

I call such people educated duffers who cant transcend the identity emanating from the biological accident of birth. As a teacher I feel ashamed that what education we are giving to these young people that all their life they remain Hindu-Muslim; Brahman/Rajput/Bhumihar-Dalit; Yadav-Jat and do not become rational humans. Apply your mind dear Sanghis this is the sure cure of your Modioyapa disease.

Monday, April 14, 2014

जंगखोर


जंग चाहता जंगखोर 
ताकि राज कर सके हरामखोर
चाहते हा अगर अमन-ओ-चैन समाज
खत्म करना पड़ेगा जंगखोरी का राज
न खतरे में है मेरा घर न खतरा वतन को
खतरा है निरंतर जनवाद का निज़ाम-ए-जर को
नहीं त्रस्त जंगखोरी से महज हमारे सरहद
खेतों से भी आने लगी है अब तो जंग की आहट
पड़ोसियों में होने लगी दुश्मनी की सुगबुगाहट
छाने लगा है गांवों में खौफ का शाया 
मिलेगी जंगखोरों को मतों की माया
तोड़ों लोगों ये रक्त रंजित हाथ
कर दो इन्हें अकेला मिले न किसी का साथ
(ईमिः14.04.2014)

यूटोपिया

जब तक कुछ फलीभूत नहीं होता तब तक लोग उसे यूटोपिया कहते हैं. हमारे बचपन में दलित और नारी चेतना और प्रज्ञा एवं दावेदारी की बातें यूटोपिया करार कर दी जातीं. फरवरी 1917 से अप्रैल 1917 तक बॉल्सेविक क्रांति एक अतिउत्साही यूटोपिया माना जा रहा है, किसने सोचा था कि अक्टूबर 1917 के 10 दिन दुनिया हिला देंगे? 1950-60 के दशक में कोइ कहता कि अमेरिका में अश्वेत राष्ट्रपति की कल्पना यूटोपिया मानी जाती. परिवर्तन यद्यपि मात्रात्मक ही है. भरत जानते हैं कि 1982 में अपनी बहन की पढ़ाई के लिए युद्ध-स्तर की जद्दो-जहद करना पड़ी थी, आर्थिक पहलू पर कोई बहस ही नहीं थी. आज किसी बाप की औकात है सार्वजनिक रूप सो घोषणा करने की कि वह बेटा-बेटी में फर्क करता है? भले ही एक बेटे के लिए ५ बेटियाँ पैदा कर ले.1970 के दशक में इलाहबाद विवि में दलितों का लग मेस होता था आज किसी की हिम्मत है, कह सके कि दलितों का मेस अलग होना चाहिए? कितना बड़ा जातिवादी क्यों न हो.इसे मैं नारीवाद और जातिवाद की क्रमशः सैद्धांतिक विजय और पराजय मानता हूँ जो समय के साथ व्यवहार रूप लेते जायेंगे.  ये मात्रात्मक परिवर्तन अवश्य ही गुणात्मक परिवर्न बनेगें, क्योंकि इतिहास की गाड़ी में बैक गीयर नहीं होता. फासला समय का है और मामला क्रांतिकारी जनचेतना के प्रसार के वेग और त्वरण का है.

इतिहास के गतिविज्ञान की कोई समयसूची नहीं बनाई जा सकती. सारा मामला भीड़-चेतना से जनचेतना की यात्रा का है. राज्य के वैचारिक औजार और प्रतिगामी संस्कार लगातार  एक अधोगामी युगचेतना के जरिए जनचेतना की धार कुंद करने में व्यस्त रहते हैं. इस कारपोरेटी युगचेतना को ध्वस्त कर जनवादी युग चेतना की आवश्यकता है जो अवश्यंभावी है. बुरी है आग पेट की बुरे हैं दिल के दाग ये न बुझ सकेंगे एक दिन बनेंगे इंक़िलाब ये.

Change is the eternal law of nature. Everything in the universe is in continuous state of change and flux. "The only constant is change itself", as has rightly been  said by the ancient Greek Philosopher, Heraclitus, "you don't step into the same river twice".  The point is to progressively influence the change.

युद्धोन्माद

ज़ंग खुद-ब-खुद एक मसला है दर्दनाक
नहीं हो सकती किसी मसले का समाधान
जीतता नहीं कोई होता बस रक्तपात अपरंपार
होती है इन्सानियत की शर्मनाक हार
मौत के घाट उतरती है लाशें उसतरफ की
हो जाती हैं शहीद लाशें इस तरफ की
करता है सरहद पार जब विमर्श
उलट जाता है शहीद-ओ-शैतान का निष्कर्ष
कुर्सी पर आता है जब भी जनता का खतरा
गाता है निज़ाम-ए-ज़र जंगखोरी का मिसरा
रोजी-रोटी को लिए तरसता है जब मजदूर-किसान
छोड़कर हल-ओ-हथौड़ा बन जाता है जवान
सिखाया जाता है उसको नहीं चिंतन उसका काम
मिलता है उसको जान लेने-देने का दाम
युद्धोंमाद
चाहते हैं जंग दोनों तरफ के जंगखोर
करते रहें राज जिससे हरामखोर
है यही शोषण की सभ्यता का इतिहास
गरीब ही गिराते रहे हैं गरीबों की लाश
आओ सुनते हैं शाहिर लुधियानवी की बात
निकालते हैं दिलों से युद्धोन्मादी जज़्बात
दिया था हबीब जालिब ने हमको यह सीख
जंगखोरी मंगाती है जनता से भीख
नहीं हैं खतरे में हमारे घर या वतन
खतरे में होता है लूट-खसोट का शासन
समझेंगे यह बात जब दुनियां के जवान
अपने ही जंगखोरों पर देंगा बंदूकें तान
मिलेगा दुनियां को रक्तपात से छुटकारा
गूंजेगा आकाश में अमन-ओ-चैन का नारा
(ईमिः14.04.2014)

Sunday, April 13, 2014

सियासत की दुकानदाररी

सच कहते हो मेरे बस की नहीं ये दुकानदारी
औकात इतनी भी नहीं कि कर सकूं खरीददारी
नहीं है चलाना लूट-खसोट की ये दुकान
बनाना है इसको मुनाफे का शमसान
बसायेंगे उस पर एक नया सुंदर संसार
गुलामी और गरीबी हो जायेंगी फरार
समानता के सुख का होगा आविष्कार 
मुक्त होगी समाज की सर्जना अपार
न कोई अट्टालिका न मलीन बस्ती
मनाएंगे सभी भाईचारे की मस्ती
मिल-जुलकर सब कमाएंगे
मिल-बांटकर सब खायेंगे
क्षमता भर सभी श्रम-शक्ति लगायेंगे
जरूरत होगी जितनी उतनी सब पायेंगे
मानवता को होगा अनूठे सुख का आभास
न होगा कोई स्वामी न ही कोई दास 
होगी नफरत नदारत औ मुहब्बत आबाद
. इंक़िलाब जिंदाबाद
(ईमिः14.04.2014)

आरक्षण विमर्श

अंबेडकर को भला-बुरा कहने वालों से आग्रह है कि 1936 में लिखी उनकी 100 पेज से कम की पुस्तक, हिंदू जातिव्यस्था का उन्मूलन पढ़ लें, बहुत सी बातें उनके समझ में आ जायेगी. दर-असल पूंजीवाद ने लगता है हिंदू जातिव्यवसल्था से सीख लेकर कामगरों को इतनी श्रेणीबद्ध कोटियों में बांट दिया है कि हर किसी को अपने से नीचे देखने के लिए कोई मिल जाता है.

Kr Madhukar  आरक्षण से जाति नहीं पैदा हुई, अमानवीय जातिव्यवस्था की बिद्रूपताओं को कम और अंततः खत्म करने के लिए सामाजिक न्याय के प्रावधानें की जरूरत पड़ी, इसीलिए एसे सामाजिक न्याय कहते हैं आर्थिक नहीं. एक बात अक्सर नजर-अंदाज कर दी जाती है कि भारत में शोषित जातियां ही शोषित वर्ग भी रही हैं, वर्ग और वर्ण overlap करते हैं. किस प्रतिभा की बात कर रहे हैं? आप अपने तथाकथित प्रतिभाशाली और आपके हिसाब प्रतिभाहीन शिक्षकों की वस्तुगत तुलना कीजिए. कोचिंग के नोट रटकर कितने आईएयस, पीसियस जेल में और जमानत पर हैं?  प्रतिभा एक मिथ है, इम्तहान पासकरके कोई ज्ञानी नहीं हो जाता. हमारे मुल्क में तो 100प्रतिशत आरक्षण हजारों साल रहा, सामाजिक न्याय सत-प्रतिशत आरक्षण की आंशिक भरपाई है. सच कह रहे हैं आरक्षण एक सुधारवादी कदम है, समरस समाज क्रांति की मांग करता है, मुनाफाखोरी के सिद्धांत पर आधारित व्यवस्था के आमूल विनाश के बाद एक ऐसे समाज के निर्माण की मांग करता है जिसमें मनुष्य का मनुष्य द्वारा शोषण असंभव होगा.
theoretically, reservation is meant to help empower the deprived community through appropriate representation in education and other public spaces so that the reservation becomes irrelevant. In Ambedkar's vision it is meant to annihilate the caste not escalate it. 

नहीं है कांटों का ताज राजकाज

नहीं है कांटों का ताज राजकाज
मुल्क बेचने का साज है राजकाज
(ईमिः13.04.2014)

नहीं होती हिफाजत की जरूरत गुलाब को

नहीं होती हिफाजत की जरूरत गुलाब को
कांटों से तो उसकी  दोस्ती है जन्मजात.
(ईमिः13.04.2014)

खुद कत्ल नहीं करते होते हैं जो खुदा

खुद कत्ल नहीं करते होते हैं जो खुदा
करवाते हैं वो कत्ल अपने बंदों से
खुद नहीं देता अंजाम गुनाह को
होता है जो सरगना गिरोह का
(ईमिः13.04.2014)

Tuesday, April 8, 2014

लल्ला पुराण 144

Shivam Singh एक अच्छा शिक्षक वह  होता है जिसकी बात सर के ऊपर से नहीं सर के अंदर से गुजरे, मुझ जैसे मूढ़ की भी समझ में आ जाये. जो मूर्ख-फरेबी किस्म के शिक्षक हैं वे अपनी कमी को छिपाने के लिए गोल-मटोल बातें करते हैं और विद्यार्थी की समझ में नहीं आता तो कहता है कितने अच्छे शिक्षक हैं इनकी कोई बात ही समझ में नहीं आती, यानि पढ़ाना व्यर्थ गया. गुरू जी जरा सरल भाषा में समझा दीजिए . मैं तो जो विषय यमफिल के छात्रों को समझाता हूं, वही किसान-मजदूरों की स्टडी क्लास में भी समझा देता हूं जो घंटों चलती है और पर्याप्त आनंद आता है.

Vibha Pandey हर प्रतीक का निहितार्थ होता है. आप लोग भाग्यशाली हैं जो १-२ पीढी बाद पैदा हुईं लेकिन जो अधिकार और आज़ादी आपको प्राप्त है या आपने वर्चस्व के प्रभाव में सेवा भाव से त्याग रखा है वह पिछली पीढ़ियों के सतत संघर्ष का नतीज़ा है. दान वस्तु की जाती है व्यक्ति नहीं.

Sanjai Singh  कन्यादान को क्यों श्रेष्ठ मना गया है, बालक दान क्यों नहीं? कन्यादान जिसे करते हैं वह दामाद हुआ. मतदान कन्यादान जैसा है तो उम्मीदवार दामाद जसा हुआ. मान्यवर कोइ कर्मकांड निरपेक्ष नहीं होता. वर्चस्व की विचारधाराएँ रीति-रिवाजों; कर्मकांडों; मिथकों और दृष्टान्तों के माध्यम से वर्चस्व को बरकरार रखता है और जागरूकता हासिल करने के साथ, अधीनस्थ इन  रीति-रिवाजों; कर्मकांडों; मिथकों और दृष्टान्तों को तोड़ कर वर्चस्व को समाप्त करने का प्रयास करता है. आज जब लडकिया प्रज्ञा और काम के सारे मिथकों को तोड़ रही हैं और हर क्षेत्र में लडकों पर भारी पद रही हैं तो रीति-रिवाजों और एक पतनशील संस्कृति के ठेकेदार  बौखला कर मर्द्वादी  (पितृसत्तात्मक) प्रतीकों और रीरेतिरिवाजों को बचाने के  प्रयास में लग गए. नारी प्रज्ञा और दावेदारी का जो दरया झूम के उत्था है तिनकों से न टाला जाएगा.

Vibha Pandey  मैं समझ सकता हूँ, मान की कमी कोइ नहीं पूरा कर सकता, इस उम्र में भी मुझे भी खलती है मान की कमी. मैं २ बेटियों  का फक्र्मंद बाप हूँ,मुझे पिरिवत मित्र मान सकती हैं. वजूद की स्वतन्त्र तलाश आत्म-संबल और आत्म-विस्वास को मजबूत करता है. मैं लड़का था और पितृसत्तात्मक समाज में लड़कों को लडकियों से कम समस्या होती है लेकिन मैं भी किसान घर से निकला था और १-१८ की उम्र में विचारों की स्वतंत्रता की खातिर घर से आर्थिक सम्बन्ध विच्छेद लिया था. घर से बाहर रावनों में ही नहीं रामों से भी खतरा है. लेकिन जो परिस्थियां आयें साहस और आत्मबल से निपटा जा सकता है.  मैंने १-२ पीढी बाद पैदा होने से  भाग्य की बात इस लिए कह रहा हूँ कि सतत नारी संघर्षों के फलस्वरूप आपकी पीढी की लड़कियों को जो अपेक्षाकृत आजादी और अधिकार हासिल हैं वे हमारी पीढ़ी की लड़कियों को नहीं हासिल थे. पढो-लड़ो-बढ़ो. मेरी शुभकामनाएं.

Anita Sharma  कन्या दान महा दान इसलिए माना जाता है कि मर्दवादी संस्कृति में कन्या को मूल्यवान वास्तु मना जाटा है जिसे वेटलिफ्टिंग या तीरंदाजी की  काबिलियत से पुरस्कार स्वरुप भी हासिल किया जा सकता है और पुरस्कार पाने वाला अपने भाइयों के साथ मिलकर भी उस वास्तु का उपभोग कर सकता है. अआप का मतलब है कि लोग वोट देने निकलें तो अपने बच्चों का भविष्य जनसंहार और बलात्कार के अस्वमेध रथ पर सवार अम्बानी और अदानी के एक दलाल को सौंप दें जिसने किसानों आदिवासियों को कुचल कर उनकी जमीनी अपने थैलीशाह पालकों अदानियों-अम्क्बानियों को सौंप दे? जो गुजरात की तरह देश की संपदा देशी-विदेशी कारपोरेटों  उर को सौंप कर किसानों-मजदूरों के हाथ में कटोरा थमा दे. देश भर में गुजरात जैसा जनसंहार और बलात्कार को अंजाम दे. एक अहंकारी तानाशाह  अब फेसबुक अपनी दर्नाक मौत के पहले देश-दुनिया तबाह करके जाता है. जिसकी भरपाई पीढी-डर पीढी करती है. तानाशाहियों का इतिहास पढ़ लो.
vibha pandey  तर्क की तो गुजारिश कर रहा हूँ यह तभे संभव है जब मर्दवादी संस्कारों का कूड़ा दिमाग से निकलेगा. जनता की कमजोर नब्ज पहचान कर ही तानाशाह आततायी जनता पर अत्याचार करता है. मेरा आप सब युवाओं से यही अनुरोध है संकारों का बोझ उतार फेंको और दिमाग इस्तेमाल करो. जेल के सुख का भ्रम तोड़ो. आज-कल में इस मंच पर काफी समय खर्च किया. अब कुछ दिनों मनन करो.

और हाँ मैंने ज्ञानी होने का दावा कभी नहीं किया न हूँ. अल्पज्ञानी के खिताब के लिए शुक्रिया मैं तो दर-असल लगातार सीखने के लिए प्रयासरत एक गाँव का  एक अज्ञानी, अति साधारण किन्तु ईमानदार इंसान हूँ जो किसी भी भेदभाव का विरोधी है.

वहां भी लिखता हूँ. जिन लोगों ने दिमाग में ताला लगा लिया है या पति-पिता  की इजाज़त से दिमाग चलाती हैं  उनका कुछ नहीं हो सकता अनीता जी, लेकिन शब्द बेकार नहीं जाते. कुतर्की-पोंगापंथी बौखलाते हैं तो वह भी एक उपयोग ही हुआ.

Anita Sharma  एक लिंग और वर्ग-विभाजित समाज में सभी को कोई भी सार्थक बात अच्छी नहीं लग सकती है इसी लिए हम समतामूलक समाज के हिमायती है मर्दवाद और कारपोरेटवाद को मेरी बातें बुरी लगेंगी ही, न लगें तो तो लगेगा कहने में कुछ कमी रह गयी. आक्रामक भाषा का प्रयोग जानबूझ कर करता हूं जिससे ज्यादा असर पड़े. जैसे पितृसत्ता या पुरुषवाद न लिखकर मैं मर्दवाद लिखता हूं जससे रीति-रिवाज और तथाकथित मर्यादा की दुहाई देकर "मर्दानगी" पर इतराने वालों को ज्यादा तिलमिलाहट हो. सांप्रदायिकता ही तरह जेंडर(मर्दवाद) कोई जीववैज्ञीनिक प्रवृत्ति नहीं है न कोई सार्वभौमिक सत्य, बल्कि सांपर्दायिकता की ही तरह एक विचारधारा है जो नित्य-प्रति की दिनचर्या में हम गढ़ते और पोषते हैं. उदाहरण के लिए किसा लड़कीको शाबासी देने के लिए बेटा कह देते हैं तो वह लड़की भी इसो उसी रऊप में लेती है. किसी लड़के को बेटी कह दो तो सब हंस पड़ेंगे. िसीलिए शब्दों के चुनाव में सजग रहना चाहिए कोई शब्द मूल्यनिरपेक्ष नहीं होता. 

Monday, April 7, 2014

चकित हिरणी सी आंखें


क्या कहती हैं चकित हिरणी सी ये आंखें
और चेहरे के जिज्ञासु भाव?
दिखता है इनमें जज़्बा कुछ कर गुजरने का
सड़ी-गली रीतियों को खंड-खंड करने का
हैं इनमें इरादे देने को नया आयाम इंसानी मर्यादा को
और ख़्वाब रचने का एक नई दुनिया
होगी जो मुक्त किसी भी अत्याचार से
भेदभाव के हर दुराचार से
न होगी गुंजाइश रंजिश-ओ-नफरत की
शोषण व वर्चस्व की फरेबी फितरत की
होंगे लब आज़ाद सभी के और सक्रिय सर्जना
सभी होंगे स्तंत्र न होगी कहीं कोई वर्जना
आयेगा इंसानी गतिविज्ञान में अब और नहीं ठहराव
पनपेंगे-बढ़ेंगे-फूलेंगे-फलेंगे इंसानी समानुभूति के भाव
आंखों में है अब भी उस सपने का शुरूर
लगता है यह लड़की खास कुछ कर गुजरेगी जरूर
(ईमिः07.04.2014)
(हा हा ये तो कुछ कविता सी हो गयी, मैं तो सभी को लाल झंडा पकड़ा देता हूं बाकी...... खूब पढ़ो-लड़ो-बढ़ो)

लल्ला पुराण 143 (कन्यादान-मतदानः मोदी विमर्श 23)

मोदी ने कहा मतदान कन्यादान सा है सुपात्रों को ही दें. यानि जिसे भी मतदाता वोट देगा उसे अपने दामाद सा मानेगा, आँखे खोलो दकियानूसी जाहिलों, सुनो लड़कियां की ललकार कर कर रही हैं वे  दान की वस्तु होने से इनकार, समझेगा जो माल इन्हें लेंगी आँखे निकाल, आयेगी न किसी काम तेरी ये मर्दवादी सड़ी-गली ढाल..

Rituals are like the burden of the corpses of the dead generation that impede the velocity of the social motion and fetter the spirit of innovation and invention. Kanyadan is a ritual of patriarchy which considers the daughter as some one else's property (Paraya Dhan) to be gifted as donation  of course with dower that makes a Kanya an undesirable burden to be gotten rid of. Gradually with the ongoing march of feminist assertion and scholarship, patriarchy is breaking apart. Though there is related feminist consciousness but not in correspondence to  extent of feminist assertion and scholarship due to long cultural hegemony. The women are challenging the patriarchy and patriarchal rituals and many of them refusing to be object of Daan. Symbols tell the narrative. Those women who accept to be precious objects rather than live human beings and  are ready to be treated as a precious object to be gifted away do so under the false consciousness unable to liberate themselves from the hegemony of the gender perpetuated by the organic intellectuals of the patriarchy. Such women remind me of  Simone de Beauvoir. Once some journalist asked her, "When women themselves prefer the traditional (patriarchal) way of life why do you want to impose your views". Her reply was, "We don't seek to impose anything on anyone. They are happy with traditional way of life because they do not know any other way of life. We just seek to expose them to other ways of lives also. And what can you do if some one can learn to derive some amount of power even within the prison."

कन्या को पूजा की वस्तु बनाना उसी तरह मर्दवादी साज़िश है जैसे उसे भोग और दान की वस्तु बनाना. मेरी बातों से सभी किस्म के तालिबानों, भर्मांधों और धर्मोंमादियों को कल्चरल शॉक लगता है और वे तर्क करने की बजाय बौखलाकर ऊल जलूल विशेषण का इस्तेमाल करते है क्योंकि भाषा की यही तमीज उन्हें संस्कार में मिली है और वे अपने मर्दवादी वर्णाश्रमी संस्कारों को अक्षुण रखते हुए कुतर्क करते हैं. नकारात्मक पोस्ट से आपका क्या मतलब है. आस्था और तर्क का 36 का आंकड़ा है अगर आप अनर्गल प्रलाप की जगह दिमाग लगाकर तर्क से मेरी बातों का खंडन करते तो प्रसन्नता होती, लेकिन संघी प्रशिक्षण आज्ञापालन का हिमायती होने के नाते दिमाग के इस्तेमाल को हतोत्साहित कर पशुवत बना देता है क्योंकि दिमाग का इस्तेमाल ही इंसान को जानवर से अलग करता है. जो महिलाएं कन्यादान जैसे मर्दवादी कर्मकांड की समर्थक हैं वे वैचारिक वर्चस्व  के प्रभाव में मिथ्या-चेतना की शिकार हैं क्योंकि मर्दवाद कोई जीववैज्ञानिक प्रवृत्ति नहीं है बल्कि विचारधारा है और विचारधारा उत्पीड़क और पीड़ित दोनों को प्रभावित करता है. नारीवादी होने के नाते मर्दवादी वर्चस्व  के विरुद्ध नारीवादी चेतना के प्रसार में योगदान अपना दायित्व समझता हूं.

Kaushlendra Pratap Singh तर्क में कोई श्रेष्ठता की बात नहीं होती. भोजपुरी में एक कहावत है- पते में कौन ठकुरई. मैं अपने विद्याथियों को निरंतर सवाल करने को प्रोत्साहिक करता हूं और जो विद्यार्थी कभी कोई असहज सवाल पूछता है उसे ज्यादा ही सम्मान से याद करता हूं. किसी भी ज्ञान की कुंजी सवाल-दर-सवाल है. हर बात पर सवाल हर मान्यता पर सवाल. कोई अंतिम ज्ञान नहीं होता ज्ञान एक निरंतर प्रक्रिया है.  लेकिन ज्ञान की तलाश में सतत सवालों की निरंतरता में नास्तिकता का खतरा है, जैसा कि मेरे साथ हुआ, एक कट्टर, रूढ़िवादी, कर्मकांडी परिवार के संस्कारों का बालक एक प्रामाणिक नास्तिक बन गया. जब मैं कक्षा म11 में था तो मेरी अपने पिताजी से किसी बात पर लंबी बहस हो गयी और पौस्त में मेरी गुड व्वाय की इमेज खंडित हो गयी और आत्मविश्वास मजबूत. आपके हर सवाल का जवाब देने की कोशिस करूंगा जहां अक्षम होऊंगा माफी मांग लूंगा. लेकिन आप सवाल नहीं करते मुझे निराधार विशेषणों से नवाजते हैं. निजी आक्षेप भी करें तो तर्कों-तथ्यों के आधार पर तालिबानी फतवेबाजी की तर्ज पर नहीं. मैं बहुत आशावादी शिक्षक हूं, हार नहीं मानता. एक बार किसी संदर्भ में एक मित्र ने कहा कि गधे को रगड़ रगड़ कर घोड़ा नहीं बनाया जा सकता, मैंने कहा था कि मेतरा काम है रगड़ते रहना, क्या पता कुछ बन ही जायें और अंततः लगभग सभी बन गये.
कुतर्क तो आप कर रहे हैं बंधु, साफ साफ बताइे कौन सी बात आप को कुतर्क लगती है, दिमाग का इस्तेमाल करें तोतागीरी बंद करें. मेरा कुछ नहीं आप अपने ही घटिया संस्कारों को उजागर कर रहे हैं. आप जैसे बंद दिमाग मोदियाये हुए संघी से विमर्श का प्रयास समय की बर्बादी है.

Shivam Singh एक अच्छा शिक्षक वह होता है जिसकी बात सर के ऊपर से नहीं सर के अंदर से गुजरे, मुझ जैसे मूढ़ की भी समझ में आ जाये. जो मूर्ख-फरेबी किस्म के शिक्षक हैं वे अपनी कमी को छिपाने के लिए गोल-मटोल बातें करते हैं और विद्यार्थी की समझ में नहीं आता तो कहता है कितने अच्छे शिक्षक हैं इनकी कोई बात ही समझ में नहीं आती, यानि पढ़ाना व्यर्थ गया. गुरू जी जरा सरल भाषा में समझा दीजिए . मैं तो जो विषय यमफिल के छात्रों को समझाता हूं, वही किसान-मजदूरों की स्टडी क्लास में भी समझा देता हूं जो घंटों चलती है और पर्याप्त आनंद आता है. 

Sunday, April 6, 2014

मोदी विमर्श २२


मोदी से संबंधित एक लिंक पर कुछ संघी तर्क देने की बजाय धमकी दे रहे थे कि 17 मई को पता चलेगा. उस पर मैंने यह कहा--

अगर बहुमत भी आ गया तो क्या हो जायेगा आधे तो कांग्रेसी और दूसरे भगोड़े होंगे जो कभी भी कहीं भी भाग सकते हैं, इसके अलावा जिन आदमखोर बूढ़े शेरों को अपमानित किया है, वो भी ताक में रहेंगे. हो सकता है मोदी के अहंकार से नागपुर भी आहत हो जाये, होने को तो कुछ भी हो सकता है. इतिहास ने कितने हिटलर-हलाकू-चंगेज देखे हैं, लेकिन मोदियाये इतिहास से सीख नहीं लेते और भूल जाते हैं इन आतताइयों के दर्दनाक अंत. लेकिन मान लीजिए ऐसा नहीं हुआ तो क्या होगा. लहर में तो कोई भी जीत सकता है फिर क्यों पुराने कार्यकर्ताओं को नज़र-अंदाज कर हर दल के भ्रष्ट और आपराधिक छवि के नेताओं को खड़ा कर रही है, क्यों चुक चुके उदितराजों-पासवानों के दामन थाम रही है.

Rajiv Jha  कुछ लोग लाटरी निकलने पर पगलाते हैं कुछ टिकट खरीदकर ही पगला जाते हैं, मोदियापे की जहालत से पीड़ित मोदी के अंधभक्तों की हाल यही है. इन भक्तों से अगर इनके भगवान के भगवानत्व का एक गुण पूछिए तो 6मई की धमकी देते हैं. जंम की जीववैज्ञानिक दुर्घटना की अस्मिता से उपर उठ पाने में असमर्थ ये बजरंगी यह नहीं जानते कि नास्तिक भूत और भगवान से नहीं डरते.