Friday, January 31, 2014

दिलों की मुलाकात

करो पैदा आजादी का जज्बा
तोड़ दो हर तरह का कब्जा
कब्जे और मिल्कियत की बात
नहीं है कोई कुदरती ज़ज्बात
पुरुष को समर्पण स्त्री सर्वस्व का
है नतीजा मर्दवादी वर्चस्व का
वर्चस्व के रिश्ते में होता शक्ति का गुमान
पारस्परिक समता में मिलता सुख महान
मासूम हूं समझता नहीं कब्जे की बात
जनतांत्रिक रिश्तों में होती दिलों की मुलाकात
(ईमिः01.02.2014)

खुर्शीद

वह शाम थी हमारी आखिरी मुलाकात की शाम 
उसके बाद मिले तो देने को आखिरी लाल सलाम
खो गया किन बादलों में जगमगाता खुर्शीद 
छोड़ गया पीछे अनगिनत बिलखते मुरीद 
क़ातिल की बेचैनी का सबब है अब नाम उसका
फिरकापरस्ती से फैसलाकुन जंग का पैगाम उसका 
जाने को तो जायेंगे हम सभी एक-न-एक दिन 
कलम रहेगा सदा ही आबाद उसका लेकिन 
काश! वह कुछ दिन और  न छोड़ता यह दुनिया 
और भी समृद्ध होती इंकिलाबी इल्म की दुनिया 
अमन-ओ-चैन का था वह एक ज़ुनूनी रहबर 
यादों के अनंत कारवां में खो गये जनाब गब्बर
[ईमि/01.02.2014]

Thursday, January 30, 2014

1984 & 2002

1984 & 2002
This is my comment on Jairus Banaji's comparative analysis of 1984 Delhi and 2004 Gujrat pogroms.

I was also a witness to and active against the 1984 massacre and when the Commercial pilot son of the then "queen", who inherited the mantle of governance justified the pogrom by nsaying that when big tree fells the earth shakes. (BADA PED GIRTA HAI TO DHARTI HILTI HI HAI). Also I spent a fortnight in visiting various affected areas in Gujrat in 2002. Both were state sponsored pogroms. Both fetched electoral gains on the cost of lives, property and dignity of minorities. Not only this, both are equally loyal servants of the US imperialism. The difference between various ruling class parties is the same as the difference between Montek Singh Ahluwalia, Montek Singh Ahluwalia and Montek Singh Ahluwalia, or for that matter same as between Chidambaram, Chidambaram and Chidambaram,  I totally agree with Jairus Banaji that 1984 gave the BJP formed in 1980 by erstwhile Jansangh (Parliamentry wing of RSS) on the facade of Gandhian Socialism and was quite defensive on its communal agenda, the idea of aggressive communalism beginning with Shila Poojans and air-conditioned automated Rath Yatras under the leadership of hard core communal bigot LK Advani, the mentor of his own nemesis, Narendra Modi. I totally agree with Kapil Bhai on the question of our silence opn Bhagalpur, Bhiwandi, Varanasi(1991), Meerut, Maliana etc. No one knows about how many PAC( a thoroughly communalised force) men who gunned down scores of Muslims at Maliana at maliana in 1987, have been prosecuted. During our recent fact-finding visits to Muzaffarnagar, a victim of tacit Modi-Mulayam alliance, every time we passed through Maliana, memories of 1987 greatly saddened and plunged into painful introspection about our inability to counter the ideologies of communal/caste hatred in all these years. Its not only just 1984 and 2002 pogroms and adherence and devotion to neo-liberal imperialist policies, but the Congress and the BJP also match with each other in fake encounters. The Banzaras and Pandeys are lamenting in jails regretting (perhaps) their devotion to their erstwhile human-God in place of their conviction and commitment to Reason and the constitution but the Cops responsible for Batala House fake encounters are made into heroes as the government has refused a judicial probe in the name of "national security", the biggest threat to the dissenting voices. Its true of the all ruling class parties matching one another in corruption, ideological bankruptcy, lack of vision and the ideas pro-people programs and policies and loyalty to neo-liberal imperialism.  The tested tactic of ruling classes is to overplay and overproject their minor (most of the times artificial) contradictions to distract from and blunt the edge of the major contradictions. the populist, neo-liberal AAP is not the solution of the miseries confronting the country due to the level of the social consciousness vulnerable to manipulation and exploitation by the vested interests. The existing left parties for whatsoever reason have not been able to catalyze the rise of expected progressive social consciousnesses. It is time for non-party left to introspect and think of their role and contributions in this regard.

RSS 1

Yes, it is real story that RSS conspired to kill Gandhi ji. RSS and Hindu Mahasabha alongwith Muslim League and Jamat-e-Islami were directly-indirectly were the agents of the colonial rule and opposed both the streams of freedom movement that that duffer Golwalkar, one of the only 2 intellectuals RSS boasts of, wrote that have emanated from darkness where as their aim was to take the country to the highest glory. The other being Deen Dayal Upadhyay, who considered Budhism as traitor to "mother religion" that was corrected by Shung and Sankaracharya. And of course, when they came to power they did take India to the glory of selling out the sovereignty of the country to US imperialism and Wall Mart in the same pattern as their co-agent of imperialism.

Red salute to Com Kalundia

A great hero of anti-displacement movement is no more, died of Kidney failure. Red Salutes Com, Kalundia shall miss you for ever. Unbelievable, so sad, great loss to the anti-displacement movement, grief becomes more if you personally know the deceased.  We knew each other so well ever since March 2006, when we had gone for our first fact finding into Police firing on anti-displacement protesters, killing 14, Dabar along with Rabindra Jharika were 2 pillars and organic intellectuals of the heroic kalinganagar movement, that blocked a national highway for over a year. I met Dabar in my every every subsequent visit to kalinganagar, including on every 2nd January to participate in Bisthapan Birothi Mahasammelan as martyrdom day  to commemorate the martyrs of the movement. Demise of Com Dabar Kalandia is a personal loss to me like Com Rajendra Sadangi's untimely demise. Close to Dabar Com Sadangi was a coordinating axis between anti-displacement movements in general, and of Odisha  in particular. Lal Salam Com dabar Kalundia. I am in great shack, how can this dynamic young boy can leave us like that.  जबह तलक दम है कलम में हम तुम्हें मरने न देंगे, मौत कितने रंग बदले, तर्ज़ बदले, हम तुम्हें मरने न देंगे....   लाल सलाम, कॉमरेड डाबर कलुंदिया, लाल लाल सलाम.

Wednesday, January 29, 2014

क्षणिकाएं 14 (351-60)

351
ताप से तमाम चिरागों के टूट तो गया ख़ाब
जगने पर महसूसा आग की दरिया का ताप 
रोशनी के लिए जलाए थे तुमने जो चिराग 
लग गई उससे परंपरा के पुराने घरों में आग
बचा है जो इनके खंडहरों का ठिकाना 
आओ बनायें उस पर एक नया आशियाना 
हो जिसमें रोशनी भरमार जनचेतना की
रहे न कोई मिसाल निज चिराग की वेदना की
(ईमिः21.01.2014)
352
जलाकर सांझ की चौखट पर दिये, हवाओं के हाथ भेजा होगा पैगाम तुमने
हवाओं के रुख में कुछ नमी थी, बुलावे में खलूस की कुछ कमी थी
निकलीं हवाएं जब पैगाम देने, दिये को बुझा दिया उनकी नमी ने
मिला हवाओं से जैसे ही तेरा पैगामआया मैं दौड़ते छोड़ और सब काम
गुम है सांझ की चौखट रात के अंधेरे में, जलाओ एक दिया फिर से अपने बसेरे में
या बीत जाने दो ये धुप् अंधेरी रातभोर की किरणों में करते हैं मुलाकात
[
ईमि/22.01.2014]
353
आज मन न जाने क्यों कुछ उदास है
कविता कुछ दिन से बहुत नाराज हे
सुनाई दे रहा है चारों तरफ से शोर
ईशमिश्र हो गया है काफी कामचोर
लिखूंगा लेकिन फिर जरूर कविता
क्योंकि न लिखकर भी क्या कर लूंगा हा हा
[ईमि/25.01.2014]
354
न लिखने से तो कुछ नहीं होगा
लिखने से है बहुत कुछ हो सकता 
कलम औजार तो है ही इंकिलाब के हरकारे का 
हथियार भी है जंग-ए-आज़ादी के मतवाले का
कलम की धार से डरता है हर तानाशाह 
बौखला जाता है नफरत का हर बादशाह
लिखना ही है कविता करना है ग़र इंकिलाब
लगाने हैं जो नारे मजदूर-किसान ज़िंददाबाद
मानता नहीं कलम नियम छंदों और पदों का 
लिखता है संचित पीड़ा महकूमों-मज़लूमों का 
नहीं है मकसद इसका करना महज हंगामा 
लिखना है इसको तो मानव-मुक्ति का नगमा
लिखना है खाकनशीनों के हक़ के गीत 
मिटाने को शोषण-दमन के सारे रीत 
लिखूंगा ही लगातार कविता 
क्योंकि लिखना ही है
उसी तरह 
जैसे शोषितों के लिए लड़ता है क्रांतिकारी
क्योंकि उसे लड़ना ही है. 
(ईमिः 25.01.2014)
355
तुमने कहा तुम हिंदुस्तान हो, विश्व बैंक की शान हो 
चढ़कर शाही बग्घीपर, आम आदमी की हड़्डी पर
करते हो तोप-टैंकों का प्रदर्शन, जन पर तंत्र का  प्रहसन
जाग रहा है अब जनगण, छेड़ेगा अब भीषण रण
करेगा जनशक्ति का प्रदर्शन, तोप-टैंकों के तंत्र का मर्दन
डरेगा न अब बम-गोलों के शोर से, दबा देगा उन्हें इंकिलाबी नारों के जोर से
 तोड़ेगा शाही बग्घी की शान, लायेगा धरती पर एक नया बिहान
होंगे खत्म भेदभाव के सभी निशान, बनेगा तब जनगण असली हिंदुस्तान
[ईमि/26.01.2014]
356
तोड़ता रहूंगा ऐसे सारे कानून 
रोकते हैं जो अज़्म-ए-जुनून
[ईमि/26.01.2014]
357
बवफा-बेवफा से परे, ज़िंदगी एक बेशकीमती कुदरती इनायत है
वफाई-बेवफाई का बात, आत्मरत इंसानों की बनावटी रवायत है
वफादारी है कुत्तों की प्रवृत्ति, विवेकविहीन, भावुक अंतर्ज्ञान की
जीना है ग़र सार्थक ज़िंदगी, लिखना पड़ेगा अफ्साना हक़ीकत के संज्ञान की
होती नहीं बेवफा ज़िंदगी, है ये फसाना किसी नादान इंसान की
358
जंगल-जंगल घूमती य़े नन्हीं लड़कियां, लौट रही हैं घर लादे सर पर लकड़ियां
आज जलेगा चूल्हा और बनेगा भात, खायेंगी भरपेट आज बहुत दिनों के बाद
जायेंगी स्कूल फिर चलता जो नीम तले, दिलों में इनके भी ज्ञान का अरमान पले
मास्टर इन्हें मार-पीट भगाता है, नंगे-भूखों को कहीं कोई पढ़ाता है?
पढ़-लिख लेगी ग़र ये आदिवासी लड़की, पड़ जायेगी महलों में नौकरानी का कड़की
है सबको शिक्षा के अधिकार का कानून, ये मास्टर है मगर यहां अफलातून
इन लड़कियों में भी है लेकिन ग़जब का जुनूनतोड़ देती हैं ये सारे अफलातूनी कानून
ये पढ़ने की अपनी जिद पर अड़ी रहीं, स्कूल के दरवाजे पर डटकर खड़ी रहीं
देख इन्हें आ गयीं और भी लड़कियां अनेक, घेरकर स्कूल लिया मास्टर को छेंक
छीन लिया बेंत और दूर दिया फेंक, देख यह हुज़ूम दिया मास्टर ने घुटने टेक
बदल दिया इस बात ने उसकी समग्र सोच. करने लगा वह अपने किये पर अफ्शोस
पढ़ेंगी ये न करने को महज पास इम्तिहान, खोजेंगी ज्ञान के नित नये-नये बिहान 
पढ़-लिख कर ये लड़कियां रखेंगी अपनी बात, पढ़ेंगी-लड़ेंगी-बढ़ेंगी और बदलेंगी हालात
[ईमि/29.01.2014]
359
29.01.2014 को आसाम में सीपीआई(मालेःलिबरेशन) के 10 कार्यकर्ताओं की हत्या परः

ऐ लाल फरारे तेरी कसम, ये शहादतें नहां जायेंगी बेकार
करते रहेंगे हम, हर जोर-ज़ुल्म का प्रतिकार लगातार
जागेगा जब मेहनतकश,  सहम जायेंगे सारे अत्याचार
इंकिलाब के नारों से मच जायेगा ज़ुल्म के खेमों में हाहाकार
नहीं सहेगा मजदूर-किसान जोर-ज़ुल्म की और मार
निकलेगा ही करने अब समाजवाद का सपना साकार
याद रखेगा इतिहास तुम्हारी शहादतें कामरेड
लाल सलाम तुम्हारी शहादत को, लाल लाल सलाम
[ईमि/30.01.2014]
360
करना ही है शहीदों को तो लाल सलाम
कसना पड़ेगा लेकिन,
 नेतृत्व के अधिनायकत्व पर लगाम
है जो जनतांत्रिक-केंद्रीयता के सिद्धांत का 
एक बेहूदा मजाक.
[ईमि/30.01.2014]





कम्युनिस्ट 1

1980 के दशक के अंतिम  वर्ष भारत की संसदीय राजनीति में उथल-पुथल तो नहीं कहूंगा, लेकिन उहा-पोह के साल थे. इन्ही दिनों कम्युनिस्ट(माले) आंदोलन के लिबरेसन धड़े के शीर्ष नेतृत्व की संसदीय महत्वाकांक्षाओं के चलते जन-संघनों में बिना किसी विचार-विमर्श के ग्लास्तनोस्त हो गया और हथियारबंद दस्तों को लाल सलाम कह दिया. अब तो ढाई दशक से अधिक समय हो गया और बंदूकों में जंग लग गया होगा. 

करना ही है शहीदों को तो लाल सलाम

करना ही है शहीदों को तो लाल सलाम
कसना पड़ेगा लेकिन,
 नेतृत्व के अधिनायकत्व पर लगाम
है जो जनतांत्रिक-केंद्रीयता के सिद्धांत का 
एक बेहूदा मजाक.
[ईमि/30.01.2014]

आसाम में सीपीआई(मालेःलिबरेशन) के 10 कार्यकर्ताओं की हत्या पर

29.01.2014 को आसाम में सीपीआई(मालेःलिबरेशन) के 10 कार्यकर्ताओं की हत्या परः

ऐ लाल फरारे तेरी कसम, ये शहादतें नहां जायेंगी बेकार
करते रहेंगे हम, हर जोर-ज़ुल्म का प्रतिकार लगातार
जागेगा जब मेहनतकश,  सहम जायेंगे सारे अत्याचार
इंकिलाब के नारों से मच जायेगा ज़ुल्म के खेमों में हाहाकार
नहीं सहेगा मजदूर-किसान जोर-ज़ुल्म की और मार
निकलेगा ही करने अब समाजवाद का सपना साकार
याद रखेगा इतिहास तुम्हारी शहादतें कामरेड
लाल सलाम तुम्हारी शहादत को, लाल लाल सलाम
[ईमि/30.01.2014]

Tuesday, January 28, 2014

य़े नन्हीं लड़कियां

जंगल-जंगल घूमती य़े नन्हीं लड़कियां
लौट रही हैं घर लादे सर पर लकड़ियां
आज जलेगा चूल्हा और बनेगा भात 
खायेंगी भरपेट आज बहुत दिनों के बाद
जायेंगी स्कूल फिर चलता जो नीम तले 
दिलों में इनके भी ज्ञान का अरमान पले 
मास्टर इन्हें मार-पीट भगाता है
नंगे-भूखों को कहीं कोई पढ़ाता है?
पढ़-लिख लेगी ग़र ये आदिवासी लड़की
पड़ जायेगी महलों में नौकरानी का कड़की
है सबको शिक्षा के अधिकार का कानून
ये मास्टर है मगर यहां अफलातून 
इन लड़कियों में भी है लेकिन ग़जब का जुनून 
तोड़ देती हैं सारे अफलातूनी कानून
ये पढ़ने की अपनी जिद पर अड़ी रहीं
स्कूल के दरवाजे पर डटकर खड़ी रहीं
देख इन्हें आ गयीं और भी लड़कियां अनेक
घेरकर स्कूल लिया मास्टर को छेंक 
छीन लिया बेंत और दूर दिया फेंक
देख ये अज़म-ए-ज़ुनूं दिया मास्टर ने घुटने टेक
बदल दिया इस बात ने मास्टर की सोच
करने लगा वह अपने किये पर अफ्शोस
पढ़-लिख कर ये लड़कियां रखेंगी अपनी बात
पढ़ेंगी-लड़ेंगी-बढ़ेंगी और बदलेंगी हालात
[ईमि/29.01.2014]

Saturday, January 25, 2014

जनगण

तुमने कहा तुम हिंदुस्तान हो
विश्व बैंक की शान हो 
चढ़कर शाही बग्घीपर 
आम आदमी की हड़्डी पर
करते हो तोप-टैंकों का प्रदर्शन
जन पर तंत्र का  प्रहसन
जाग रहा है अब जनगण
छेड़ेगा अब भीषण रण
करेगा जनशक्ति का प्रदर्शन
तोप-टैंकों के तंत्र का मर्दन
डरेगा न अब बम-गोलों के शोर से
दबा देगा उन्हें इंकिलाबी नारों के जोर से
 तोड़ेगा शाही बग्घी की शान 
लायेगा धरती पर एक नया बिहान
होंगे खत्म भेदभाव के सभी निशान
बनेगा तब जनगण असली हिंदुस्तान
[ईमि/26.01.2014]

अज़्म-ए-जुनून


तोड़ता रहूंगा ऐसे सारे कानून 
रोकते हैं जो अज़्म-ए-जुनून
[ईमि/26.01.2014]

न लिखने से तोकुछ नहीं होगा

न लिखने से तोकुछ नहीं होगा
लिखने से है बहुत कुछ हो सकता 
कलम औजार तो है ही इंकिलाब के हरकारे का 
हथियार भी है जंग-ए-आज़ादी के मतवाले का
कलम की धार से डरता है हर तानाशाह 
बौखला जाता है नफरत का हर बादशाह
लिखना ही है कविता करना है ग़र इंकिलाब
लगाने हैं जो नारे मजदूर-किसान ज़िंददाबाद
मानता नहीं कलम नियम छंदों और पदों का 
लिखता है संचित पीड़ा महकूमों-मज़लूमों का 
नहीं है मकसद इसका करना महज हंगामा 
लिखना है इसको तो मानव-मुक्ति का नगमा
लिखना है खाकनशीनों के हक़ के गीत 
मिटाने को शोषण-दमन के सारे रीत 
लिखूंगा ही लगातार कविता 
क्योंकि लिखना ही है
उसी तरह 
जैसे शोषितों के लिए लड़ता है क्रांतिकारी
क्योंकि उसे लड़ना ही है. 
(ईमिः 25.01.2014)

मन न जाने क्यों कुछ उदास है

आज मन न जाने क्यों कुछ उदास है
कविता कुछ दिन से बहुत नाराज हे
सुनाई दे रहा है चारों तरफ से शोर
ईशमिश्र हो गया है काफी कामचोर
लिखूंगा लेकिन फिर जरूर कविता
क्योंकि न लिखकर भी क्या कर लूंगा हा हा
[ईमि/25.01.2014]

Friday, January 24, 2014

DU 7 Left

I am an authentic,proud leftist. Those who abuse and make judgmental statements about leftism and those who misuse the concept are ignorant people do not know the origin and the history of the term. the origin of the term is a historical coincidence/accident. During the French revolution, by sheer coincidence, the pro-monarchy, conservative, status-quoits were sitting in the right flank of the national assembly and the pro-change, progressive anti-monarchy members were sitting in the left flank of the national assembly. Ever since the term left is used for pro-change, progressive forces and right for the conservative, status-quoits. If an agent of power that be in an unjust system claims to be leftist, it proves the theoretical victory of leftism in the same way as if the agents of capital like Mulayam claim to be socialist is theoretical victory of socialism  or if a believer tries to prove some superstition to be scientific, is theoretical victory of science..

International Proletariat 47

Ron Schwarzott These laws are fraud against humanity. Who is illegal? Those who came here looking for the means of survival or those whose ancestors came here to plunder and massacre a couple of generations ago? Bran H. Campbell The labor is not only the source of value but its measure too. American Economy was buoyed on the foundations of slave labor since mid 18th century preceded by indentured labor. In both the cases, all the value created by labor was appropriated by the capitalist as surplus value except for the food and shelter necessary for reproducing the labor thereby themselves.

Capitalism is bastard system it never says what it does, it never does what it says. Its social contract, as Rousseau could decipher as early as 18th century, is contract of slavery. 

Thursday, January 23, 2014

मुज़फ्फरनगर 3

Gujarat and Muzaffarnagar 
There is difference between Gujrat 2002 and Muzaffarnagar 2014. UP could not be Gujarat  as aimed by Sanghi lumpens Amit Shah on behest of Modi and the lumpen Gorakhpur BJP MP, Adityanath. Right since 2002, the Sangh Giroh has been giving slogans like, "Faizabad  Shuruat karega/UP ab Gujrat Banega but they could not succeed beyond some murders and the loss of some property. Salutes to the good senses that prevailed in the citizens and the fascist designs of communal corporate agents were foiled. In Muzaffaranagar, they adopted the same methods of arson, plunder, murder, rape as in Gujarat, leading the similar results of rendering poor Muslims refugees in their own land and subsequent ghettoization. The difference is that the communal polarization of the society could not be as pervasive. It has been confined to 10-12 Jat dominated villages of  RSS influence. In many other Jat dominated neighboring villages like Kheda-Gani, apprehending trouble from outsiders, reached the poor Muslims of their villages to some nearby Muslim dominated village and took them back when the dust settled down.  In Gujarat the marauders  were the lumpen proletariat led by landed rich Patels. In Muzaffarnagar the invaders were the landed, rich Jats led by themselves.The involvement of other upper classes/castes (Tyagi/Brahmin) and lower castes/classes was almost nil.  Another difference is that in Gujarat it was state sponsored whereas in Muzaffarnagar, as we have shown in our report, the state is just in tacit alliance with the communal fascists. Yet another difference is that in Gujarat, the target was Muslim community as a whole, here it is only landless lower castes/classes - the laborers, artisans and craft persons.  No upper caste/class Muslim was targeted. It is a class war in the disguise of communalism. The sigh of relief is that there were no retaliation in neighboring Muslim dominated villages, on the contrary, in the crisis, they came closer with enhanced sense of composite community, reinforcing the general commitment to the age old composite culture. The twin villages Muhammadpur Raisingh and Hussainpur are the glaring examples of this contrast. Let us unite, fight and win. The fascist designs must be foiled, otherwise the future generations will never forgive us.

A Brief Encounter with Bajrangi Fascism

A Brief Encounter with Bajrangi Fascism

Yesterday, we had a brief encounter with Bajrangi fascism. Students of the Dept of Sociology, Delhi Scholl of Economics, Delhi University and a student organization DSU had organized a meeting on Muzaffarnagar “riot” that is basically fascist attack on and ghettoization of poor Muslims, mostly landless in tacit connivance with the state government led by Samajvadi Party of Mulayam household for electoral gains, which rendered thousands of the families, refugees in their own land. I was part of a fact finding team that visited the affected areas and the camps and interacted with maximum possible sections – the perpetrators as well as the victims. I, along with Anil Chamdia, a known Hindi journalist was invited to speak. Some ABVP members had allegedly threatened to disrupt the meeting. There were 7-8 people inside the room and started making noises and misbehaving with the audience including female students and faculty members even before the meeting started. As soon as I started with our finding of preparations through Khap Panchayats attended by RSS/BJP leaders including one at Kutba village, which witnessed one of the worst attacks, organized by Sanjeev Baliyan and addressed by BJP Rajnath Singh, the Bajrangi lumpens started disrupting that I cant take the name of Rajnath Singh, as if they would decide what to speak? This is fascist tactic of attacking right to freedom of association and expression. They were eventually ousted from the hall by the audience but the enforcement arrived and another gang of 30-40 hoodlums tried to gate crash in Police presence and attacked and tore the jacket of an NSI activist. Anyway the meeting went on well amidst the clichéd slogan shouting by the Bajrangi lumpens outside the building. When the meeting was over they continued slogan shouting andf chased few Kashmiri girls leaving the place after attending the meeting unless were chased away by the other students. RSS training systematically demotes the application of mind hence these ideological heirs of Hitler can not coin new slogans and have been repeating same since 1950s.      

Maths

You people met bad maths teacher (most of them are like that), who do not know  to teach maths, which is that branch of knowledge that trains our mind for clear thinking and reasoning. It is about analytically application of mind to dialectically unite precision and comprehension. But unfortunately most of the parents and teachers instead of promoting the application of mind systematically and structurally demote it and implicitly blunt the inquisitive and innovative faculties of children. I was lucky to have some really good maths teachers -- PN Singh and Ranjit Singh (High School and Intermediate respectively at TDS Inter College) and Prof T. Pati and of course, most memorable and adorable Prof BL Sharma at AU . If you have done mathematics as a science with its underlying philosophical principles, you can venture into any other discipline but not vice-versa. I joined MA in Political Science in JNU with quite ease after doing Maths from AU. I was teaching Maths at DPS while doing my research in Political Science. at JNU. If you meet anyone from DPS RKPuram (1981-85 batches) he/she will tell you that maths is a very interesting subject.  

Tuesday, January 21, 2014

हवाओं के हाथ पैगाम

जलाकर सांझ की चौखट पर दिये
हवाओं के हाथ भेजा होगा पैगाम तुमने
हवाओं के रुख में कुछ नमी थी
बुलावे में खलूस की कुछ कमी थी
निकलीं हवाएं जब पैगाम देने
दिये को बुझा दिया उनकी नमी ने
मिला हवाओं से जैसे ही तेरा पैगाम
आया मैं दौड़ते छोड़ और सब काम
गुम है सांझ की चौखट रात के अंधेरे में
जलाओ एक दिया फिर से अपने बसेरे में
या बीत जाने दो ये धुप् अंधेरी रात
भोर की किरणों में करते हैं मुलाकात
[ईमि/22.01.2014]
(कवि होता कितना बकलेल, करता रहता शब्दों का खेल)

Monday, January 20, 2014

रोशनी जनचेतना की

ताप से तमाम चिरागों के टूट तो गया ख़ाब
जगने पर महसूसा आग की दरिया का ताप 
रोशनी के लिए जलाए थे तुमने जो चिराग 
लग गई उससे परंपरा के पुराने घरों में आग
बचा है जो इनके खंडहरों का ठिकाना 
आओ बनायें उस पर एक नया आशियाना 
हो जिसमें रोशनी भरमार जनचेतना की
रहे न कोई मिसाल निज चिराग की वेदना की
(ईमिः21.01.2014)

आप 3

 हेरंब भाई, "आप" के इस कृत्य (आधी रात को एक अफ्रीकी महिला के घर धावा) की आलोचना ईसा को सलीब पर लटकाने का मामला नहीं है बल्कि आत्मघात से बचने के लिए आगाह करने का है. "आप" के कानून मंत्री का, एक अश्वेत (महज संयोग नहीं माना जा सकता) महिला के घर एक उंमादी भीड़ का साथ धावा बोलने और सार्वजनिक रूप से अफ्रीकी महिलाओं को मूत्र का नमूना देने को मजबूर करने के कृत्य नस्लीय किस्म की फासीवादी कोटि में आते है जो सर्वथा निंदनीय हैं. यही काम जब बजरंगी लंपट करते हैं तो हम उसका विरोध करते है. जनतंत्र और भीड़तंत्र में तथा जनपक्षीय लोकप्रियतावाद और सस्ती(अवसरवादी) लोकप्रियतावाद में  में फर्क करने की आवश्यकता है. A teacher must teach by example and a leader must  lead by example. दर-असल रंगभेदी  नस्लवादी सोच हमारी उपनिवेशवाद और वर्णाश्रम ककी मिली-जुली विरासत है जिसे सायास तोड़ने की आवश्यकता है. नशाखोरी के खिलाफ अभियान का यह तरीका गलत है. उसके लिए जनतांत्रिक जनचेतना अभियान की आवश्यकता है. यदि सरकारी दुकानों पर बिकने वाली शराबखोरी को भी नशाखोरी में शामिल कर लिया जाय तो मध्यवर्ग के लगभग 80 फीसदी आबादी को इस प्रताड़ना के अनुभव से गुजरना पड़ेगा. डर है कि नये सामाजिक न्याय के नये झंडाबरदार, सामाजिक न्याय के पुराने झंडाबरदारों -- लालू-मुलायम-माया-.....--- की ही तरह हाथ में आये सुअवसर को सत्ता के दंभ, सस्ती लोकप्रियता और अंतर्दृष्टि के अभाव में ङाथ में आये सुअवसर को गंवा न दें. 

Saturday, January 18, 2014

क्षणिकाएं 13 (341-350)

341
लगता है वर्षों बीत गया हुए दुआ-सलाम
किसी बड़े काम को शायद दे रहे हो अंजाम
[ईमि/11.01.2014]
342
बलिदान नहीं है मक्सद सैलाब-ए-इंकिलाब का
पर होना चरितार्थ एक सुंदर दुनिया के ख़ाब का
निकलो मगर बांध सर पर कफन
देनी हो ग़र कुर्बानी
आए न मक्सद-ए-इंकिलाब में बिचलन
[ईमि12.01.2014]
343
कविता का पूर्व-कथ्य
लिखना है एक कविता इस मनुहारी तस्वीर पर
बनना पड़ेगा लेकिन इसके लिए मूर्तिकार
और शब्दों से पड़ेगा गढ़ना नये आकार-प्रकार
नयनों में इसके भरने हैं अभिव्यक्ति अंतरदृष्टि की
दे जो आभास एक नई दुनिया की दूरदृष्टि की
मुस्कान में विजयी आत्मविश्वास की खुशी
एवं चेहरे पर नारी प्रज्ञा और दावेदारी का संकल्प
तनना है इस मुट्ठी को लहराते हुए हाथ
चल रहा हो साथ एक उमड़ता जन सैलाब
लिखना तो है ही इस तस्वीर पर एक सुंदर कविता
लिखना है पहले लेकिन एक लंबा पूर्वकथ्य
उजागर हों जिससे इसके विप्लवी अंतःतथ्य
[ईमि/12.01.2014]
344
अंततः आम आदमी
बनेगा ही खुद का खास अंततः आम आदमी
रचेगा ही नया इतिहास अंततः आम आदमी
मुक्त हुआ जब गुलामी के दौर से आम आदमी
फंस गया सामंती खोह में आम आदमी
सामंती शिकंजों को तोड़ने वाला था आम आदमी
हुआ इंकिलाबी आसियाने बेदखल आम आदमी
आया पूंजी का निज़ाम मजदूर बना आम आदमी
लायेगा अगला इंकिललाब जब आम आदमी
फंसेगा न किसी जाल में तब आम आदमी
करेगा ही मानवता को मुक्त अंततः आम आदमी
[ईमि/14.01.2014]
345
अकेला एकांत 
जंगल तो हमें वैसे भी जाना है, वह हमें चुने , इससे अच्छा, उसका हमसे चुना जाना है
खोज लेते हैं प्रतिकूल में, अभिशाप के भेष में बरदान
 चुनते हैं राह संघर्षों की  देते दुश्मन को अभयदान
दें ग़र वो हर इंसान को बस इंसानी सम्मान
आते हैं राह-ए-जंग में, कई उतार-चढ़ाव, ये तो हैं रास्ते के छोटे-मोटे पड़ाव
मिलती है संघर्षों से गजब की ताकत, खत्म कर देती है बिघ्न-बाधा की विसात
कर देती है मुश्किलों को आसान, और प्रतिकूल को अनुकूल के समान
हम होते नहीं अकेले, चुनते हैं एकांत, मनते-रचते हैं भावी संघर्षों का वृत्तांत 
ऐसा नहीं है, नहीं है संघषर्षों का आदि-अंत
चलेगा लेकिन तब तक, होता नहीं शोषण-दमन का अंत जब तक 
[ईमि/16.01.2014]
346
हमारी ज़ुबां मुला कि हिंदुस्तानी है
जो हिंदी-ओ-उर्दू की साझी कहानी है
करता हूं इस्तेमाल दोनों अलफ़ाज़ एक साथ
रखता ध्यान में महज भाषा के सौंदर्य की बात
शब्दों की कड़की से दुखते हैं शायराना ज़ज़्बात
आती है तब उस मरहूम शायर दोस्त की बहुत याद
भाषा की समृद्धि के बावजूद होता शब्दों का अभाव
खलता है तब ख़ुद के भाषाविद न होने का स्वभाव
[ईमि/17.01.2014]
347
है ये गुजरे जमाने की बात, हुई थी जब वो पहली मुलाकात
अरावली के दिलकश नजारों में, ज़ज्बातों के फस्ल-ए-बहारों में
करने लगी थी वो अकीदत और इबादत, रश्मों से बगावत की थी न तब तक आदत
ज़ुनून-ए-उल्स को उसने जुनून-ए-इश्क समझा, समझाने पर यह बात मुझे ही दुश्मन समझा
किया अर्ज़ जब करने को मर्दवाद से बगावत, संस्कारवश कर बैठी वो उल्टे मुझसे ही अदावत
संस्कारों का असर होता बेइम्तहां, टूटने पर मगर दिखता एक नया जहां
जुनून-ए-इश्क में मानने लगी वो मेरी बात, दिमाग से जोड़ने लगी दिल के ज़ज़्बात
मिला दिया ग़म-ए-जहां में गम-ए-दिल हमने, हुए शामिल जंग-ए-आज़ादी के कारवानेजुनून में
[ईमि/17.01.2014]
348
जिसका भी अस्तित्व है,निशचित है अंत उसका
होगा अंत गुलामी का, सोचा न था अरस्तू ने,
करते हुए गुणगान उसका
लिख रहे थे धर्मशास्त्र जब मनु महराज,
धूल में मिल जायेगा वर्णश्रमी राज आज
नहीं रहा होगा उनको इल्म इसका 
रौंदकर यूनानी नगर राज्य और दर्शन-ज्ञान की परंपराएं
कभी नहीं सोचा था सिकंदर ने करते हुए असीम रक्तपात
खाक़ में मिल जाएगा इतनी जल्दी खानदान उसका
कहां हैं उत्तराधिकारी अकबर और नेपोलियन के  
और हिटलर-हलाकू- चंगेज के वंशज
खत्म हो गये जब इतिहास के बड़े बड़े सम्राट
इतिहास के गर्त में समा जायेंगे सारे जनतांत्रिक युवराज 
खत्म हो गयीं जब तुगलक-लोदी-मुगल सल्तनतें
अंत निश्चित है नेहरू-गांधी जनतांत्रिक वंशवाद का
[ईमि/17.01.2014]
349
इस तस्वीर पर पहले भी लिख चुका हूं , एक उड़ती हुई कविता
जब भी देखता हूं यह तस्वीर, होता मन कुछ और कहने को अधीर
मिल जुल्फों से काली पोशाक , देती सावन की घटाटोप सविता का आभास
चेहरे पर संचित पीड़ा के भाव, दर्शाते हैं सदियों पुराने घाव
बेताब हैं उंगलियां गिटार के तार पर , करने को आघात सभ्यता के भार पर
रचने को एक नया संगीत , बन जाये जो जंग-ए-आज़ादी का गीत
[ईमिः18.01.2014]
350
खत्म हुआ अब मोदी का खेल, हत्यारे की जगह है जेल
बंद करो बजरंगी उन्माद. देगी जनता सही जवाब
उधड़ गया विकास का जाल, मोदी है टाटा का लाल
अंबानी का ज़रखरीद दलाल, मज़लूमों का यमराजी काल
हुआ बुरा बजरंगियों का हाल, अवतरित हुआ जब केजरीवाल
नहीं चाहिए ऐसा राज, मुखिया जिसमें नरसंहारी सरताज
आओ मिल-जुल दें आवाज, हिंद में आए जनवादी राज
(ईमिः18.01.2014)




गुजरे जमाने की बात

है ये गुजरे जमाने की बात
हुई थी जब वो पहली मुलाकात
अरावली के दिलकश नजारों में
ज़ज्बातों के फस्ल-ए-बहारों में
करने लगी थी वो अकीदत और इबादत
रश्मों से बगावत की थी न तब तक आदत
ज़ुनून-ए-उल्स को उसने जुनून-ए-इश्क समझा
समझाने पर यह बात मुझे ही दुश्मन समझा
किया अर्ज़ जब करने को मर्दवाद से बगावत
संस्कारवश कर बैठी वो उल्टे मुझसे ही अदावत
संस्कारों का असर होता बेइम्तहां
टूटने पर मगर दिखता एक नया जहां
जुनून-ए-इश्क में मानने लगी वो मेरी बात
दिमाग से जोड़ने लगी दिल के ज़ज़्बात
मिला दिया ग़म-ए-जहां में गम-ए-दिल हमने
हुए शामिल जंग-ए-आज़ादी के कारवानेजुनून में
(क्या समर, सुबह हिंदी-उर्दू के चक्कर में खर्च करा दिया, शुक्रिया)
[ईमि/17.01.2014]

हिंदुस्तानी

हमारी ज़ुबां मुला कि हिंदुस्तानी है
जो हिंदी-ओ-उर्दू की साझी कहानी है
करता हूं इस्तेमाल दोनों अलफ़ाज़ एक साथ
रखता ध्यान में महज भाषा के सौंदर्य की बात
शब्दों की कड़की से दुखते हैं शायराना ज़ज़्बात
आती है तब उस मरहूम शायर दोस्त की बहुत याद
भाषा की समृद्धि के बावजूद होता शब्दों का अभाव
खलता है तब ख़ुद के भाषाविद न होने का स्वभाव
[ईमि/18.01.2014

मोदी का खेल

खत्म हुआ अब मोदी का खेल
हत्यारे की जगह है जेल
बंद करो बजरंगी उन्माद
देगी जनता सही जवाब
उधड़ गया विकास का जाल
मोदी है टाटा का लाल
अंबानी का ज़रखरीद दलाल
मज़लूमों का यमराजी काल
हुआ बुरा बजरंगियों का हाल
अवतरित हुआ जब केजरीवाल
नहीं चाहिए ऐसा राज
मुखिया जिसमें नरसंहारी सरताज
आओ मिल-जुल दें आवाज
हिंद में आए जनवादी राज
(ईमिः18.01.2014)

Friday, January 17, 2014

एक उड़ती हुई कविता

इस तस्वीर पर पहले भी लिख चुका हूं 
एक उड़ती हुई कविता
जब भी देखता हूं यह तस्वीर
होता मन कुछ और कहने को अधीर
मिल जुल्फों से काली पोशाक 
देती सावन की घटाटोप सविता का आभास
चेहरे पर संचित पीड़ा के भाव 
दर्शाते हैं सदियों पुराने घाव
बेताब हैं उंगलियां गिटार के तार पर 
करने को आघात सभ्यता के भार पर
रचने को एक नया संगीत 
बन जाये जो जंग-ए-आज़ादी का गीत
[ईमिः18.01.2014]

जनतांत्रिक वंशवाद

जिसका भी अस्तित्व है,निशचित है अंत उसका
होगा अंत गुलामी का, सोचा न था अरस्तू ने
करते हुए गुणगान उसका
लिख रहे थे धर्मशास्त्र जब मनु महराज,
धूल में मिल जायेगा वर्णश्रमी राज आज
नहीं रहा होगा उनको इल्म इसका 
रौंदकर यूनानी नगर राज्य और दर्शन-ज्ञान की परंपराएं
कभी नहीं सोचा था सिकंदर ने करते हुए असीम रक्तपात
खाक़ में मिल जाएगा इतनी जल्दी खानदान उसका
कहां हैं उत्तराधिकारी अकबर और नेपोलियन के  
और हिटलर-हलाकू- चंगेज के वंशज
खत्म हो गये जब इतिहास के बड़े बड़े सम्राट
इतिहास के गर्त में समा जायेंगे सारे जनतांत्रिक युवराज 
खत्म हो गयीं जब तुगलक-लोदी-मुगल सल्तनतें
अंत निश्चित है नेहरू-गांधी जनतांत्रिक वंशवाद का
[ईमि/17.01.2014]