बिल्कुल। स्त्रियां भी दलितों की ही तरह वंचित वर्ग में आती हैं। मैं गैर दलित स्त्री पर अत्याचार का भी उतना ही विरोधी हूं। दलित स्त्री होने में दुहरी वंचना है। 2011 में बलात्कार तथा बलात्कार-हत्या की अखबारों की कई खबरों पर पद्य में कमेंट लिखा गए। जिनका संकलन ब्लॉग में 'मैं एक लड़की हूं, अक्सर दलित' शीर्षक से सेव किया हूं। एक है -- मैं लड़की हूं, दलित नहीं, इकहरी वंचना भी होती कुछ कम नहीं'.....। सोचा नहीं था कि ग्रुप के इतने सवर्णों में इस हद तक जातिवाद है कि हाथरस मामले में पीड़ित की दलित और आरोपियों की सवर्ण अस्मिता के जिक्र से भाषा के निम्नतम स्तर पर इतने निजी आक्षेप झेलने पड़ेंगे। यह बौखलाहट यही दिखाती है कि ये तथाकथित पढ़े-लिखे लोग अपने सजातीय अपराधियों के साथ खड़े हैं। वैसे भी सरकार ने जनता के पैसे से मामला लगभग रफा-दफा कर ही दिया है।
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