Wednesday, September 30, 2020

लल्ला पुराण 350 ( हाथ रस-बलरामपुर)

 Uday Bhan Dwivedi मैं क्यों किसी पूर्वाग्रह से ग्रस्त होऊंगा, पूर्वाग्रह के पीछे स्वार्थ होता है, दलित की पक्षधरता में मेरा क्या स्वार्थ हो सकता है। जी जब कोई लिखे की बजाय अलिखे का कारण पूछता है तो निश्चित ही ऐसे विषयांतर में उसकी नीयत संदेहास्पद होती है। अरे भाई लिखे पर नहीं बोल सकते तो चुप रहो, इस पर क्यों नहीं लिखते, बहुत घटिया किस्म का निर्देशात्मक सवाल है और सही कहता हूं उस पर वह लिखे। मैंने कब कहा आप बलात्कार की निंदा नहीं कर रहे? उल्टे दलित पीड़िता को दलित लिखने से तमाम सवर्ण, सांप्रदायिक, जातिवादी मेरे ऊपर जाति का कार्ड खेलने का आरोप लगाने लगे। भाई मैं यदि स्वार्थवश जाति का कार्ड खेलूंगा तो मैं तो जन्मना ब्राह्मण हूं और अच्छी तनखॉह वालों से अधिक पेंसन मिलेगी तो सवर्ण बाहुल्य इस ग्रुप में अलेकप्रियता के अलावा दलित कार्ड खेलने में क्या स्वार्थ हो सकता है? बलराम पुर में आरोपी मुसलमान है तो उस मामले में लड़की को दलित लिखने पर किसी ने नहीं टोंका।


मैं तो अपने शब्द किसी के मुंह में नहीं घुसेड़ता। ऐसा करने वाला शिक्षक नौकरी भले करता हो शिक्षक नहीं होता। मैं भी एजेंडे के साथ ही बात करता हूं जातिवाद, सांप्रदायिकता, मर्दवाद के विरुद्ध भेदभाव से मुक्त मानवता का एजेंडा, बिना किसी विद्वेष के। कई बार निराधार निजी आक्षेपों के जवाब उन्हीं की भाषा में देकर पश्चाताप करता हूं, इसलिए ऐसे लोगों को 2-3 चेतावनी के बाद ब्लॉक कर देता हूं।

मैं तो अपनी बातें मनवाने की बजाय असहज सवाल करने वालों की ज्यादा इज्जत करता हूं, निजी आक्षेप सवाल या असहमति नहीं होते। यह अच्छी बात है कि रचनात्मक कामों में मन लगा रहे हैं। सोसल मीडिया में समयनिवेश उपयुक्त रिटर्न नहीं देताष यदा-कदा कुछ लोगों का कोप भाजन बनाता है वह अलग। मुझे जो बात अनुचित लगती है, तुरंत बोल देता हूं, मन में नहीं रखता। मेरी कोई बात बुरी लगे तुरंत बताइे।

सादर।

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