Saturday, October 10, 2020

फुटनोट 249 (लेखन)

 मैं पत्र-पत्रिकाओं में पिछले 35 साल से लिख रहा हूं, लंबे समय तक कलम की मजदूरी आजीविका का पूर्णतः या अंशतः साधन रही है। फिर भी मुझे लिखना सबसे मुश्किल काम लगता है। इस मुल्क में एक बड़ी जमात ऐसे लोगों की है, खासकर फेसबुक पर, जो लिखे पर राय देने की बजाय अलिखे पर सवाल करते हैं। इस पर लिखते हैं तो इस पर क्यों नहीं? अरे भाई हर लेखक की अपनी प्राथमिकता, समय और सामग्रीकी सीमाएं होती हैं। विषय के चुनाव की उसकी आजादीका सम्मान करें तथा लिखे कीआलोचना। जो आपको जरूरी लगता है या जो विषय आपकी प्राथमिकता हो उस पर खुद लिखें और उस पर विमर्श के लिए दूसरों की राय आमंत्रित करें। न लिखना आता हो तो उस विषय पर औरों के लेख शेयर करके विमर्श आमंत्रित करें। बहुत कम लोग हैं जो लिख सकते हैं। उनमें भी बहुत कम हैं जो अच्छा लिख सकते हैं । उनमें से भी बहुत कम हैं जो जनपक्षीय परिप्रेक्ष्य से अच्छा लिख सकते हैं। जो जनपक्षीय परिप्रक्ष्य से अच्छा लिख सकते हैं और लिखने में कोताही करते हैं, वे अपने विरुद्ध ही नहीं सामाजिक अपराध करते हैं।


पुनश्च: आजकल सामाजिक अपराध के अपराधबोध से ग्रस्त हूं और उम्मीद करता हूं इसका (पाप का) घड़ा जल्दी ही भरकर फूटेगा।

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