Friday, October 2, 2020

बेतरतीब 80 (तलाशेमाश)

बेतरतीब 80 (तलाशेमाश)

 मैंने दिल्ली एवं अन्य जगहों के विश्वविद्यालयों एवं दिल्ली विवि के कॉलेजों में लगभग 14 साल इंटरविव दिए तथा तय किया था कि किसी की सिफारिश नहीं करूंगा, वैसे भी 17-18 साल में नास्तिक बन चुका था, जब गडवै नहीं था तो गॉड फदरवा कहां से होता? पहले तो दिल्ली और बाहर भी सभी इंटरविव देने चला जाता था। बाद में बाहर जहां किराया मिलता था और दिल्ली जहां मौका। आपसे सहमत हूं कि नौकरियों की मठाधीशी की कमीनगी में में कई वामपंथी, मध्यमार्गी-दक्षिणपंथियों से बहुत आगे थे/हैं। एक अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के क्रांतिकारी विद्वान को एक बार मैंने कहा कि वे 'रैकेटियर' न होते तो बड़े आदमी हो सकते थे। एक बार एक कार्यक्रम में मैंने उनसे कहा कि आपके सारे क्रांतिकारी चेले उन्हीं क्रांतिकारी (रैडिकल) कार्यक्रमों में जाते हैं जहां आप जाते हैं। कल से आप शाखा लगाना शुरू कर दें तो सब 'नमस्ते सदा वत्सले' करते वहां पहुंच जाएंगे। खिसियाहट मिटाने के अंदाज में अंग्रेजी में बोले कि सभी नहीं ऐसा करेंगे, मध्य प्रदेश में पढ़ा रहे एक लड़के का नाम लेकर बोले कि उसके जैसे ऐसा नहीं करेंगे। मूनिस रजा की जओएनयू में मैं बहुत सम्मान करता था। उनकी बेटी को गणित का ट्यूसन (बिना फीस) पढ़ाया था। मूनिस के साथ सुखद अनुभव की कई कहानियां हैं, उन पर फिर कभी लिखूंगा। उनका बेटा मजाज भी मेरा दोस्त था। दिवि जाता तो उनके घर कई बार चला जाता था। नौकरी की सिफारिश की बात कभी किया नहीं। दिवि में उन दिनों विभाग में इंटरविव के बाद कॉलेजों में एढॉक नियुक्ति के लिए 30 लोगों का पैनल बनता था। जब नियमित नियुक्ति का मौका आता तो एढॉक पढ़ा रहे लोगों को प्राथमिकता दी जाती, या यों कहें कि एढॉक को नियमित कर दिया जाता। 1982 में जब पता चला तो मैंने भी अप्लाई करके इंटरविव देना शुरू किया। 1989 या 90 तक जब तचक यह प्रथा रही, मेरा नाम हमेशा पैनल में पहले 10 में होता था। लेकिन क्या होता था क्या नहींकि मुझे इन सालों में कभी कोई एढॉक नौकरी नहीं मिली।

1985 या 86 में मुझे पता चला कि मेरा नाम करोड़ीमल कॉलेज में भेजा गया है। वहां पहुंचने पर पता चला कि इंस्टीट्यूट ऑफ इकॉनामिक ग्रोथ के किसी प्रोफेसर के रिश्तेदार तथा एक माने-जाने क्रांतिकारी प्रोफेसर (मनोरंजन मोहंती) के चेले की पैनल के बाहर से नियुक्ति हो गयी है। मोहंती ने अपने चेले की नियुक्ति से अनभिज्ञता जाहिर की। राजनीति शास्त्र के तत्कालीन अध्यक्ष एमपी सिंह से बात किया तो उन्होंने कहा वे कॉलेज के प्रिंसिपल को protest Letter लिखेंगे। अगले दिन मैं कॉलेज के प्रिंसिपल से मिलने गया। प्रिंसिपल एनएस प्रधान के कमरे में कई शिक्षक बैठे थे, एक (एमएस सनससनवाल) को मैं पहचानता था। प्रिंसिपल मिलने को राजी हो गए तथा बातचीत के बाद उस कॉलेज में भविष्य में भी नियुक्ति की गुंजाइश पर पूर्णविराम लग गया। बात शुरू करते ही प्रिंसिपल ने कहा, "I have agreed to talk to you because I feel you are unhappy person". मैंने कहा, "But by talking to me this way you are not going to change my unhappiness into happiness, as far as I am concerned I have come to meet you as I have been victimized by this institution and you happen to be its head." उसने आवाज तेज करते हुए कहा, "What victimized? this is my college, I can appoint anybody" मैंने विनम्रता से कहा, "But you should not make such public statements about a public institution as if it is your private fiefdom". वह चिल्लाकर बोला, "I can throw you out of the office". मुझे क्रोध आगया. मेरी आवाज वैसे ही बुलंद है, वहां बैठे सह आश्चर्य में पड़ गए, "Well you seem to be quite competent for that." और फिर यह वाक्य, "You can throw me out of the office because you think I am no one" 2-3 बार दोहराया। तब वह नम पड़ा और बोला, "मैंने जिसे appoint किया है मेरे चाचा का लड़का है क्या?" मैंने जवाब दिया, "How do I know, who all are your CHACHAS and BAAPS". उसके बाद उस कॉलेज में अस्थाई और स्थाई नौकरियों के लिए 2-3 इंटरविव औऱ दिए। 1988 में आरबी जैन नामक एक धंधेबाज किस्म का विभागाध्यक्ष था। एढॉक पैनल के सारे सदस्यों को कहीं-न-कहीं नौकरी लग चुकी थी। मेरा और एक राजेंद्र दयाल के नाम बचे थे। पता चला करोड़ीमल कॉलेज में वैकेंसी थी और विभागाध्यक्ष ने पैनल के बाहर से अपने किसी चेले का नाम भेज दिया। हम विभाग में मिलने गए तो वे थे नहीं. राजेंद्र दयाल भी मिलने गए थे। बोले कि लॉ फैकल्टी के सामने प्रोफेसरों की कॉलोनी में रहते हैं, वहीं चलें। वहां पहुंचने पर देखा कि जैन साहब अपनी कार साफ कर रहे थे। मैंने कहा, "सर आपसे कुछ बात करनी है"। बोले "Come to my office". "We are coming from there". I cannot be available at your convenience" . "I also cannot take so many chances to find out when are you in your office. हमें कोई लंबा प्रेमालाप नहीं करना है, यही पूछना है कि how can you appoint people from outside panel? What is the sanctity of making panel then?" उसने जवाब दिया, "This will go permanently against you." "Prof RB Jain do you think I care, things have been against ne since I remember, but what is important is, I also have been against them, बाप की जागीर समझ कर जो नौकरियां जेब में लेकर चलते हैं, वह नहीं चलेगा". तमतमाकर उसने कहा, "You will have to face the consequences". "Even you may have to face the consequences" कहकर वहां से चला गया, राजेंद्र जयाल पहले से ही मुझे खींच रहे थे। अगले दिन सुबह सुबह टाइप किया शिकायत पत्र लेकर मूनिस के पास गया, मूनिस साहब ने लॉन में बढिया चाय पिलाने के बाद शिकायत पत्र लेते हुए बोले कि हाल में ही उन्होंने आरबी जैन पर out of turn कुछ उपकार किया था और मैं उनकी शिकायत लेकर गया था। "आपको नौकरी चाहिए न, मिल जाएगी"। मैंने कहा, "सुनिए मूनिस साहब, यह तो आपके टेन्योर (कार्यकाल) का आखिरी साल है, नौकरी चाहिए होती तो पहले साल न आता, आप वीसी हैं, एक करप्ट हेड की शिकायत लेकर आया हूं, नहीं लेना है, तो जयराम जीकी" कह कर चला आया। बाद में लगा कि कह देना चाहिए था कि यहां अगला इंटरविव है। खैर बाकी बाद में। मुझसे लोग कहते थे कि तुम्हें देर से नौकरी मिली, मैं कहता था, सवाल उल्टा है, मिल कैसे गयी?

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