बहुत साल पहले ऐसे ही कहीं बातचीत चल रही थी तो एक वरिष्ठ मित्र ने कहा, 'दर असल ईश की समस्या यह है कि इसने, "सत्यम ब्रूयात्, प्रियम ब्रूयात, मा ब्रूयात् समत्मप्रियम", श्लोक की दूसरी पंक्ति पढ़ा ही नहीं।' तो अलोकप्रियता को नजरअंदाज कर अप्रिय सत्य बोलने का खतरा उठाता रहता हूं। मैं अपने स्टूडेंट्स से कहता था कि जब भी सही होने और लोकप्रिय होने में चुनाव हो तो सही होना चुनो, लोकप्रियता अस्थाई और परिवर्तनीय होती है और जब भी सही होने में या कठिनाई में चुनाव हो तो सही होना चुनो कठिनाई आसान हो जाएगी या फिर उससे फर्क नहीं पड़ेगा। [Whenever you are faced with the choice between being correct and popularity choose to be correct, popularity is very unstable and changeable and when ever there is choice between being correct and facing difficulty, choose to be correct difficulties ease out or don't matter."]
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