एक मित्र ने ईश्वर के सर्वशक्तिमान होने पर संशय जताते हुए लिखा कि वह इतना भारी पत्थर बना सकता है जो उससे खुद न उठे, उस पर यह कमेंट लिखा गया।
10 साल हो गया, एक स्टूडेंट घर आई थी, नींबू की चाय बनाते हुए किचेन में आधा नींबू ढूंढ़ना शुरू किया, नहीं मिला, बगीचे से दूसरा नीबू तोड़ने जाने के रास्ते में मैंने कहा कि आस्तिक होता तो भगवान से आधा नींबू खोजने में मदद मांगता, उसने भगवान को इतना छोटा काम देने पर मेरी आलोचना की थी।(दिल्ली में अपने बगीचे से नींबू तोड़ने के अद्भुत सुख की अनुभूति, भूतपूर्व हो गयी, हर वर्तमान कालांतर में भूत हो जाता है) वैसे उसके 35 साल पहले इलाहाबाद में अपनी खोई पेन खोजने में मदद मांग कर अंदाज चुका था। तभी लग गया था कि यदि ईश्वर है भी तो किस काम का? जब मेरी खोई कलम खोजने जितना छोटा काम नहीं कर सकता तो और क्या कर सकता है? खैर सुबह सुबह भगवान के अस्तित्व पर शक करने का पाप आपने करवा दिया, खैर वह तो जानता ही है कि इस पाप का दोषी मैं नहां आप हैं। वैसे यूरोपीय प्रबोधन काल के फ्रांसीसी दार्शनिक वोल्तेयर ने ईश्वर की क्षमता पर सवाल उठाकर सबको भौंचकक्का कर दिया था। समाज में मौजूद और जारी बुराइयों के संदर्भ में उन्होंने कहा था कि 3 बातें हो सकती हैं: 1. ईश्वर बुराइयां दूर करना तो चाहता है लेकिन कर नहीं सकता, फिर सर्वशक्तिमान कैसा? 2. कर तो सकता है लेकिन करना नहीं चाहता, तो यह तो दुष्टता है और 3. न करना चाहता है, न कर ही सकता है तो यह तो दुष्टता और सर्वशत्तिमान होने का निषेध दोनों है। ईश्वरवादियों के पास इसका जवाब नहीं था तो गणितज्ञ लाइब्निट्ज ने कहा कि इह-लोक की नाइंसाफी का हिसाब उह-लोक में होता है। वोल्तेयर ने जीवन का कफी समय जेल में बिताया था, उसके डेढ़ सौ साल पहले (1600 में) ईश्वर पर सवाल करने के लिए वैज्ञानिक ब्रूनो को चर्च के आदेश पर रोम में चौराहे पर तमाशबीनों के समक्ष जिंदा जला दिया गया था। मुनष्य बहुत खुराफाती है वह अपनी ऐतिहासिक जरूरतों के हिसाब से ईश्वर को बनाता, बदलता रहता है।इस उम्र में सुबह सुबह ईश्वर का भजन करना चाहिए और आपने ईश्वर की सर्वशक्तिमानता पर मन में संदेह पैदा करके जो पापकर्म किया है उसके लिए प्रार्थना करता हूं कि वह अपनी प्रकृति के प्रतिकूल आपको क्षमा कर दे।
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