Friday, October 23, 2020

नारी विमर्श 13 (मर्दवाद)

 इस तर्क से कि जन्म देने वाली भी स्त्री है, किसी को स्त्री विरोेधी नहीं होना चाहिए, समाज में बलात्कार एवं अन्य किस्म की यौन हिंसा का नामोनिशान नहीं होना चाहिए क्योंकि सभी की जन्मदात्री स्त्री ही होती है। मैं दुहराता रहता हूं कि मर्दवाद जीववैज्ञानिक प्रवृत्ति नहीं, नित्य-प्रति की जीवनचर्या और विमर्श में निर्मित-पोषित होने वाली विचारधारा है तथा विचारधारा उत्पीड़क को ही नहीं, पीड़ित को भी प्रभावित करती है। प्रायः दहेज उत्पीड़न जैसी परिघटनाओं में पति और ससुर ही नहीं, सास और ननद भी शामिल होती हैं। इस पर विस्तार से, कभी, बाद में लिखूंगा, अभी इतना ही कहूंगा कि सामाजिक विकास के हर चरण की भौतिक परिस्थितियों के अनुरूप सामाजिक चेतना का स्तर और स्वरूप होता है। मनुष्य के चैतन्य प्रयास से परिस्थितियां बदलती हैं और परिणाम स्वरूप सामाजिक चेतना भी और तदनुसार सांस्कृतिक परिवेश। आज से 38 वर्ष पहले मेरे गांव में सामाजिक चेतना तथा सांस्कृतिक परिवेश ऐसा था जिसमें कि किसी लड़की का घर से दूर जाकर पढ़ाई करने की बात अकल्पनीय थी। पैदल की दूरी पर बड़ी क्लास की पढ़ाई के स्कूल कॉलेज नहीं थे तथा अपनी आठवीं बहन की आगे की पढ़ाई के लिए मुझे पूरे खानदान से भीषण संघर्ष करना पड़ा था। आज हर मां-बाप आर्थिक मजबूरी के अलावा बेटी को उच्चतम संभव शिक्षा दिलाना चाहेगा। स्त्रियों की साज-सज्जा की वरीयता या भाषा की सांस्कृतिक आदतों की स्वतंत्रता के उनके अधिकार का सम्मान करना चाहिए। मैं अपनी बेटियों समेत सभी लड़कियों को छोटे बाल रखने की सलाह देता हूं, क्योंकि मुझे लगता है कि बाल सवांरने का समय उन्हें और कामों में लगाना चाहिए। मैं इसी तर्क से दाढ़ी रखता (नहीं बनाता) हूं। मेरी बात कोई नहीं मानती, तो मैं मेरी बात न मानने के उनके अधिकार का सम्मान करता हूं। जरूरत स्त्रियों को लेकर सोच को बदलने की है, उन्हें स्त्री की बजाय, पुरुषों के समान इंसान मानने की है। उनके प्रति सहानुभूतिक नहीं, समानुभूतिक दृष्टिकोण विकसित करने की है। दूसरे शब्दों में हमें पुरुष से इंसान बनने की जरूरत है। हमें किफायती कपड़ों में लड़कियां इस लिए असहज लगती हैं क्योंकि ऐसा देखने की हमारी आदत नहीं है। जरूरत हमें अपनी आंखों की आदत बदलने और पहनावे के उनके चुनाव के अधिकार का सम्मान करने की है। यदि किफायती कपड़े यौन हिंसा का कारण होते तो साड़ी और सलवार-सूट पहनने वाली स्त्रियां क्यों हिंसा का शिकार होतीं? गांवों की जिन स्त्रियों के साथ यौन हिंसा की खबरें मिलती हैं, वे तो शायद हॉट पैंट वाली नहीं, सलवार-साड़ी वाली ही होती होंगी। क्षमा कीजिएगा संक्षेप भी थोड़ा विस्तार ही हो गया।


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