Friday, October 9, 2020

निखालिस इंसान

 सूइयों के डिब्बे दरकिनार कर

उठा लिया मैंने छुरी
क्योंकि पता नहीं चल रहा था
कि किस सूई की चुभन ज्यादा होगी
उसकी जिस पर दलित लिखा था
या उसकी जिस पर लिखा था स्त्री
लेकिन एक बात तो पक्की थी
जो मुझे बार बार बताया गया था
जीते जी और मरने के बाद भी
कि मैं एक इंसान नहीं थी
जिस पर दया की जा सके
यह भी कि
नहीं थी मैं भारत माता की बेटी
वैसे भी वैसी नहीं होनी चाहिए
भारत मां की कोई बेटी
नहीं होना चाहिए वैसा उसके साथ
जैसी मै थी और जैसा हुआ मेरे साथ
रात के अंधेरे में, परिजनों से दूर
जला दिया गया मेरी नुची हुई लाश
राष्ट्रीय सुरक्षा के पहरेदारों द्वारा
राष्ट्रीय सुरक्षा की गोपनीयता की सुरक्षा में
मौत की संपूर्ण अवमानना के साथ
मुझे अब भी नहीं मालुम
कि किस सुई में ज्यादा चुभन है
उसमें जिसके लिफापे पर दलित लिखा है
या उसमें जिसके लिफाफे पर लिखा है स्त्री
माफ करना मुझे इंसानों
नाकाम रही मैं जीवन में
उन लिफाफों पर इंसान लिखने की कोशिस में
लेकिन नहीं मानी है मैंने हार मरने के बाद भी
जारी रखूंगी कोशिस
मिटाने की दलित और स्त्री के ठप्पे
और लिखने की इंसान उन लिफाफों पर
अपने हर बलात्कार और अपनी हर हत्या के बाद भी
और मिलेगी ही कामयाबी अंततः
जब हर स्त्री एक मुकम्मल इंसान होगी
निखालिस इंसान
(ईमिः 09.10.2010)

No comments:

Post a Comment