जन्म-पुनर्जन्म, आत्मा-परमात्मा की एक पोस्ट पर एक मित्र ने कमेंट किया --
"यह अराजक वाम वैचारिक विचार है।ये वामी इंसानियत के दुष्ट पहरुए है।"
मेरे पूछने पर कि वामी क्या होता है और शिष्ट पहरुए कौन हैं? उन्होंने क्षमा प्रार्थना के साथ कहा कि उनकी अभिव्यक्ति पर पाबंदी न लगाऊं क्यों कि वे मुझे वामी नहीं वामपंथी समझते हैं। उस पर --
दूसरे विश्वयुद्ध के बाद तमाम देशों के शासक वर्ग किसी समस्या पर वामपंथ का हव्वा खड़ा करते रहे हैं। 1950 के दशक में अमेरिका में इसी तरह का हव्वा खड़ा करके मैकार्थीवाद के तहत हजारों वैज्ञानिकों, कलाकारों, शिक्षकों और छात्रों को मार दिया गया या प्रताड़ित किया गया। अंत में अदालतों में मैकार्थी के दावे फरेब साबित हुए और नागरिक अधिकार आंदोलन के दौरान दयनीय मौत का शिकार हुआ। उसके नाम से अमेरिकी उतना ही घृणा करते हैं जितना जर्मन हिटलर के नाम से। फेसबुक पर तमाम लोग ऐसे हैं, लगता है, जिनका दिमाग जब काम नहीं करता तो उन्हे वामी वामी अभुआने का दौरा पड़ जाता है। दौरे के विषय के बारे में पूछने पर अंट-शंट बकने लगते हैं।
मैं कौन होता हूं, आपकी अभिव्यक्ति पर पाबंदी लगाने वाला? वैसे भी मैं तो सभी की अभिव्यक्ति के अधिकार का हिमायती हूं, पाबंदी का नहीं। लेकिन चूंकि हमारी अभिव्यक्ति हमारे व्यक्तित्व का परिचायक है, इसलिए अभिव्यक्ति सार्थक होनी चाहिए। मुझे आपकी 'अभिव्यक्ति' दोषपूर्ण लगी इसलिए इंगित किया। अभिव्यक्ति सार्थक तभी होती है जब उसके लिए चयनित शब्दों को समझते हों।
मैं क्या हूं? वह अलग बात है, लेकिन वह वामी होता क्या है जिसका कुछ लोगों को (लगता है आपको भी) रह रह कर दौरा पड़ता रहता है? और वे दुष्ट पहरुए हैं तो शिष्ट पहरुए भी होते होंगे? कौन दुष्ट हैं, कौन शिष्ट और क्यों?सामाजिक प्राणी होने के नाते मनुष्य केवल उन्ही बोतों पर प्रतिक्रिया नहीं करता जो विशुद्ध रूप से उससे ही संबंधित हों। वैसे भी मनुष्य हूं, तो जो भी मुद्दा मानवता के सरोकार का है, उससे मेरा भी सरोकार है। पढ़े-लिखे होने का तकाजा है कि सोच-समझ कर बोला जाए। विवेक ही मनुष्य को पशुकुल से अलग करता है. विवेक की अभिव्यक्ति का माध्यम है भाषा, इसीलिए कहा जाता है कि भाषा का आविष्कार मनुष्य प्रजाति के विकास के इतिहास में एक क्रांतिकारी आविष्कार था। अतः विमर्श में शब्दों का समुचित चुनाव मनुष्यता का तकाजा है। सादर।
नीचे कमेंट बॉक्स में अपने ब्लॉग से एक लिंक शेयर कर रहा हूं जो 2011 में शुरू ऐतिहासिक भौतिकवाद पर अधूरे काव्यखंड का एक पूरा अंश है, उसमें भाषा के आविष्कार के महत्व पर कुछ पंक्तियां हैं।
आप सोच रहे हैं, आपके छोटे से कमेंट के जवाब में इतना समय क्यों खर्च कर रहा हूं। तो मैं पेशे से ही नहीं तेवर(temperament) से भी एक शिक्षक हूं जिसका कार्यक्षेत्र कभी क्लासरूम तक नहीं सीमित रहा। मेरा कर्तव्य ज्यादा-से-ज्यादा लोगों में विरासती पूर्वाग्रहों से मुक्ति तथा विवेकशील सद्बुद्धि की जिज्ञासा जगाना है तथा लोगों में समय का निवेश करता हूं और यह मानकर चलता हूं कि हर निवेश हमेशा फलदायी ही नहीं होता। शिक्षा के इस अभियान न में अप्रिय सत्य बोलने का खतरा उठाना भी शामिल है। दुबारा सादर।
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