समाज की प्रगति के लिए जन्मगत सामाजिक विभाजन, हमारे संदर्भ में जातिप्रथा, का अंत आवश्यक है। यूरोप में नवजागरण आंदोलन ने जन्म-आधारित भेदभाव समाप्त कर दिया और उसके बाद से ही यूरोप वैज्ञानिक अन्वेषणों के आधार पर आगे बढ़ा। अंबेडकर की पुस्तक, 'जाति का विनाश' में एक अध्याय है -- श्रम विभाजन या श्रमिक विभाजन -- जिसमें दिखाया है कि जातियों में बंटे श्रमिकों की एकता जाति के विनाश के बिना कितनी मुश्किल है। हमारे यहां सामाजिक और आध्यात्मिक एकता के संदेश के साथ शुरू कबीर का नवजागरण किस्म का आंदोलन अपनी कार्किक परिणति तक नहीं पहुंच सका। दलित एवं तथाकथित पिछड़ी जीातियों में शिक्षा के प्रसार, वैज्ञानिक चेतना के विकास तथा अंतर्जातीय विवाहों से जातिवाद की धार थोड़ा कुंद हुई है लेकिन उसको खत्म करने के लिए क्रांतिकारी बदलाव की जरूरत है। क्रांति के बिना जाति का विनाश नहीं और जाति के विनाश के बिना क्रांति नहीं। जेएनयू आंदोलन से निकले जय भीम लाल सलाम के प्रतीकात्मक नारे को व्यावहारिक रूप देने में आज की समस्या का समाधझान है।
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