सब सामाजिक अपराध की सब घटनाओं पर नहीं बोल पाते, बोलना चाहिए। मैंने तो आजमगढ़ और बलरामपुर के जघन्य अपराधों पर भी पोस्ट लिखा था। कुछ लोग, आपके हिसाब से, यदि अन्य घटनाओं पर चुप हैं तो इसका मतलब यह तो नहीं जिस पर बोल रहे हैं, उस घटना के अत्याचार का समर्थन किया जाए। किसी अपराध के परोक्ष समर्थन की यह बहुत पुरानी रणनीति है कि इसकी करते हैं तो उस अपराध की बात क्यों नहीं करते? सरकारी एजेंसियां और तमाम लोग प्रकारांतर से हाथरस के आरोपियों के पक्ष में खोज खोज कर तर्क-कुतर्क पेश कर रहे हैं। लड़की को आनन-फानन परिजनों की सहमति के विरुद्ध लाश को जलाना, उससे एकजुटता दिखाने की कोशिस करने वालों पर पुलिस बर्बरता सरकार की नीयत को संदेहास्पद बनाती है। वायरल हो रहे वीडियो में पुलिस की मौजूदगी में कुछ गुंडे पीड़ित के घर पर उसके परिजनों को धमकी दे रहे हैं। भाजपा के एक पूर्व विधायक आरोपियों को निर्दोष बतताते हुए सभा करते हैं। 12 गांवों की महापंचायत में दलितों के विरुद्ध छुआछूत के सार्वजनिक बयान दिए जाते हैं सरकार कोई कार्रवाई नहीं करती। हर अपराध का विरोध किया जाना चाहिए, लेकिन अगर कुछ लोग एक अपराध का विरोध करते हैं बाकी का नहीं तो क्या बदले में उस अपराध का समर्थन करना चाहिए जिसका वे विरोध कर रहे हैं? क्या हम यही स्टैंड लेते यदि वह हमारी अपनी बेटी होती?
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment