हम इल्जाम नहीं लगा रहे हैं, आइना दिखा रहे हैं। यह बहुत पुरानी तकनीक है, किसी चोर की बात करने पर उस चोर के समर्थक और भी चोरों का हवाला देते हैं। शिक्षक होने के नाते शिक्षा की प्रक्रिया पर अफशोस होता है कि हम उच्च शिक्षा के बावजूद बाभन (या लाला) से विवेकशील इंसान बन अपनी जाति-धर्म की पक्षधरता के पूर्वाग्रह-दुराग्रहों से मुक्त हो वस्तुनिष्ठ तार्किकता से क्यों नहीं सोच पाते? सारे अंध भक्त सभी बुराइयों की जिम्मेदारी 73 साल पहले की नींव पर डाल देते हैं। खुद को जतीय-सांप्रदायिक पूर्वाग्रहों से मुक्त करने की बजाय उन्ही में गोताखोरी करते हैं। एक गीत हम लोग गाते हैं -- तू खुद को बदल, तू खुद को बदल तब ही तो जमाना बदलेगा। आप से भी आग्रह है कि हिंदू-मुसलमान (लाला) से निखालिस इंसान बनिए, आनंद आएगा।
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