Wednesday, October 29, 2014

पाजेब

आवारगी को आतुर ये पाँव हैं हसीन 
लगता है मगर देखा नहीं कभी जमीन 
तमन्ना है करने की आज़ादी की इबादत 
रोकती है इन्हें मगर पालकी की हिफाज़त 
दौड़ना ऊबड़-खाबड़ में बात है बहुत दूर की  
आदत नहीं है इनको समतलों पर चलने की 
सोचते नहीं ये थहाने को सागर का अतल 
डालता कोइ और इनपर पोखर का जल 
इन हसीं पैरों में बेड़ियों से दिखते ये पाजेब
अलंकार से संज्ञा  की संभावना ये पाजेब 
कर रहे ये पाँव इरादा-ए-आज़ादी का इज़हार 
हो जायेगी अब पाजेब की पकड़ तार-तार 
आवारा शायर का कलम भी है आवारा 
बने-बनाए  रास्ते हैं इसे नहीं गंवारा 
मारना चाहता था पाकीज़ा का डायलाग 
लगा कलम अलापने आवारगी का राग 
(इमि/३०.१०.२०१४)

2 comments:

  1. Replies
    1. किसी ने अपने पाजेबी पांव की तस्तवीर तस्वीर शेयर किया था उसी पर यह लिखा गयी

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