Friday, October 10, 2014

सुनो सुधीश पचौरी!

सुनो सुधीश पचौरी!
वंदेमातरम् के नये पुजारी
नहीं हो तो भक्ति-भाव में अकेले
साथ हैं बहुत सारे विद्वान चेले
रौंद रहा था घोड़ों की टॉपों से सिकंदर जब ऍथेंस
कहा अरस्तू ने सर्वश्रेष्ठ शासन राजतंत्र
 करता अरस्तू यथास्थिति की पक्षधरता
बनी हुयी है उसके वंशजों की निरंतरता
भूल जाते हैं इतिहास अरस्तू के वंशज
जल्दी ही हो गया था सिकंदर का अंत
हुयी थी एथेंस में जनतंत्र की वापसी
निर्वसन नियति बनी अरस्तू की
सुनो अरस्तू की विरासत के दावेदारों
उच्च शिक्षा के कमीशनखोरों
जागेगा जिस दिन मुल्क का मुदर्रिस
कुज्ञान की विसात हो जायेगी टांय-टांय फिस्स

सुनो सुधीश पचौरी!
कुर्सी के शतरंज के मँजे खिलाड़ी
पतन कला में हो तुम माहिर
बात हो गयी है जगजाहिर
दंग रह गयी देख पतितों की कई पीढ़ियां
उतर गये दो ही छलांग में इतनी सारी सीढ़ियां
बन गये गिरगिट देश नरेश
पांचवे कॉलम के भग्नावशेष
सुनो सुधीश पचौरी!
तुम कहते थे जब क से होता कम्युनिस्ट
लगता था हो तुम कोइ विद्वान विशिष्ट
मिला जैसे ही  कुर्सी का सन्देश
कम्युनिस्ट हो गये भाषा में भदेस  
क से होने लगा कांग्रेस
बिना नेहरू वंश के नहीं चलेगा देश
कहते थे भूमंडलीकरण को साम्राज्यवाद
लूटकर सामाज की संपदा करेगा मुल्क  बर्बाद
बेरोज़गार और बेघर होंगे किसान-आदिवासी
तबाह हो जायेंगे धरती के निर्धन निवासी
सही लगती थी तब तुम्हारी यह बात
खतरे में पडेगी संप्रभुता फैलेगा अराजकवाद 
मिला जैसे ही कुर्सी का आश्रय 
घूम गया कलम १८० अंश के कोण पर
भूमंडलीकरण से ही होगा राष्ट्र विकास
स्वर्ग उतरेगा धरती पर अयेगा कारपोरेटी राज
कायम हो अब भी तुम अपने इस जज्बात पर
एका है गज़ब की सल्तनतों में इस बात पर
बताते थे फिरकापरस्ती को सबसे बड़ा खतरा
बदलते ही सल्तनत बदल गया ककहरा
इबादत-ए-कुर्सी अमन-ओ-चैन पे भारी पड़ा
उतार गांधी टोपी केशरिया पहन लिया
और होने लगा क से केशव हेडगेवार
मोदी जी हैं जिनकी विरासत के हक़दार
लगाया वर्णमाला में एक लम्बी छलांग
बताया जिसको राष्ट्र धर्म की मांग
क से होगा नहीं अब शुरू ककहरा
वर्णमाला पर रहेगा अब म का पहरा
क से ककहरा है इतिहास की बात
करो म से ममहरे की शुरुआत
अब जब तुम कहते हो म से मोदी
लगते हो कारिन्दा-ए-सिकंदर लोदी
सुनो सुधीश पचौरी!
महसूसता था तुमसे परिचय का अतिशय सम्मान
पाता हूँ उसी को अब घोर बौद्धिक अपमान
कोइ पतन अंतिम नहीं होता
अतल गहराइयों से भी उठना मुश्किल नहीं होता
दर-असल हर पतन उत्थान का ऐलान है
वैसे ही जैसे हर निशा एक भोर का ऐलान है.
(इमि/१०.१०.२०१४)


No comments:

Post a Comment