हम तो हैं पैदाइशी ढीठ
देते नहीं हवा को कभी भी पीठ
हम समझते हैं हवा का रुख जरूर
देते नहीं मगर उसे पीठ कभी भी
जानते हैं नीयत तूफानी लहरों की
इरादों की बुलंदी भी है कम नहीं
उठाये कातिल जहमत कितनी भी
कमेगी नहीं जिस्म-ओ-खंजर की दूरी
टकराकर बज्रवत हड्डियों से
टूट जायेगी क़ातिल की छुरी
जानते हैं दुनियादारी के रश्म-ओ-रिवाज़
नाइंसाफी से तेज होती रफ़्तार-ए-बेरोजगारी
खेलते रहे आज़ादी और बेरोगारी के खतरों से
जानते हैं आज विरोध ही सही कदम है
भक्ति भाव से जड़ हो जाएगा समाज
करते नहीं किसी कदम पर समझौता
गढ़े नहीं कुतर्क और गोलमटोल भाषा
निकले हैं आवाम का जमीर जगाने
छू नहीं सकती हमें कभी निराशा
जागेगा जिस दिन जमीर-ए-आवाम
हवाओं के रुख करेंगे हमको सलाम
(इमि/०१.१०.२०१४)
शुक्रिया
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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अष्टमी-नवमी और गाऩ्धी-लालबहादुर जयन्ती की हार्दिक शुभकामनाएँ।
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दिनांक 18-19 अक्टूबर को खटीमा (उत्तराखण्ड) में बाल साहित्य संस्थान द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय बाल साहित्य सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है।
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हिन्दी में बाल साहित्य का सृजन करने वाले इसमें प्रतिभाग करने के लिए 10 ब्लॉगर्स को आमन्त्रित करने की जिम्मेदारी मुझे सौंपी गयी है।
कृपया मेरे ई-मेल
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पर अपने आने की स्वीकृति से अनुग्रहीत करने की कृपा करें।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"
सम्पर्क- 07417619828, 9997996437
कृपया सहायता करें।
बाल साहित्य के ब्लॉगरों के नाम-पते मुझे बताने में।
ठीक
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