रहें गर ऐसे ही बुलंद हौसले
और चढ़ती रहे उनपर विचारों की धार
खुद-ब-खुद टूट जायेंगी सारी हदें और सरहदें
जारी रहे गर तलाश-ए-खुदी
और किरदारी जंग-ए-आज़ादी में
मुखर होते रहेंगे खुदी के कितने ही सुप्त आयाम
टूटती रहेंगी हदें मंजिल-दर-मंजिल
बेसरहद दुनिया की आख़िरी मंजिल तक.
(इमि/०८.१०.२०१४)
बहुत बढ़िया :)
ReplyDeleteशुक्रिया
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