सभ्यता मनुष्य (व्यक्तियों) में द्वैध भाव यानि दोहरेपन का संचार करती है, हर कोइ (अपवाद नियम की पुष्टि करते हैं) वह दिखाना चाहता/चाहती है जो वह होता/होती नहीं-सार और स्वरुप का चिरंतन अंतर्विरोध. यह अंतर्विरोध तथाकथि सबसे घनिष्ट रिश्तों -- परिवार और प्रेमी -- में ज्यादा साफ़ दिखता है. मा-बाप-बच्चे एक ही छत के नीचे रह्जते हुए कभी सार्थक संवाद नहें करते, सिर्फ सूचनाओं का आदान प्रदान करते है. प्रेमी युगल एक सरे को प्रभावित करने के लिए वह दिखने की कोशिस करते रहते हैं जो होते नहीं. अपन तो जैसे हैं उससे इतना इश्क है कि सीमित ऊर्जा व्यर्थ अभिनय में बर्बाद करने की जरूरत नहीं पड़ती. हा हा .
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