Tuesday, October 21, 2014

अदम की याद

सुबह सुबह अदम की याद आ गयी:

यह आख़िरी मुलाक़ात थी अदम गोंडवी के साथ
चमारों की गली पढ़कर रो पड़े थे श्रोताओं के साथ
थी अदम की जोर-ज़ुल्म से अदावत
कहते थे जनता से करने को बगावत
देखता हूँ रहनुमाओं की खुद्सरी का शगल
याद आती है तब अदम गोंडवी की ग़ज़ल
जब भी देखता हूँ उबलते मजहबी जज्बात
याद आती है गरीबी से जंग की उनकी बात
जब भी होता है जुबां पर ताले का खतरा
याद आता है जेहन की अनंत उड़ान का मिसरा
देख पैसे से उठती-गिरती सरकारों का सिलसिला
उठता हैं जनता के हथियार  के हक का मामला
होगा आदम की बातों का असर जरूर
फैलेगा  ही आवाम में इन्किलाबी शुरूर
करता है ईश आपको सलाम मान्यवर
बख्सते इज्ज़त जिसे आदरणीय कहकर
(इमि/२२.१०.२०१४)

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