Tuesday, October 28, 2014

लल्ला पूरण १७५

Sumant Bhattacharya  वही सवाल मैं उठा रहा हूँ, वह महिला क्यों छली गयी? क्यों वह बार बार बलात्कार करवाती रही? मेरा एक अजीज, मुल्क का बड़ा शायर इन्ही मर्दवादी महिलाओं का शिकार हुआ. उसको अपने बॉस के साथ सोने में आनंद नहीं आया तो वह दुबारा-तिबारा क्यों उसके साथ सोने गयी? नौकरी से निकालने पर उसे याद आया कि उसका शोषण हुआ? क्या वह दिमाग से पैदल है? एक प्रोफ़ेसर हैं नौकरी की तलाश के दिनों में उन्होंने अपने गाइड को इतना अधिकार दिया कि वह उसे दूसरों को भी आफर कर सके. उसी की कृपा से परमानेंट होने के बाद्फ़ और उसके यौन  शोषण के किसी और मस्मले के बाद उन्होंने दबे जुबान से अपने शोषण की बात की, मैंने कहा जब आप खुशी ख्गुशी शोषण करवा रही थी तब तो आप ने शिकायत नहीं किया? मैं दुबारा कह रहा हूँ मेरे उन महिलाओं से कोइ सहानुभूत्यी नहीं है जो जिस्म का इस्तेमाल करती हैं और सौदे में घाटा होने पर शोषण की शिक्कायत कसरती हैं.

प्रभाष जोशी हों या भगवान् कोइ सवाल से परे नहीं, प्रभाष जी से मेरे घनिष्ट सम्बन्ध रहे हैं, लेकिन सती प्रथा का समर्थन उनके कैरियर का कलंक है. पहली बात तो सती जैसी अमानवीय, बर्बर प्रथा के महिमामंडन का बनवारी नामक जाहिल मातहत का   लेख छपने नहीं देना चाहिए था, छपने के बाद भारतीय संस्कृति के नाम पर उसका बचाव  प्रभाष जी' का बौद्धिक नीचपना था. हमारे बहिष्कार का क्या प्रभाव पड़ा था  तुम्हे नहीं मालूम क्योंकि तब तुम बच्चे थे पत्रकारिता में या प्रतियोगी परिक्षाओं की निराशा के बाद पत्रकारिता में आशा देख रहे होगे.

निजी तुम हो रहे हो.  तुम्हारे तमाम जैसे प्रिय मित्रों को अप्रिय बात कहने की ढिठाई जरूर करता हूँ. प्रभास जी भगवान नहें थे क्रिकेट के बारे में तो प्रलाप करते थे अंधराष्ट्रवाद की हद तक. और सती का उनका समर्थन जघन्य बौद्धिक अपराध था और उनके पत्रकारिता का कलंक.

मैं मोदी का विश्लेषण नहीं हें कर रहा था, उसका विरोध कर रहा था. क्यों मोदी आया और उसकी पीठ पर अम्बानी का हाथ क्यों है इस पर अब लिख रहा हूँ. विश्लेषण तो इस मुल्क के पढ़े-लिखे जाहिलों का करना है जिन्हें अम्बानी का जरखरीद भगवान दिखता है.

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