Sunday, October 12, 2014

चश्में में छिपी ये ऑंखें

क्या कहती हैं चश्में में छिपी ये ऑंखें
शर्मा कर आमंत्रित करती है महसूसने को 
ढलकती चुनरी से झांकते उन्नत उरोज 
समझता  नहीं इशारों का आमंत्रण मन सरोज
करता है मन पीने को अधरों से शहद 
देख यह लावण्य जाता बुड्ढों का मन बहक 
आयेगा आलिंगन में दैवीय आनंद 
पीकर भौंरों सी एक दूजे का मकरंद 
भरेंगे साथ साथ एवरेस्ट की उड़ान 
होंगे हाथों में हाथ न लगेगे थकान
भर चुका हूँ  उड़ान सपनों में कई बार
आओ दें सपनों को हकीकत में उतार 
(इमि/१३.१०.२०१४)

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