Monday, October 27, 2014

इतिहास की प्रतिध्वनि

इतिहास की प्रतिध्वनि
इलिहास कभी अपने को दुहराता नहीं, प्रतिध्वनित होता है और प्रतिध्वनियाँ कई बार भयानक लगती हैं. नेहरू के समय इंदिरा गांधी संविधानेतर सत्ता के केंद्र के रूप में उभर रही थी. कहते हैं कि उन्ही की इच्छा से केरल के वामपंथी सरकार गिराई गयी थी. वे उस समय कांग्रेस अध्यक्ष थीं.यह बात उछली तो लेकिन  "राष्ट्र-निर्माण" के शुरुआती दिनों में नेहरू के कद के चलते बहुत ऊपर तक नहीं गयी.  इंदिरा गांधी जब गरीबी हटाओ के मंत्र से प्रधानमंत्री और गरीबों को हटाने लगीं तो उनका लम्पट बेटा, संजय गांधी युवा कांग्रेस का अध्यक्ष बाद में बना और संविधानेतर सत्ता का केंद्र पहले. सारे भ्रष्ट आला अफसर और कांग्रेसी मंत्री-संतरी, नट-भट उसका दरबार करने लगे. उत्तरप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री की हेलीकाप्टर पर चढते हुए संजय गांधी को चप्पल पहनाते हुए छपी तस्वीरों ने इस नारे को जन्म दिया था, "न नर है न नारी है, संजय की सवारी है, नारायण दत्त तिवारी है". संजय ने एक कबाड़ी के कारोबारी धीरू भाई अम्बानी की पीठ पर हाथ रखा तो वह कबाडीपति से अरबपति बन गया. लेकिन इंदिरा गांधी की तो छोडिये, संजय की पीठ पर भी हाथ रखने की किसी थैलीशाह की औकात नहीं थी. एक ही पीढी में इतना परिवर्तन हुआ कि उसके बेटे का हाथ सत्ता संवैधानिक सता की पीठ पर पहुँच गया. संजय की मौत के बाद, समानांतर सत्ता का यह केंद्र कुछ दिन खाली रहा. अराजनीतिक स्वभाव के चलते राजीव गांधी यह पद नहीं भर पाए मगर इंदिरा गांधी की मौत के बाद सीधे संवैधानिक केंद्र में पहुँच गए और संजय ब्रिगेड के ज्यादातर सदस्य उनके दरबारी. संजय गांधी की पत्नी मेनका गांधी की उम्मीदवारी इंदिराजी को नागवार लगी और घर से निकाल दिया. वह अंततः संघम् शरणम् चली गयी. राजीव गांधी के दरबारियों के अलावा शायद संविधानेतर सत्ता का केंद्र शायद खाली  रहा. विश्वनाथ प्रताप के संक्षिप्त शासनकाल में आडवाणी के नेतृत्व में हिंदुत्व संविधानेतर केंद्र के रूप में उभरा जिसने कमंडल से मंडल को ध्वस्त करने के रथ यात्रा से मंडलवादी सरकार को ही ध्वस्त कर दिया. नरसिंह राव और मनमोहन सरकारों का संविधानेतर केंद्र-- ११ जनपथ--जग जाहिर है.तमाम संविधानेतर केन्द्रों के चलते देवेगौडा-गुजराल की सरकारें अतिअल्पजीवी रहीं. अटल बिहारी के शासनकाल में संविधानेतर सत्ता का यह केंद्र नागपुर चला गया लेकिन लुके-छिपे.राजधर्म की दुहाई देते हुए गुजरात नरसंहार को इतिहास पर कलंक मानते हुए गुजरात सरकार को बर्खास्त या निंदा करने  करने की अटल बिहारी की खाहिश पर नागपुरी वीटो लग गया. और अटलबिहारी को जनसंहार और बलात्कार को आपद्धर्म बताना पडा. मोदीजी के राज में, सत्ता का यह संविधानेतर केंद्र संजय शैली में खुल कर सामने आगया है. भ्रष्टाचार और अनियमितता के आरोपों से घिरे दिल्ली विवि के कुलपत या एम्स के निदेशक राष्ट्रपति के दरबार नहीं, भागवत दर्शन करने लगे हैं.
 एडम स्मिथ मुनाफ़ा कमाने की गतिविधियों के उपपरिणाम के रूप में इतिहास की व्याख्या करते हुए जानबूझ कर समन्वयक शक्ति को सरकार न कह कर "बाज़ार का अदृश्य हाथ" कहते हैं. कार्ल मार्क्स अदृश्य हाथों का रहस्योद्घाटन करते हुए, राज्य मशीनरी को पूंजीपति वर्ग के सामान्य हितों  (general interests) का कार्यकारी दल बताया. लेकिन पूंजीवादी व्यवस्था अपने अन्तर्निहित दोगले चरित्र के चलते राज्य को एक निष्पक्ष इकाई घोषित करती है इसलिए शासक सार्वजनिक मंचों पर पूंजीपतियों के कारिदा दिखने से बचता है, खासकर उदारवादी जनतंत्र में, जहाँ सककार जनता के संसाधनों से पूंजीवाद की सेवा करती है लेकिन दावा जनता की सेवा का करती है. यह अदृश्य हाथ आज साफ़ दिखता है, टाटा को किसानों की जमीन पर कब्जा दिलाने के लिए, आन्दोलनकारी किसानों पर गोलीबारी करके 16 आदिवासी किसानों की ह्त्या बाज़ार के अदृश्य हाथ नहीं, उड़ीसा सरकार करती है. बहुराष्ट्रीय कंपनी पास्को किसानों की जमीन पर काबिज करने के लिए पान के भीटों से समृद्ध जगतसिंहपुर के किसानों को बाज़ार के अदृश्य हाथ नहीं, भारत सरकार उजाड़ रही है. जनता (किसान मजदूर) को और भी दयनीय बना कर भूमंडलीय पूंजी की सेवा के लिए, जनविरोधी नीतियों का प्रस्ताव बाज़ार के अदृश्य हाथ का नहीं बल्कि विशाल बहुमत से सत्तासीन विकास पुरुष मोड सरकार का है. क्षमा कीजिएगा, कलम, संविधानेतर सत्ता और पीठ पर हाथ से अदृश्य हाथ की तरफ बहक गया. मोदी जी ने समीकरण बदल दिया, मुनाफाखोर की पीठ पर सत्ता के हाथ की बजाय मुनाफखोए का हाथ सत्ता की पीठ पर पहुंचा दिया. इस तरह की ईमानदारी का एक ही और उदाहरण है, पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर, जिन्होंने गर्व से कोयला माफिया सूरजदेव सिंह से अपनी मित्रता का सार्वजनिक इज़हार किया था. मोदी की पीठ पर अम्बानी के और हाथ में श्रीमती अम्बानी के हाथ का सिर्फ प्रतीकात्मक महत्त्व नहीं है.  इतिहास कभी खुद को दुहराता नहीं, प्रतिध्वनित होता है, भयावह है मौजूदा प्रतिध्वनि.
ईश मिश्र
17 बी, विश्वविद्यालय मार्ग
दिल्ली विश्वविद्यालय
दिल्ली ११०००७


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