Monday, October 20, 2014

हंसी उडाना खुद की

हंसी उडाना खुद की है साहस का काम 
भले ही करें लोग कह दुस्साहसी बदनाम 
करते जो लोग काम होता जो अपेक्षित 
सद्गुणी कह लोग करते उन्हें उपेक्षित 
उसूल-ए-हराम हो जब रईसी की बुनियाद 
ईमान बन जाता है परिहास की बात  
मगर सत्ता को आतंकित करता ईमान
आतंकवाद देती उसको वो नाम 
लिखने बैठा था कविता आत्म-परिहास पर 
खिसक गया कलम ईमान के आतंक पर 
बने हों आतंकवाद पर जहां ढेरों कानून 
खतरनाक होता है ईमानदारी का जूनून 
(इमि/२१.१०.२०१४)

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