इलाहाबाद विवि के एक ग्रुप में मेरी एक कविता पर जिसमें जनवाद का ज़िक्र नहीं था, एक सज्जन ने कमेन्ट किया कि जनवाद एक फैसन है. उस पर मेरा कमेन्ट:
जी हाँ, एक इन्किलाबी फैसन है जनवाद
यथास्थिति को खारिज करने का साहस है जनवाद
गरीब-गुरबा का ज़ुल्म को जवाब है जनवाद
इन्साफ की दुनिया का ख्वाब है जनवाद
हालात से लड़ने का जज्ब़ात है जनवाद
जोर-ज़ुल्म को ललकारने का नाम है जनवाद
दुनिया के मजदूरों का इन्किलाब है जनवाद
(इमि/१६.१०.२०१४)
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