Tuesday, October 28, 2014

लल्ला पुराण 174( नारी विमर्श 5)

Sumant Bhattacharya भाई सुमंत, काम कुछ और करना था लेकिन लगा कि आपकी बात का जवाब देना जरूरी है. मुझे आपसे या किसी से अपनी नारीवादी प्रतिबद्धता की सनद नहीं  चाहिए. वैसे लाइक बटन दबाने वालों में ५०% महिलायें हैं.मेरी भौतिक सीमाएं हैं हर पोर्टल पर नहीं जा सकता. मेरी किस बात से आपने धतकरम करके सीढियां चढ़ने वाले मर्दो के समर्थन का निष्कर्ष निकाल लिया? तुम्हारी ज्यादातर पोस्ट, मोदियाने की शिकायत के खात्मे के बाद नारियों पर होती हैं, बेटी को बेटा कहकर शाबाशी देने जैसे नारीविरोधी कर्म की तरह अनजाने में नारियों के बारे में मर्दवादी परिप्रेक्ष्य के साथ. मैं बार बार कह चुका हूँ कि मर्दवाद कोई जीववैज्ञानिक प्रवृत्ति नहें है, न ही मौत की अवश्यसम्भाविता जैसा कोइ साश्वत विचार. मर्दवाद विचार नहीं एक विचारधारा  है जो हम अपने रोजमर्रा की ज़िंदगी की प्रक्रिया में निर्मित-पुनर्निर्मित, पोषित करते हैं और जिसे नारीवादी अपने नित्य कृत्यों- कर्मों और प्रतिविचार्धारा-नारीवाद- से खंडित करते हैं और एक मानवतवादी समतामूलक मूल्य की हिमायत. वर्चस्व विचारधारा से निर्मित होता है.  विचारधारा एक मिथ्याचेतना है जो पीड़ित को भी उतना ही प्रभावित करती  है जितना उत्पीड़क को.  मर्दवादी सिर्फ पुरुष ही नहीं होते जो नारी देह को उत्तेजक पदार्थ मानते हैं, मर्दवादी विचारधारा से मुक्ति से वंचित महिलायें भी. कोर्ट में ऐसे मामले पढने को मिलते हैं कोइ किसी का ३ साल बलात्कार करता रहा. सेक्स स्वस्फूर्त पारस्परिक प्रक्रिया है, पारस्परिकता के विरुद्ध कोइ भी सम्बन्ध बलात्कार है, पत्नी का भी. विचारधारा मिथ्या चेतना इस लिए है कि यह एक ख़ास मूल्य को सार्वभौमिक, स्वाभाविक और अंतरिम सत्य के रूप में पेश करती है. वर्चस्व का ही प्रभाव है कि ज्यादातर महिला प्रोफ़ेसर स्वेच्छा से डबल रोल करती हैं. हम बचपन से कुछ सामाजिक मूल्यों को अंतिम सत्य की तरह आत्मसात कर लेते हैं कि आजीवन उसी कैद में पड़े रहते हैं. निकलने के लिए साहस और जज्बा चाहिए, झेलने और लड़ने की ताकत चाहिए. वैचारिक वर्चस्व का का ही असर है कि यूजीसी ने एक घोर नारीविरोधी प्रावधान बनाया कि महिलाओं को सेवाकाल  में कभी भी मातृत्व अवकाश मिल सकता है क्योंकि बच्चे को कभी भी विशेष देखभाल की जरूरत पड़ सकती है, सब महिलाओं ने स्वागत किया. और भी लिखने को है लेकिन फिर कभी. मर्दवादी होने के लिए पुरुष होना उसी तरह जरूरी नहेीं  है जैसे नारीवादी  होने के लिए नारी होना.

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