Thursday, October 16, 2014

विचार हों जब प्यार का आधार

होती हैं इश्क की कई कोटियाँ 
अपना तो इश्क अजीब था 
उपहारों की बात ही छोड़ो 
हाँ, उपहार सिनेमा करीब था 
करते थे आशिकी बेबाक
अरावली की पहाड़ियों में 
कीकड़-बबूल की झाड़ियों में 
खाते थे तोड़कर जंगली बेर 
 करते थे सूखी झील की सैर
घूमते घंटों पहाडी पगडंडियों पर
प्यार की बातें  चलतीं रात भर 
भोर में पहुंचते काशीराम के ढाबे पर  
सुबह की चाय में रात की बात का असर 
विचार हों जब प्यार का आधार 
संपन्न रहता है यादों का संसार 
(इमि/17.१०.२०१४)

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