होती हैं इश्क की कई कोटियाँ
अपना तो इश्क अजीब था
उपहारों की बात ही छोड़ो
हाँ, उपहार सिनेमा करीब था
करते थे आशिकी बेबाक
अरावली की पहाड़ियों में
कीकड़-बबूल की झाड़ियों में
खाते थे तोड़कर जंगली बेर
करते थे सूखी झील की सैर
घूमते घंटों पहाडी पगडंडियों पर
प्यार की बातें चलतीं रात भर
भोर में पहुंचते काशीराम के ढाबे पर
सुबह की चाय में रात की बात का असर
विचार हों जब प्यार का आधार
संपन्न रहता है यादों का संसार
(इमि/17.१०.२०१४)
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