क्या रवानी है कलम की तुम्हारे
तार कर देता है नारी संस्कार सारे
मर्दवाद को देता अनवरत सांस्कृतिक संत्रास
नारीत्व के सद्गुणों से उठता उसका विश्वास
सारे सभ्य समाजों में नारी रही है पतिव्रता
दूषित करता कलम तुम्हारा परंपरा की पवित्रता
चला रहा पत्नी-पतनशीलता का कुत्सित अभियान
लेगा ही ऊपरवाला इन पापों का संज्ञान
सहनशील है अपना समाज नारी सा ही
होती हद मगर पतनशीलता की भी
भरेगा घड़ा जब कलम के पाप का
पतनशील पत्नीत्व के अभिशाप का
होगी तब जंग अार-पार की
निर्णायक जीत-हार की
जीतता है ग़र कलम तुम्हारा
उलट जायेगा सद्गुण का समीकरण सारा
टूटेंगे पूर्वजों सारे पवित्र संस्कार
बढ़ेगा समाज में नारीवादी विकार
होगा पतनशील पत्नीत्व का पतिव्रतत्व पर राज
खाक में मिल जायेगा हमारा सभ्य समाज
(ईमिः20.10.2014)
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