पड़े हैं लाले रोजी-रोटी के तो क्या हुआ
मुद्दों की भीड़ में इंसानों सी भेडचाल है
लगा रहा जो नारा-ए-जम्हूरियत
वो सियासत का अदना दलाल है
गाता है गीत वसुधैव कुटुम्बकम का
इंसानियत को करता हर रोज हलाल है
खडा करना आतंकवाद का हौवा
साम्राज्यवाद की नस्लवादी चाल है
पालता है कितने ही नरेंद्र-ओ-शरीफ
रक्तपात का इसको नहीं कोई मलाल है
(हा हा यह भी कविता सी हो गयी)
(इमि/३०.०९.२०१४)
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