Sunday, October 19, 2014

शिक्षा और ज्ञान ३५

Nishant Kumar मेरे युवा मित्र! आप मोदी समर्थक इसलिए हैं कि भावनाओं (दिल) से सोचते हैं,. विवेक (दिमाग) से नहीं. विवेक हे मनुष्य को पशुकुल से अलग करता है और दिमाग का इस्तेमाल बंद कर मनुष्य पशुवत हो जाता है. मैं सारे मोदी-भक्तों से एक ही सवाल पूछता हूँ, आप अपने इस महानायक, नफ़रत के सौदागरों के इस मुखिया की एक बात-- कम या वाक्य-- बता दें, सांप्रदायिक हिंसा और नफ़रत की सीढी  से सत्ता की ऊंचाई तक चढ़ने वाले अपने आराध्य का एक सद्गुण बता दें जिससे आप उसके भक्त हो गए तो मैं भी आपकी भाषा बोलने लगूंगा. हम भूखे-नंगों के बारे में ही चिंतित रहते हैं इसीलिये इस  दुर्दशा के मुख्य अपराधी कार्पोरेटी भूमंडलीय पूंजी और मनमोहन-मोदी जैसे उसके चाकरों के खिलाफ लिखते है. मित्र! आपने गरीबी और भूख के बारे में सुना-पढ़ा(जिसकी कम संभावनाएं हैं क्योंकि संघी पढने-लिखने में यकीन नहीं करते) होगा, मैंने भूख और गरीबी जिया है और फक्र से उन दिनों को याद करता हूँ. कोइ भी बालक भूखा न रहे इसके लिए जरूरी है की आप संसाधनों से संपन्न इस धरती पर गरीबी-भुखमरी-बेरोजगारी-गैराबराबरी के अन्तःसंबंधों और साम्राज्यवादी भूमंडलीय पूंजी का राजनैतिक अर्थशास्त्र समझें. जब तक रोग का मूल न मालूम हो तो इलाज़ कैसे करेंगे. अगर आप गरीबी-बेरोजगारी-भुखमरी-गैर बराबरी के कारणों को नहें समझेंगे तो गलत इलाज़ से रोग बढाते जायेंगे. देशों में दुर्दशा का कारण भूमंडलीय लूट है और आप लुटेरे के एक सेनापति से लूट बंद करवाने की खुशफहमी पालते हैं. आपके नसीहत, "अगर आप मोदी, कांग्रेस या अन्य पार्टी पर उंगली उठा रहे हैं तो राजनीति में आयें, हम आप के साथ हैं", सर आँखों पर. लेकिन आपके विचारों या आपको "यंग जनरेसन" का प्रतिनिधि मान लेना उतनी ही भयंकर भूल होगी जितनी आप का मोदीजी को आराध्य मान लेना. मित्र! यह भी आपकी नासमझी  मैं राजनीती में नहीं हूँ. मित्र मैं तो पिछले ४ दशक से अधिक समय से राजनीति में हूँ संही शुरुआत के साथ. हाँ सत्ता और लूट खसोट की नहीं दुनिया बदलने की राजनीति.  इसी लिए आप जैसे युवकों के साथ सर खपाता हूँ कि कुछ को पूर्वाग्रहों-दुराग्रहों मुक्ति दिला सकूं और विवेकशील इंसान बनाने में मदद कर सकूं; जिससे क्रांतिकारी संभावनाएं हकीकत बन सकें, जिससे वे सुन्दर सपने देखें. सस्नेह.  .


2 comments:

  1. सोचता कोई नहीं है देखता हर कोई है और सब देखा देखी में हो रहा है अब जब सोच ही नहीं हो तो ऐसे से सोचने के लिये कहना उसके साथ ज्यादाती करना नहीं है क्या ? देखो देखो देखते हैं कब तक देखते हो :)

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    1. कहते रहना है कभी तो दिमाग पर चोट होगी.

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