@sumant bhattacharya: मोदी गुजरात आंदोलन के समय संघ के प्रचारक थे. जेपी आंदोवन में संघियों के शामिल होने से ही आंदोलन दिशाहीन हो गया. भ्रष्टाचार के विरुद्ध स्वस्फूर्त आंदोलन ने राजनैतिक बनवास झेल रहे जेपी को एक अवसर प्रदान किया, और उस पर उन्होने सांप्रदायिक मुलम्मा चढ़ा दिया. आपातकाल में नैनी जेल के सारे संघियों ने 20 सूत्री कार्यक्रम का स्वागत कर मॉफी मांगी फिर भी नहीं छूटे अलग बात है. सरसंघचालक ने इंदिरा गांधी तको खत लिख कर 20 सूत्री कार्यक्रम को राष्ट्र हित मे बताकर स्वागत किया. मोदी के राजनैतिक जीवन की शुरुआत 2002 में होती है जब आडवानी ने अदूरदशिता के चलते अपने 2 दशक पुराने सांप्रदायिक उन्माद और ध्रुवीकरण के प्रयासों पर शान चढ़ाने के लिए मोदी को गुजरात का मुख्यमंत्री बनवाया. मोदी ने उन्हे उपकृत करने और अपना रास्ता बनाने के लिए गोधरा के प्रायोजन और उसके बहाने गुजरात में हत्या बलात्कार और आगजनी तथा लूटपाट बर्बर तांडव रचा. जब तक लोगों में भर्मांधता और अक्लबंदी की जहालत मौजूद है अमितशाह और मोदी जैसे चतुर लोग लोगों को आपस में लड़ाकर सियासती रोटियां सेंकते हुए अंबानी-अडानी की सेवा करते रहेंगे. वैसे तुमने बताया नहीं कि मोदी जी ने ऐसा क्या वाद वाक्य बोल दिया जिस पर तुम जैसे स्वघोषित वामपंथी फिदा हो गये. 12 साल गुजरात में क्यां नहीं चलाया कोई राम बाण और बचाया हजारों किसानों की आत्महत्या. सत्ता में बदलाव के साथ बुद्धिजीवियों के सुर भी बदल जाते हैं.
Sumant Bhattacharya Iघूम घूम कर गरियाने का मेरा कोई शौक नहीं है. मैं सार्वजनिक मुद्दों के निजीकरण पर यकीन नहीं रखता उसी तरह जैसे सार्वजनिक उपक्रमों के निजीकरण पर. 1998 में, अटल सरकार से उपकार की आशा में आशीस नंदी, टीयन मदान, परिमल दास जैसे तमाम बुद्धि जीवियों और जॉर्ज गिरोह के तमाम समाजवादियों को सेकुलरजिज्म देश में सबसे बड़ा खतरा नज़र आने लगा था उसी तरह जैसे तुम्हारे जैसे तमाम बुद्धिजीवियों को देश बेचने के ऐलान के बावजूद मोदी मशीहा लग रहा है. आगे आगे देखो 5 साल बाद देखने को क्या बचता है. तुम्हारे बार बार आग्रह के बावजूद अभी भी नहीं कहूंगा कि सुमंत मोदिया गया है. विवेक पर शान चढ़ाओ.
वामपंथी आंदोलन को क्या करना चाहिए, वह अलग बहस का मुद्दा है, जब भी जनवादी आंदोलन कमजोर हड़ता और बिखरता है तभी अधोगामी सांप्रदायिक ताकतें आक्रामकता से मुखर होती हैं. तुमने यह नहीं बताया कि मोदी जी ने कहा क्या जिससे मुल्क का कायापलट हो जायेगा. किस बदलाव के विरोध की बात कर रहे हो रेल और, फौज तथा देश का रपोरेट को बेचने के बदलाव की बात कर रहे हो, दकियानूसी कट्टरपंथी कारपोरेट-सेवक नेता लफ्फाजी करते हैं और उन्हे तुम्हारे जैसे प्रतिष्ठित भोंपू मिल जाते हैं. मैं नहीं जानता कि तुमने कब और कैसी कृषि पत्रकारिता की लेकिन किसान का बेटा होने के नाते खेती की मुसीबतें समझता हूं. मोदी जी इतने बड़े कृषिवैज्ञानिक और युगद्रष्टा हैं तो सांप्रदायिक जनसंहार की तरह इसे भी गुजरात में क्यों नहीं लागू किया हजारों किसान आत्म हत्या से बच जाते.
1950-200 तक गुजरात में जो भी विकास या कृषि सहकारिता के काम हुए उसका श्रेय मोदी जी को है क्या? मोदी जी के शासन में किसानों की आत्महत्या का सिलसिला शुरू हुआ. मैंने तुम्हारी पत्रकारिता की गुणवत्ता पर कभी कोई सवाल नहीं उठाया क्योंकि मैंने पढझ़ नहीं तुपम्हारे कृषि पत्रकारिता के लेख. न ही मोदी की लफ्फाजी सुनने का समय है मेरे पास, मोदी की कऋ,ि-वैज्ञानिकता के महिमामंडन करने के लिए कुढ अंश उद्धृत करना चाहिुए था. चलो देखते हैं भारत के किसानों के अच्छे दिन. मैं अब भी नहीं कहूंगा कि सुमंत मोदिया गया है.
Sumant Bhattacharya Iघूम घूम कर गरियाने का मेरा कोई शौक नहीं है. मैं सार्वजनिक मुद्दों के निजीकरण पर यकीन नहीं रखता उसी तरह जैसे सार्वजनिक उपक्रमों के निजीकरण पर. 1998 में, अटल सरकार से उपकार की आशा में आशीस नंदी, टीयन मदान, परिमल दास जैसे तमाम बुद्धि जीवियों और जॉर्ज गिरोह के तमाम समाजवादियों को सेकुलरजिज्म देश में सबसे बड़ा खतरा नज़र आने लगा था उसी तरह जैसे तुम्हारे जैसे तमाम बुद्धिजीवियों को देश बेचने के ऐलान के बावजूद मोदी मशीहा लग रहा है. आगे आगे देखो 5 साल बाद देखने को क्या बचता है. तुम्हारे बार बार आग्रह के बावजूद अभी भी नहीं कहूंगा कि सुमंत मोदिया गया है. विवेक पर शान चढ़ाओ.
वामपंथी आंदोलन को क्या करना चाहिए, वह अलग बहस का मुद्दा है, जब भी जनवादी आंदोलन कमजोर हड़ता और बिखरता है तभी अधोगामी सांप्रदायिक ताकतें आक्रामकता से मुखर होती हैं. तुमने यह नहीं बताया कि मोदी जी ने कहा क्या जिससे मुल्क का कायापलट हो जायेगा. किस बदलाव के विरोध की बात कर रहे हो रेल और, फौज तथा देश का रपोरेट को बेचने के बदलाव की बात कर रहे हो, दकियानूसी कट्टरपंथी कारपोरेट-सेवक नेता लफ्फाजी करते हैं और उन्हे तुम्हारे जैसे प्रतिष्ठित भोंपू मिल जाते हैं. मैं नहीं जानता कि तुमने कब और कैसी कृषि पत्रकारिता की लेकिन किसान का बेटा होने के नाते खेती की मुसीबतें समझता हूं. मोदी जी इतने बड़े कृषिवैज्ञानिक और युगद्रष्टा हैं तो सांप्रदायिक जनसंहार की तरह इसे भी गुजरात में क्यों नहीं लागू किया हजारों किसान आत्म हत्या से बच जाते.
1950-200 तक गुजरात में जो भी विकास या कृषि सहकारिता के काम हुए उसका श्रेय मोदी जी को है क्या? मोदी जी के शासन में किसानों की आत्महत्या का सिलसिला शुरू हुआ. मैंने तुम्हारी पत्रकारिता की गुणवत्ता पर कभी कोई सवाल नहीं उठाया क्योंकि मैंने पढझ़ नहीं तुपम्हारे कृषि पत्रकारिता के लेख. न ही मोदी की लफ्फाजी सुनने का समय है मेरे पास, मोदी की कऋ,ि-वैज्ञानिकता के महिमामंडन करने के लिए कुढ अंश उद्धृत करना चाहिुए था. चलो देखते हैं भारत के किसानों के अच्छे दिन. मैं अब भी नहीं कहूंगा कि सुमंत मोदिया गया है.
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