Tuesday, July 15, 2014

सीता-सावित्री

भूल जाओ रटी-रटाई, नाना-दादाकी सुनी-सुनाई
सीता-सावित्री-अनसूया की आदिम कहानियां
मिसालें हैं जो अनुनयन-अनुगमन-अनुशरण की
कुंद करती हैं नारी प्रज्ञा-पहल-आज़ाद-उन्नयन
बुनती हैं सती-सदाचार-आज्ञापालन का जाल
बताती हैं औरत को जूती-चेरी-भोग्या-पूज्या
आधी आबादी को अपंग बनाने का कमाल
रोकूंगा नहीं बच्चों को पढ़ने से ये आयतें
नहीं चूकूंगा देने से तटस्थ पठन की हिदायतें
लिखी जा रही हैं अब नई कहानियां
आओ हम भी लिखें
मलाला-मैत्रेयी-सिमन द बुऑओं की
हैं जो विवेक-अंतरात्मा से लैस
हाड़-मांस की संपूर्ण इंसान
मालिक हैं वे दिल की अपने
कर सकती हैं मनचाहा प्यार
अब अगर कोई अज़ीज छाया
करना चाहे चुम्बनों की बौछार
भर लो आलिंगन में उसे
करो उन्मुक्त प्यार
लड़ लेंगे उसके बाद मुक़दमा
सांस्कृतिक अपराध का
तुम्हारे अकाट्य हक़ीकी तर्कों से
लगेगा सांस्कृतिक सदमा
संस्कृति की अदालत के जजों को
याद आंयेंगे उन्हें प्राचीन काल के सुकरात
लेकिन इतिहास दुहराता नहीं
 प्रतिध्वनित होता है.
(अतुकांत के प्रयास में ज्यादा अतुकांत हो गया)
(ईमिः 16.07.2014)

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