Friday, July 4, 2014

लल्ला पुराण 164 ( क्रिकेट)

Arun Tripathi मित्र, मैं तो सार्वजनिक सरोकार वाला एक निजी इंसान हूं. सचिन अच्छा बल्लेबाज है, बचपन से ही क्रिकेट के अलावा शेष अर्जुन के लक्ष्य के व्यर्थ भागों की तरह जिसकी दृष्टि सीमा लांघ जाते थे. मुझे बहुत लोग नहीं जानते, वास्तविक और आभासी दुनियां मे कुछ मित्र हैं जिसकी खुशी है. जनाने के लिए छलांग लगाने की कभी ख़ाहिश नहीं रही. बात कुछ भी कहने की नहीं, अंध-भक्ति में किसी को भगवान मान लेने की है. इस (क्रिकेट) पर फिर कभी लिखूंगा. यहां सिर्फ यही कहूंगा कि साध्य जब मक्सद बन जाय तो साध्य का महत्व खत्म. पैसा जीवन का साधन है, साध्य बन जाये तो जीवन खत्म. खेल-कूद का आविर्भाव मनोरंजन, व्यायाम और समाजीकरण के साधन के रूप में हुआ किंतु पूंजीवाद ने उसे व्यवसाय बना दिया. थोड़ा एलीटीकरण के साथ यह बात क्रिकेट के बारे में भी सही है. इसका आविर्भाव श्रम को हेय समझने वाले, इंग्लैंड के परजीवी, सामंती, कुलीनों के टाइमपास, मनोरंजन और समाजीकरण के साधन के रूप में हुआ. श्रमिकों के खेल घंटे-2 घंटे के होते थे. कुलीनों के पास पोस करने को टाइम ही टाइम होता था और खेल दिनों-दिन चलता रहता था. इंगलैंड के नवकुलीन (औपनिवेशिक प्रशासक) इसे उपनिवेशों में ले गये और विकसित पूंजीवाद ने उसे एक विकसित बाजार बना दिया. सचिन एक अच्छा क्रिकेटर रहा है और शायद अच्छा इंसान भी हो, लेकिन उसके प्रशंसक उसे भगवान बनाकर उसकी इंसानियत पर खरोंच मारते हैं.

अब यार, नजरिया (परिप्रेक्ष्य) है तो बातें परिप्रेक्ष्य में रख कर ही होंगी. मैं अपने विद्यार्थियों को स्वतंत्र परप्रेक्ष्य विकसित करने के लिए उकसाता और प्रोत्साहित करता रहता हूं. मैंले कभी नहीं कहा कि सचिन एक निजी इंसान और एक खेल प्रोफेसनल की हैसियत से जो कर रहा है, सही है या गलत. यह उसका निजी मामला हुआ, मुझे  इससे क्या परेशानी हो सकती है. लेकिन इससे वह राष्ट्रीय महानायक कैसे हा गया. मैं क्रिकेट (या कोई भी खेल) न ज्यादा जानता हूं ( बचपन में गांव की खेलों के अलावा, जिसका छात्र जीवन में मलाल था लेकिन यह सोच संतोष करता था कि हर कोई सब कुछ नहीं कर सकता)) न ज्यादा देखता हूं मुझे परेशानी उसके प्रशंसकों की भक्ति प्रवृत्ति से है जो उसे भगवान बना देते हैं. 

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